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August 2, 2025 5:25 am

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श्रीराधिका का प्रेमोन्माद – 5 -( स्वप्न विलास ) : Niru Ashra

श्रीराधिका का प्रेमोन्माद – 5 -( स्वप्न विलास ) : Niru Ashra

श्रीराधिका का प्रेमोन्माद – 5

( स्वप्न विलास )

गतांक से आगे –

मुझे नृत्य सिखाओ !

ये कहते हुए श्रीराधारानी श्याम सुन्दर के बगल में जाकर बैठ गयीं थीं । ये प्रार्थना नही थी प्रेयसी की अपनी ठसक थी , आदेश था , जो प्रेम में स्वाभाविक होता है ।

पर मुझे कहाँ नृत्य आता है ! बस थोड़ा सा ठुमक लेते हैं ……

तो ठुमकना ही सिखाओ !

उतना तो आपको भी आता होगा ? श्याम सुन्दर ने भी कह दिया ।

अच्छा ! चन्द्रावली को सिखा सकते हो …मुझे नही । श्रीराधा के मन में मान आगया । श्याम सुन्दर समझ गये ….कल की घटना ! जो चन्द्रावली के साथ समय बिताया था …उसी बात को लेकर श्रीराधारानी आज मान कर रही हैं ।

सिखाओगे या नही ? बरसाने की राजदुलारी हैं ….राजा वृषभानु की लाड़ली हैं …किन्तु प्रेम कर बैठीं हैं इन नन्द सुत से ।

“ठीक है सिखा देता हूँ” …..आखिर बोलना पड़ा श्याम सुन्दर को ….और नृत्य सिखाने लगे ….पीछे से जाकर श्रीराधारानी के हाथों को सीधा पकड़ उसकी भंगिमा बताने लगे ….और पद पटकना , फिर दाहिने हाथ को घुमाकर वहीं लाना , फिर ग्रीवा की हलन , भृकुटी की मटकन ।

श्यामसुन्दर ! श्याम सुन्दर !

तभी वो दौड़ी आई चन्द्रावली । अब तो श्रीराधा का मुखचन्द्र देखने जैसा था वो चिढ़ाने ही आती थी श्रीराधारानी को ।

क्या कर रहे हो तुम दोनों यहाँ ?

“ये हमें नृत्य सिखा रहे हैं”…..श्रीराधा ने चन्द्रावली को कहा ।

पर श्रीराधा की ओर चन्द्रावली देख ही नही रही ….वो तो श्याम सुन्दर से बातें कर रही है ।

हमें भी सिखा दो , चन्द्रावली मटकते हुए बोली । श्याम सुन्दर कुछ नही बोले , तो ….राधा ! मैं भी सीख लूँ ? बड़ी है चन्द्रावली श्रीराधारानी से …इसलिए श्रीराधा मन ही मन कुढ़ सकती हैं पर कह नही सकती इसको कुछ भी ।

“तुम ही सीख लो”। इतना कहकर श्रीराधा वहीं बैठ गयीं ।

चन्द्रावली सीखने लगी ….वो अवसर को क्यों जाने देती ! श्रीराधा को चिढ़ाने के लिये चन्द्रावली भी नृत्य की विभिन्न भंगिमा ……असहज हो रही हैं भानु दुलारी । इधर उधर देख रही हैं …अब चन्द्रावली की ओर देख ने की इनकी इच्छा भी नही है ।

तभी श्रीराधा की दृष्टि पड़ी श्याम सुन्दर की बाँसुरी में ….बाँसुरी वहीं रखकर नृत्य सिखा रहे थे श्याम सुन्दर । श्रीराधा ने बाँसुरी को तुरन्त उठा लिया ..और ….छुपा दूँ ? श्रीराधा के मन में कौतुक सूझा । कुछ देर परेशान होंगे …अपनी बाँसुरी को खोजेंगे ….हों परेशान , चन्द्रावली के साथ खूब भाव भंगिमा का प्रदर्शन हो रहा है …..बस उठा ली बाँसुरी । पर छुपावें कहाँ ! श्रीराधा सोचने लगीं । इधर उधर देखा कोई जगह नही मिली ….केशों में ? हाँ , तुरन्त केशों में छुपा लिया और शान्त बैठ गयीं ।

चन्द्रावली को श्याम सुन्दर ने कहा …अब हो गया नृत्य का सीखना ….मुझे भी तो घर जाना है …अब तुम जाओ जाओ । ठीक है ….मटकते हुए श्रीराधा को देखते हुए …..”अच्छा राधा” कहकर चिढ़ाते हुए …चन्द्रावली चली गयी …पर जाते जाते एक बार श्यामसुन्दर को आलिंगन भी करती गयी ।

चन्द्रावली के जाते ही श्रीराधारानी भी उठीं ….अब तुम सीख लो नृत्य ….श्याम सुन्दर ने जैसे ही कहा ….सीख तो गयी तुम्हारी चन्द्रावली ! और तुमने उसे सिखा भी दिया ।

श्रीराधा के व्यंग को खूब समझते हैं श्याम सुन्दर । मैं क्या करता प्यारी ! वो मानी ही नही ! हाँ , ठीक है ना ! कल भी उसी को सिखाना ….मैं तो चली । श्रीराधारानी चल दीं । सुनो तो , अरे रुको ना राधे ! ऐसे कोई जाता है क्या ? एक बार तो मिल लो । श्याम सुन्दर बाहें फैलाकर बोले ।

वो गयी तो है तुम्हें आलिंगन करके । कल भी उसका आलिंगन ले लेना । ठीक है ! मैं गयी अपने महल । श्रीराधा चल दीं ।

श्याम सुन्दर दुखी होगये …ये जब दुखी होते हैं तो बाँसुरी ही इनका सहारा है । अपनी बाँसुरी खोजने लगे ….पर बाँसुरी तो यहाँ है नही ।

राधे ! राधे !

हाँ , क्या है ? अपनी हंसी दबाते हुए श्रीराधा ने उत्तर दिया ।

मेरी बाँसुरी देखी क्या ?

मुझे नही पता , मैंने नही देखी । श्रीराधा फिर चल दीं ।

पीछे से श्याम सुन्दर बोल उठे ….किन्तु तुम्हारे केशों में ये क्या है ? बस , ये सुनते ही श्रीराधा रानी खिलखिला कर हंसीं और भागीं । अरे , रुको , मेरी बाँसुरी तुमने ले ली है ..दो मुझे बाँसुरी । श्याम सुन्दर पुकारते हुये श्रीराधारानी के पीछे भाग रहे हैं । मैं नही दूँगी …..अंगूठा दिखाया श्रीराधा ने और खिलखिला कर हंसते हुए वो फिर दौड़ीं । दौड़ते दौड़ते एक कुँज में श्रीराधा रानी चली गयीं हैं , कुँज घना है , तमाल का कुँज है ….इतना घना है कि दिन में भी अन्धकार सा लगता है । श्रीराधा खिलखिलाते वहीं जाकर छुप गयीं थीं ।

राधे ! राधे ! कहाँ हो ? दे दो ना बाँसुरी ! मुझे चैन नही मिलता बिना बाँसुरी के । मुझे रात में नींद नही आती …गैया मैं इसी बाँसुरी से चराता हूँ …दे दो , दे दो …आगे बढ़ रहे हैं श्याम सुन्दर …तभी श्रीजी खिलखिला उठीं …उनको हंसी आगयी ….उनकी हंसी से कुँज गूंज उठा ……..


ओह !

श्रीराधा हंस रही हैं ….खिलखिला कर हंस रही हैं । पर ये हंसी सब सखियों को चुभ रही है । मूर्च्छा में श्रीराधा हैं …पर शायद उन्होंने कुछ देखा है ….स्वप्न ?

पूरा महल गूंज रहा है ……हंसी , वियोग में हंसी …..कैसा दृश्य होगा ? ओह ।

उठ गयीं ……हंसते हुये उठीं हैं …..एकाएक उठ गयीं हैं श्रीराधारानी ।

सामने सखियाँ हैं ……सखियाँ भी तो अपार दुःख समुद्र में डूबी हैं …पर अपनी स्वामिनी की दशा देखकर ये अपना दुःख भूल गयीं हैं ….

ललिता विशाखा तुरन्त पर्यंक के निकट गयीं …..क्या हुआ किशोरी ? ललिता ने पूछा ।

वो बाँसुरी ? माथे में बल दिया …कुछ सोचने लगीं …..फिर अपने केशों को ! जूड़ा ? पर जूड़ा तो बनाया नही है …वेणी है आज तो । फिर असहज सी होकर पर्यंक में ही खोजने लगीं …..मिल गयी बाँसुरी । ये बाँसुरी ! बाँसुरी मिलते ही श्रीराधा उतरीं पर्यंक से …और जैसे ही बाँसुरी हाथों में लेकर वो जाने लगीं । गिर गयीं …धड़ाम से गिर गयीं । ओह ! वो कोमलांगी गिरीं । सखियों के हृदय में कष्ट अपार हुआ …सम्भाला श्रीराधा को ।

ये बाँसुरी , मैं चुराकर लाई हूँ , श्याम सुन्दर की बाँसुरी है …मुझे उन्हें देना है ….ललिते ! वो इसी बाँसुरी को बजाते हैं और गैया चराते हैं ….देख ! अभी तक बाँसुरी नही सुनाई दी ना ! कहाँ से देती …मैं चुरा कर ले आई ….केशों में छुपा कर ले आई । मैं देकर आती हूँ श्याम सुन्दर को । श्रीराधारानी फिर उठीं ….पर देह में अब बल कहाँ हैं ….इस बार ललिता आदि ने सम्भाल लिया । इन सखियों का हृदय चीत्कार कर रहा है ….कैसे समझायें कि जाते जाते श्याम सुन्दर अपनी बाँसुरी “आपको” को दे गए थे । क्यों दे गये ? ले जाते …मथुरा ले जाते …वहाँ बजाते …या जो भी करते ….अब तो ललिता को झुंझलाहट होती है श्याम सुन्दर के विषय में सोचते ही ….और हो क्यों नहीं …उनकी स्वामिनी की क्या दशा बना कर गये हैं वो । अब क्या कहूँ , कैसे समझाऊँ इन्हें ….कि उनका श्याम सुन्दर तो गया मथुरा । और जाते जाते बाँसुरी दे गया ….क्यों दिया बाँसुरी ! हृदय बारम्बार चीख रहा है ललिता का । उफ़ ! इस बाँसुरी को देखकर स्वामिनी का और उन्माद बढ़ेगा । क्या करूँ ?

ललिते ! देख , यही बाँसुरी है ….मुझ से अपराध बन गया ना , मैं ले आई । पर मैं क्या करती …वो भी उस चन्द्रावली को नृत्य सिखाने लग गये थे , बता ! एक बात बताऊँ ! ईर्ष्या अच्छी बात नही है ….पर ….वो चन्द्रावली को क्यों सिखाते हैं नृत्य ! श्रीराधा ललिता को बता रही हैं ….ललिता नीचे देख रही हैं ….आँखें मिलाने की उसमें हिम्मत नही है …आँखें मिलीं तो बह जायेंगे बहुत कुछ । भीतर बहुत भरा हुआ है सबके ।

तुम लोग मेरी ओर क्यों नही देख रहे …..ललिते ! चल बाँसुरी दे आयें । श्रीराधा फिर उठीं ….जाने के लिए जैसे ही उद्यत हुईं ………

श्रीदामा भैया ने कक्ष में प्रवेश किया ….निस्तेज मुखमण्डल लिये ……

भैया ! ललिता ने कहा ।

अरे भैया ! आप गौ चारण में नही गये ? अब जा रहे हो क्या ? तो सुनो ना , ये बाँसुरी श्याम सुन्दर को दे देना । मैं आज जा नही पाऊँगी श्रीवन में । इतना कहकर बाँसुरी श्रीदामा को उनकी बहन श्रीराधा ने दे दी ।

बाँसुरी को हाथों में लेते ही श्रीदामा बैठ गये और दहाड़ मार कर रोने लगे ।

क्या हुआ ? भैया ! क्यों रो रहे हो ? श्रीराधा अपने भैया को पूछती हैं ।

ललिता मन ही मन सोच रही है ….अब श्रीदामा बतायेंगे , अब ये कहेंगे ….फिर हमारी श्रीराधा मूर्छित हो जायेंगी …।

ओह ! अपार कष्ट ये भी भोग रहीं हैं सखियाँ ।

राधा ! वो निष्ठुर श्याम सुन्दर हम को छोड़ कर चले गये ।

क्या !

श्रीराधा स्तब्ध हो गयीं ….उनके श्रीअंग में कम्पन होने लगा , स्वेद से नहाने लगीं ।

कहाँ गये ? मेरे प्राण कहाँ गये ? श्रीराधा पूछती हैं …उनका उन्माद बढ़ चला है ।

मथुरा , रोते हुए श्रीदामा ने कहा ।

मथुरा ? फिर ये बाँसुरी मेरे पास कैसे ?

जाते जाते आपको दे गये थे बाँसुरी । ललिता ने कहा ।

ओह ! मेरे प्राण मुझे छोड़कर चले गये ! फिर भी राधा जीवित है ? धिक्कार है इसे ।

उनके बिना राधा जीवित कैसे है ? साँसे उखड़ रही हैं श्रीराधा की ।

सखियाँ डर गयीं ….कुछ हो ना जाये । सम्भाला श्रीराधा को सबने ।

मैं सुख सागर में तैर रही थी ललिते ! क्या आनन्द विभोर होकर घूमती थी ….श्याम सुन्दर के प्रेम में कितनी उन्मत्त रहती थी …..पर आज ?

वो अक्रूर आया , वो अगस्त ऋषि बनकर आया ….
और मेरे आनन्द के समुद्र को एक चुल्लू में पी गया !

थोड़ी भी दया नही आई उसे ! क्रूर है वो अक्रूर । हमारे प्राण ले गया । श्रीराधा शून्य में देख रही हैं …..क्या उन्हें मेरी याद आती होगी ? ये पूछती हैं श्रीराधा और दहाड़ मार कर रोने लग जाती हैं …..ललिते ! वो मेरे कारण गए हैं इस वृन्दावन को छोड़कर ….हाँ , मेरे कारण …मैंने उन्हें बहुत दुःख दिया , बार बार मान कर बैठना , कितनी अहंकारी हो गयी थी ये राधा ! मेरे इन्हीं व्यवहार से दुखी हो जाते थे वो ….ये राधा है ही निष्ठुर ! तनिक भी दया नही है राधा के मन में …इसलिए वो गये ….ठीक किया उन्होंने , गये ….अब तो सुखी होंगे ? अब तो प्रसन्न होंगे ? हाँ , ये कहते हुए श्रीराधा मौन हो गयीं ….पर ….ललिते ! उन्हें मथुरा में मेरी याद आती होगी क्या ? श्रीराधा फिर रोने लगीं ।

बोल ना ! आती होगी ? नही आती होगी , है ना ? क्यों आयेगी ? राधा में ऐसा क्या है जो श्याम सुन्दर को याद आये ।

हाँ , नृत्य के रसिक थे श्याम सुन्दर । तो वो वहाँ भी नृत्य देखते होंगे ….पर वहाँ तो नागरी हैं नगर की स्त्रियाँ तो बहुत सुन्दर होती हैं …हम तो गाँव की ….श्रीराधा उन्माद से भर गयी हैं ….ललिते ! उस समय श्याम सुन्दर को अवश्य हमारी याद आती होगी …जब वहाँ की सुन्दर नारियाँ नृत्य दिखाती होंगी तो वो सोचते होंगे …गँवार ! वो बृज की नारियाँ गँवार थीं …नृत्य तो ऐसा होता है ।

ललिते ! उस समय हमारी याद आती होगी उन्हें ….है ना ? श्रीराधा फिर मौन हो जाती हैं …शून्य में इकटक देखती रहती हैं ….फिर रोने लगती हैं ….क्या वो कभी नही आयेंगे ! क्या वो आयेंगे ? नही आयेंगे ….फिर ये राधा जीवित क्यों है ! जब प्रीतम नही आयेंगे तो राधा का जीवन क्यों ? मुझे मृत्यु का वरण करने दे ललिते ! ये कहते हुये श्रीराधा अवनी पर धड़ाम से गिर पड़ीं …..उनके अश्रुओं से पूरी अवनी भींग गयी थी । ओह !

क्रमशः….

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