!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 85 !!
सुनो ! प्रियतम की पाती
भाग 2
हे गोपियों ! ज्ञान , कर्म, योग सबका फल मैं ही हूँ ……….मुझे ही पानें के लिये तपश्वी तप करता है …………..ज्ञानी स्व स्वरूप का चिन्तन करता है ……….योगी प्राणायाम इत्यादि के द्वारा मन को मुझ में ही लगाता है………इसलिये हे मेरी प्यारी ! तुमनें सबकुछ पा लिया है ……अब कुछ भी पाना शेष नही है…….मैने तुम्हे वियोग दिया…..विरह दिया, इसका कारण यही है कि ……….मन से, तुम अपनें आपको मुझ से अलग न समझो……विरह में एकत्व का अनुभव होता है……उस एकत्व के अनुभव के लिये ही मैने तुम्हे ये विरह प्रदान किया है ।
विरह से तन्मयता आजाती है ………….तन्मयता से एकत्व की भावना तेज़ होती चली जाती है ………फिर तो हे बृजांगनाओं ! तुम और मैं अलग कहाँ हुये ? हम सब एक ही तो हैं !
हे मेरी सर्वेश्वरी राधे ! आप तो सब जानती हो ………….नित्य निकुञ्ज में ये लीलाएं चल ही रही हैं ……..पर ये अवतार काल है …….आप लोगों के प्रेम को, मैं जगत में दिखाना चाहता था ……..प्रेम कैसा होता है ये बताना चाहता था ………..इसलिये !
मेरी स्वामिनी ! आप सब जानती हैं ……………..
“हम मिलेंगें”………..ये कहना भी मुझे उचित नही लगता …….क्यों की हम मिले ही हुए हैं ……….हमारा वियोग सम्भव ही नही है …….ये तो बस एक – लीला है …………..हाँ मेरी प्रिये !
इतना ही लिखा था पाती में ……उद्धव सुनाकर पाती चुप हो गए ।
सुबुकनें लगीं प्यारे की पाती सुनकर सब गोपियाँ ……………..
उद्धव ! तुम कहते हो तो बात ठीक होगी……..तुम पाती को लानें वाले हो, ……हमारे कृष्ण हमें ज्ञान का सन्देश भेज रहे हैं……अच्छी बात है ।
पर उद्धव ! हमें अब पाती नही चाहिये …….
…..हमें पाती लिखनें वाला चाहिये ।
हमारी तो कुछ समझ में ही नही आई बात………हम गंवार हैं उद्धव !
आत्मा क्या परमात्मा क्या , हम क्या जानें ?
हम तो, जब से होश सम्भाला है …….तब से कृष्ण ही को अपना सर्वस्व मान बैठी हैं ……………
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –
Author: admin
Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877