श्रीराधिका का प्रेमोन्माद-1
( नन्दालय )
अर्धरात्रि बीत चुकी है , श्रीनन्द राय ने अपनी बैल गाड़ी को आगे बढ़ाया । ये जान बूझ कर किया था , मथुरा से तो ये दोपहर में ही विदा हो चुके थे । विदा ? किससे विदा ? अपने उस कन्हैया से विदा ? हाँ , उसने विदा किया था अपने बाबा को ।
राजा हैं ये बृज के । किन्तु आज ये कितने निर्धन हो गये । इनका धन तो मथुरा में रह गया या कहें यदुवंशियों ने इनसे छीन लिया । “श्रीमंत तो मथुरा वासी हैं ,दरिद्र हो गया है अब बृज”….ये कहना है नन्द राय का ।
सब ग्वाल बाल अपने अपने घरों में जा चुके हैं …अब ये लोग क्यों जायें नन्द महल ! इनका सखा तो वहाँ है नही । अब वो महल भी कहाँ है …महल तो तब था जब ब्रजराज का युवराज वहाँ रहता।
तुम लोग चलोगे महल ? नन्द राय ने मनसुख श्रीदामा आदि से पूछा था ।
स्पष्ट सिर हिला दिया सबने । क्यों ? आवाज भर्रा गयी थी ये पूछते हुये नन्दराय की ।
कन्हैया के बिना महल हमें और रुलायेगा ।
वहाँ की दीवार , वहाँ का परमाणु हमें बहुत रुलायेगा । बाबा ! हमें अब जाने दो ।
श्रीदामा बरसाना चले गये , मनसुख अपनी कुटिया में , अन्य सखा सब अपने अपने घरों में ।
किन्तु अब – बैल गाड़ी हाँकने वाले ने भी हाथ जोड़कर अश्रु प्रवाहित करते हुए नन्द राय से कहा….मेरा घर यहीं हैं , आप कहें तो मैं भी यहीं उतर जाऊँ ? तुम महल नही जाओगे ? गाड़ी चालक ने अश्रु पोंछते हुए कहा …..बाबा ! नन्द महल की अभी जो स्थिति है उसे मैं इन नयनों से देख नही पाऊँगा ! बाबा ! मुझे क्षमा करें । ये कहते हुए वो हिलकियों से रो पड़ा था । बाबा ने भी अपने अश्रु पोंछे …..फिर उसको कहा ….ठीक है तू जा । वो भी चला गया ।
तीन बजे हैं …दोपहर के तीन । नन्दबाबा बैल गाड़ी को स्वयं हाँकना चाहते हैं …पर इस दिन के प्रकाश में ? सब होंगे ना ! मार्ग में ही सब होंगे , और जब मुझ से पूछेंगे कि …..कन्हैया कहाँ है ? तो मैं बूढ़ा आदमी क्या बोलूँ ? फिर मेरी वो गृहिणी ! मेरे कन्हैया की मैया ….वो आयेगी और पूछेगी कि मेरा लाला कहाँ है ? मैं क्या कहूँगा ? मैं क्या कहकर उसे सान्त्वना दूँगा ? ये सोचते ही हिलकियों से रो पड़े नन्दराय जी ….अकेले रोते रहे बहुत देर तक ।
पर ये क्या , वो चार वृषभ , गाड़ी में जुते वो वृषभ चल पड़े …..उन्हें हाँकना भी नही पड़ रहा । नयनों में आँसू भरे हैं नन्द राय जी के ….वो बस जिधर वृषभ जा रहे हैं वो भी । कुछ देर बाद जब देखते हैं तो रस्सी खींच लेते हैं ….क्यों कि वो वृषभ नन्द बाबा को वापस मथुरा की सीमा में ले आये थे । नन्द राय रस्सी खींचते हैं …उन्हें श्रीवृन्दावन की ओर मोढ़ना चाहते हैं …पर नही ….अब क्या करें ! कुछ देर रोते रहे गाड़ी में ही बैठ कर…..फिर उतर कर बाहर आये …देखा वृषभों को …उनके नेत्रों से अश्रु झर रहे थे । वो संकेत करने लगे कि – चलो मथुरा और अपने लाला को ले आओ । उसके बिना हमें भी नही जाना श्रीवृन्दावन ।
वृषभों की ये स्थिति देखकर नन्दराय अधैर्य चित्त हो उठे । वो हाथ जोड़ने लगे ….कि मेरी बात मान लो …चलो बृज । चलो ! वृषभ जानते हैं …ये करुणामूर्ति हैं नन्द राय …इन्होंने कभी मारा नही है ….न मारेंगे । चलो , इनकी बात मान लेते हैं । वो बेमन से बृज की ओर चल पड़े किन्तु आगे जाकर स्वयं नन्द राय ने बैल गाड़ी को रोक दिया । ओह ! स्त्री का क्रन्दन समझ आता है …किन्तु जब पुरुष टूटकर रोता है तो बड़ा असहनीय दृष्य होता है । नन्दबाबा गाड़ी रोककर फूट फूट कर रोते हैं ।
वो नन्द का महल । नन्दालय ।
जब कन्हैया था तब यहाँ नित्य उत्सव थे , नित्य उत्साह-उमंग था ….गीत थे संगीत थे ….कोलाहल था , कलरव था , हास्य था , ठहाके थे…..पर आज ? आज क्रन्दन है , आज आह है , आज असहनीय पीड़ा है , हृदय में शूल है …जो दर्द दे रहा है ….दर्द ऐसा है कि मर ही जायें …पर मर भी नही सकते ।
नन्दालय की दशा कहते नही बनती । इसकी दरदीवारों से रोने की आवाज़ें आरही हैं ।
पर सन्ध्या समय अकेली यशोदा दही मथ रही है ………
नही , नही कोई नही मथेगा दधि । मैं मथूँगी । मैं उसकी मैया हूँ । जाओ ।
कोई नही है सामने ….पर दधि मथते यशोदा ऐसे ही बोल रही है ।
मेरा लाला आज मथुरा से आयेगा । और आते ही माखन माँगेगा । उसे तो तुरन्त चाहिये …वो प्रतीक्षा कहाँ करता है ….अगर नही मिला माखन तो ! अरे राम ! फिर तो जो ऊधम मचायेगा ।
ना , कोई हाथ न लगाना , न लगाना , मैं ही माखन निकालूँगी ।
यशोदा अकेले ही बड़बड़ा रही है ।
है नही अकेली …और भी हैं नन्दालय में , जो इधर उधर पड़ी हैं …कोई मूर्छित है तो कोई रो रही हैं ….कोई उठना चाहती है पर उठ नही पा रही । श्रीकृष्ण के विरह सिन्धु में सब डूबी हुयी हैं ।
तुम उठो , ऐ पद्मा ! तू उठ …मत रो ..प्रातः ही तो प्रभावती का पति बता कर गया था कि कन्हैया आज आ रहा है । पर मैया ! उसने तो कहा कि नन्दबाबा आरहे हैं , कन्हैया के लिए कुछ नही कहा । तो तुझे क्या लगता है , ये अपने लाला को बिना लिए आजाएँगे ? बात करती है । ग्वाल बाल बिना अपने सखा को लिए आजाएँगे ? यशोदा चिल्लाती हैं उस गोपी पर । पर मैया ! सुना है ग्वाल बाल आगये हैं ….गोपी ने फिर काँपते हुये कहा ।
हाँ , तो यहाँ से भी तो कन्हैया से पहले गये थे ग्वाल बाल …आगे की बैल गाड़ियों में , वो पहले आगये होंगे । पर मेरा कन्हैया तो अपने बाबा के साथ आयेगा । मैंने जाते जाते उनसे कहा था …कन्हैया को अपने साथ ही रखना ।
मैया यशोदा सब को कह रही है ।
कुछ देर तक नन्दालय में मौन छा गया है …क्या मौन ? ये मौन घबराहट पैदा करने वाला है ….किन्तु मैया तो …”घर्र घर्र घर्र घर्र”…दधि मंथन कर रही है ।
तुम लोगों को क्या लगता है ….वो आयेगा नही ? मेरा कन्हैया आयेगा नही ? यशोदा स्वयं ही कहती है और हंसती है ….पगली हो तुम सब । मेरा कन्हैया नही आयेगा ? हट्ट । ये हो ही नही सकता । यशोदा मैया फिर मंथन करना आरम्भ करती है ….पर मैया का ध्यान नन्दालय के द्वार पर ही लगा है ….आज आयेगा । मेरा लाला आज आयेगा ।
एक कौआ आया है ….कौआ को देखते ही मैया बोली ….आजा , मेरी मुँडेर पे बैठ जा । बोल …बोल …अरे ! कुछ तो बोल , पर कौआ मैया के सिर ऊपर से घूम कर चला गया ।
कोई बात नही , कौआ आया तो , नही बोला तो क्या हुआ ? और कौआ बोलता है तो अतिथि आता है …कन्हैया अतिथि है क्या ? पगली हो तुम सब ….मुझे माखन निकालने भी नही दे रही ….मैया यशोदा फिर – घर्र घर्र घर्र घर्र ।
कौनें में बैठी हैं वो भानु दुलारी श्रीराधिका । अपलक देख रही है वो द्वार की ओर …..पवन का झौंका भी आता है तो ये चौंक कर देखती है …..श्याम सुन्दर आगये ? पर नही ।
रात्रि के नौ बज चुके हैं ।
क्रमशः….


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