!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 90 !!
श्रीराधारानी द्वारा उद्धव को “प्रेम” का उपदेश
भाग 2
हाथ जोड़कर प्रार्थना करनें लगे थे उद्धव ।
हे स्वामिनी ! हे हरिप्रिये ! आप ऐसे उद्विग्न न हों ………
मैं एक बात आप से सच सच कह रहा हूँ …………..मैने कई बार एकान्त में श्रीकृष्ण को आपका नाम लेकर रोते हुए देखा है ………..आप को मैं सच कह रहा हूँ ……श्रीकृष्ण भी आपके वियोग में रोते रहते हैं …….
मेरा सौभाग्य है स्वामिनी ! कि श्रीकृष्णचन्द्र जू नें मुझे अपना सखा स्वीकार किया………जिसके कारण मैं उनका अंतरंग हो गया था ।
तब मैने कई बार अनुभव किया है………एक दिन तो …..सन्ध्या की वेला थी ……..छत पर आसन बिछाकर बैठे थे श्रीकृष्ण …….एकांत में …….मैं बिना किसी आहट के उनके पास चला गया था…….तब मैने जो स्थिति उनकी देखी ……..मैं उसे बता नही सकता ………हे मेरी स्वामिनी श्रीजी ! अश्रु धार बह चले थे श्याम सुन्दर के ……सुबुकते हुए आपका नाम लेरहे थे वे बारम्बार ।
मुझे देखा तो आँसू सब पोंछ लिये ……..पर उस दिन वो मुझ से कुछ बोले नही ………..कुछ नही बोले ।
उद्धव बता रहे हैं श्रीराधारानी को ………….
हे श्रीजी ! एक दिन रात्रि के समय मैं उन्हीं के कक्ष में सो गया था ……. मेरे सखा नें ही मुझे जिद्द करके सुला लिया था अपनें पास ।
उस रात्रि को भी मैने जो देखा ………….वो सोच से परे था ।
उनका रुदन चल रहा था रात्रि में……..मेरी नींद खुल गयी थी ……मैने देखा ……आँसू बह बह कर उनके वस्त्रों को गीला कर रहे थे ।
मैं कुछ समझ नही पाया कि ये क्या हो रहा है……..मैं उठ गया…..
पर अब जो मैने देखा …………..लेटे हैं श्रीकृष्ण ………और उनके रोम रोम से “राधा राधा राधा” की ध्वनि आरही थी ।
बस रुक जाओ उद्धव ! आगे कुछ मत बोलना ।
श्रीराधारानी नें इशारे से उद्धव को रोक दिया ।
उद्धव – चकित और भय मिश्रीत भाव से देखते हैं…….मेरा ये सब कहना आपको अच्छा नही लगा ? उद्धव पूछते भी हैं श्रीराधारानी से ।
नही …..बिलकुल अच्छा नही लगा……..उद्धव ! तुम अगर ये कहते कि …….कृष्ण तो तुमको भूल चुके हैं……..वो तनिक भी याद नही करते …….दूर दूर तक तुम्हारा नाम भी उन्हें याद नही है…….
श्रीराधारानी विलक्षण बात कहती हैं यहाँ …………”राधा को वे भूल गए हैं… …..और मथुरा में सुखपूर्वक हैं”………ये बात अगर तुम कहते ना …तो सच कहती हूँ उद्धव ! मैं बहुत प्रसन्न होती ……..मुझे अच्छा लगता ………मुझे बहुत अच्छा लगता ……….पर ये तुमनें क्या कह दिया ? वो मुझ राधा को याद करके रोते हैं ? ओह ! उद्धव ! ये बात सही है ……तो फिर हमारा जीना व्यर्थ है ………..हमारा श्याम सुन्दर दुःखी है ? वो हमें याद करके रोता है ?
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –


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