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February 5, 2025 6:02 pm

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श्रीराधिका का प्रेमोन्माद – 17-( “मैं प्रेम भिखारन” – ललिता बोलीं ): Niru Ashra

श्रीराधिका का प्रेमोन्माद – 17-( “मैं प्रेम भिखारन” – ललिता बोलीं ): Niru Ashra

श्रीराधिका का प्रेमोन्माद – 17

( “मैं प्रेम भिखारन” – ललिता बोलीं )

गतांक से आगे –

रंगदेवि ! सखी रंगदेवि ! मुझे लाड़ली की चिंता सता रही है ….क्या तुम वृन्दावन जाओगी ?

ललिता ! मुझे भी उनकी बहुत चिंता हो रही है ….किन्तु तुम मथुरा में अकेली हो जाओगी ना !

नहीं , रंगदेवि ! तुम वृन्दावन जाओ …और जाकर लाड़ली को कहना ….ललिता पूरे प्रयास में है …दैव अगर अनुकूल रहे तो अवश्य श्यामसुन्दर वृन्दावन आयेंगे !

क्या ललिता ! दैव अनुकूल हैं ?

ओह ! इस प्रश्न पर रो पड़ी ललिता सखी ….पता नही, मैं कुछ नही कह सकती । रंगदेवि ! मैं तो सोच रही हूँ श्याम सुन्दर के अंतपुर तक भी मैं कैसे जाऊँगी । सैनिकों की भीड़ है …द्वारपाल हैं …परिचय पूछेंगे …क्या बताऊँ ? वृन्दावन का परिचय मैं देना नही चाहती । अगर वृन्दावन का परिचय दिया तो यदुवंश में हल्ला हो जायेगा कि बृज वाले अब सखियों को भेज रहे हैं !

ललिता रोते हुए बोली …मुझे प्रेम की मर्यादा भी निभानी है …मुझे अपने वृन्दावन के मान की रक्षा भी तो करनी है । ललिता बोलती गयी …..कल ही नही देखा तुमने रंगदेवि ! रोहिणी माता ने मुझे पहचान लिया था …..अब अगर उनको पता चलेगा कि मैं श्याम सुन्दर को लेने आयी हूँ ?

ललिता शून्य में देखती है ….फिर लम्बी स्वाँस लेकर कहती है …बहुत कठिन डगर है ये ….

कैसे जाओगी श्याम सुन्दर के अंतपुर तक ? रंगदेवि ने पूछा ।

कुछ समझ में नही आरहा …….ललिता रंगदेवि से कहती है ।

रंगदेवि ! इस समय तो मेरे हृदय में बस लाड़ली का मुखचन्द्र है …..उन्हीं की चिन्ता है मुझे ….

इतना कहकर ललिता फिर बोली – तुम जाओ , और लाड़ली को सम्भालो । तुम वहाँ रहोगी तो ये ललिता यहाँ निश्चिन्त अपना काम कर लेगी । तुम सेवा में कुशल हो , चतुर हो , रंगदेवि ! लाड़ली को कब क्या चाहिये तुम जानती हो ….तुम जाओ ….ये कहते हुए ललिता ने रंगदेवि को भेज दिया वृन्दावन के लिए ।

मधुवन में अब अकेली है ललिता । ये अब क्या करे ? ओह !


बहुत सोच विचार कर ….जोगन भेष धारण कर लिया ललिता ने ।

क्यों कि जोगन को कोई रोकेगा नही ।

हाथ में इकतारा भी ले लिया ….

केशों को जटा के रूप में बना लिया …और ये चल पड़ी मथुरा नगर की ओर । जो भी देखता ललिता को वो देखता ही रह जाता । ऐसा सौन्दर्य इन नगर के लोगों ने देखा कहाँ था ।

सुन्दर से सुन्दर नागरी भी नगर की कोई देखती तो वो ठिठक कर रुक जाती ….देखती रह जाती ।

इकतारा लेकर ये चल पड़ी है …पूरे मथुरा नगर में चर्चा का विषय बन गया …कान कान में होते हुए बात फैल रही थी कि एक अत्यन्त सुन्दर जोगन आयी है , वो या तो रम्भा आदि है या कोई ओर स्वर्ग से उतरी अप्सरा ।

किन्तु अप्सरा जोगन नही होती, प्रबुद्ध वर्ग ये बात भी कह रहा था ।

हाँ , अप्सरा को देखकर वासना जाग्रत होती है ….किन्तु इनको देखकर तो ऐसा लगता है कि ये कोई महान वैराग्यवान नारी हैं । किन्तु सुन्दरता अपूर्व है । लोग यही कह रहे हैं ललिता को देखकर । किन्तु अपनी ललिता तो इकतारा बजाते हुए मथुरा नगरी में चली जा रही है ।

मथुरा की नागरियों का झुण्ड आगे चलकर ललिता को घेर लेता है ।

कौन हो तुम ? क्या नाम है तुम्हारा ? आहा ! तुम्हारे देह से कमल पुष्प की गंध आरही है ….तुम मथुरा की तो नही हो ? फिर कहाँ की हो ?

उन नागरियों के झुण्ड ने एक साथ ललिता को घेर लिया और ये सब प्रश्न कर डाले ।

मेरा नाम “प्रेम भिखारन” है । सजन नयन से ललिता ने अपना नाम बताया ।

तुम मथुरा क्यों आयी हो ? एक नागरी ने पूछा ।

लम्बी स्वाँस लेकर ललिता बोली ….अपनी राजकुमारी के लिए ।

राजकुमारी ? तुम स्वयं राजकुमारीलगती हो ।

नही नहीं , कान पकड़ते हुए ललिता बोली ….मैं तो अपनी राजकुमारी की दासी हूँ …चरण किंकिरी ।

तुम विधवा हो या सधवा ? तुम्हें देखकर समझ में नही आरहा की तुम कौन हो ?

एक नागरी ने ये भी पूछ लिया ।

कुछ देर शान्त रहकर ललिता ने उत्तर दिया ….नही , मैं न विधवा हूँ न सधवा ….मैं “अधवा” हूँ…..ये कहते हुए ललिता के नयनों से अश्रु बह चले । वो अपने को ही सम्भालनें लगीं ।

हम समझीं नहीं ….ये “अधवा” क्या होता है ? समस्त नागरियों ने ये प्रश्न एक साथ किया था ।

फिर नेत्रों से झरझर अश्रु बह चले …….अरी नागरियों ! विधवा उसे कहते हैं जिसका पति मर गया हो । और सधवा उसे कहते हैं जिसका पति उसके पास हो ….मैं हाय ! मैं अधवा हूँ ….जिसका पति परदेश जाकर भूल जाए उस नारी को अधवा कहते हैं …..ये कहते हुए ललिता की वाणी अवरुद्ध हो गयी थी ।

ललिता को इस तरह रोते हुए देखकर मथुरा की नारियों का भी हृदय भर आया ।

यहाँ क्यों आयी हो ? हम कुछ सहायता तुम्हारी कर सकती हैं क्या ?

ललिता ने कुछ देर मौन रहकर कहा …..मेरी राजकुमारी अस्वस्थ हैं ….उनके उपचार के लिए मैं यहाँ भटक रही हूँ ।

तो किसी अच्छे वैद्य को दिखाओ ।

ललिता बोली – किन्तु मैं तो तुम्हारे नये नवेले राजा से मिलने आयी हूँ ।

क्यों वो क्या वैद्य हैं ? नागरियों ने ललिता की बात को अब हंसी में ली ।

वो राजा हैं …किन्तु रोग के लिए तो वैद्य के ही पास में तुम्हें जाना पड़ेगा ना ?

नागरियों ने ललिता को समझाना चाहा ।

नहीं , मैंने सुना है ….क्या तुम लोगों को नही पता ….जन्मजात रोग था कुब्जा को , कूबड़ निकला हुआ था उसका , पर तुम्हारे नये नवेले राजा ने उसे ठीक कर दिया । ललिता के मुख से ये सुनते ही मथुरा की नारियाँ एक दूसरे का मुँह देखने लगीं ….और कहने लगीं – ये बोल तो ठीक रही है ।

अब ललिता ने हाथ जोड़कर कहा ….हे मथुरा की नागरियों ! मैं अपनी राजकुमारी के लिए यहाँ आयी हूँ …उनकी स्थिति अत्यन्त सोचनीय है …हम दासियाँ उनको देखकर दिन रात रोती रहती हैं ….वो ना खाती हैं न कुछ पीती हैं …..ये कहते हुए हिलकियों से ललिता रोने लगी । आप मुझे ये बता दीजिये कि आपके राजा का अंतपुर कहाँ है ? वो कहाँ रहते हैं ? ललिता के मुख से ये सब सुनकर मथुरा की नारियाँ आपस में बात करने लगीं ….ये दासी तो लगती नहीं हैं ….दूसरी कहने लगी …अगर इतनी सुन्दर दासी है तो कल्पना करो कि वो राजकुमारी कैसी होगी ? ललिता विकल हो उठी ….वो हाथ जोड़ रही है बारम्बार मथुरा की नारियाँ भी ललिता की ये दशा देखकर अश्रु प्रवाहित करने लगीं थीं ।

क्रमशः….

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