!! एक अद्भुत काव्य – “प्रेम पत्तनम्” !!
( “प्रेम नगर 2” – नगर परिचय )
कल मंगलाचरण हुआ ….प्रेमावतार गौरांग देव को प्रणाम करके ।
अब ग्रन्थ आरम्भ होता है ।
“मति रतियुवतिपतिर्यत्पालयिता मधुमेचको राजा ।
गगने विकसित नगरं नैकशिरोमन्दिरं नाम ।।”
“प्रेम पत्तनम्” ग्रन्थ के आरम्भ का ये प्रथम श्लोक है ।
इसका अर्थ समझ लीजिये ….इस श्लोक में “प्रेम नगर” का परिचय दिया गया है ।
अर्थ – आकाश में एक नगर सुशोभित है , उसके अनेक शिखर हैं …उस नगर का पालन करने वाला राजा है जिसका नाम है “मधुर मेचक” । उसकी दो रानियाँ हैं , एक का नाम है मति और दूसरी का नाम रति है ।
साहिब का घर दूर , सहज न जानिये ।
गिरै तो चकनाचूर , वचन को मानिये ।।
ओह , बहुत दूर है प्रीतम का घर , बहुत दूर , मीरा बाई रोते हुए कहती हैं ….
“गगन मण्डल में सेज पिया की , किस विधि मिलना होय”
यहाँ नही हैं , प्रियतम तो गगन मण्डल में हैं …..उनका वो प्रेम नगर आकाश में स्थित है । अब आकाश से मतलब सबसे ऊँचा । सबसे ऊँचाई पर है वो प्रेम नगर । क्या समझे हो भैया ! कि प्रेम नगर में जाना सहज है ? ना ,
सीस काट के भू धरै , ऊपर रक्खे पाव ।
इश्क़ चमन के बीच में , ऐसा हो तो आव ।।
मज़ाक़ नही है प्रेम नगर तक पहुँचना ……अपना अहंकार उतार कर चलना पड़ता है ….अपना शीश काटकर गेंद बनाकर खेलने वाले ही उस प्रेम नगर तक पहुँच सकते हैं । हाँ , अगर इतनी हिम्मत हो तो चलो ….अन्यथा रहने दो …..क्यों की अहंकार को ओढ़कर चलोगे तुम तो …..उसका भार उठाकर कहाँ गगन मण्डल में पहुँच पाओगे ? असम्भव है ….इसलिये रहने दो ….खाओ पीयो हंसो खेलो ….अजी ! कहाँ इस रोने धोने के मार्ग में बढ़ रहे हो …..सब कुछ बिक जाएगा तुम्हारा ….ये याद रखना ….सब कुछ ….कपड़ा लत्ता तो पहले ही बिक जाएँगे …..उसके बाद तुम्हें अपने आपको भी बेचना पड़ेगा । तब कहीं चलने लायक होगे ….क्यों कि वो तो गगन मण्डल में बैठा है । कौन ? कौन बैठा है ? प्रेम नगरी का राजा । क्या नाम है उस राजा का ? “मधुर मेचक” ।
मधुर मेचक का क्या अर्थ हुआ ? क्यों की राजा का परिचय तो पाया जाये ! उसका नाम जान लिया अब अर्थ जाना जाये ! देखो ! मधुर रस ….सर्वोच्च रस है । मधुर रस यानि श्रृंगार रस ….ये सब रसों में श्रेष्ठ रस है …और मेचक यानि “मय” “मधुर रसमय”…..ये हुआ प्रेम नगरी के राजा के नाम का अर्थ , अब मधुर रसमय कौन हो सकता है ? श्याम सुन्दर ? हाँ , सही बोले ….यही हैं इस प्रेम नगर के राजा । यानि बृजराज कुमार श्याम सुन्दर ही इस नगर के पालक हैं ।
अब इन रसीले छबीले राजा की दो रानियाँ हैं …..बड़ी रानी का नाम है मति , और छोटी रानी का नाम है रति । मति बड़ी रानी है ….तो स्वाभाविक है रति जो छोटी रानी है ….वो मति से तरुणी भी है …और तरुणी है तो सुन्दर भी है । मति रानी ऐश्वर्य का अनुसंधान करती हुई दिखाई देती है ….तो छोटी रानी रति , “रस पक्ष” की पक्षधर हैं । इसे इस तरह भी समझा जा सकता है कि ऐश्वर्य की अधिष्ठात्री मति है तो माधुर्य की अधिष्ठात्री रति है ।
सीधी सी बात है …मति यानि बुद्धि, तर्क , और रति यानि प्रेम , भाव ।
कहाँ मति में फँसे हो यार ! तर्क से आज तक किसी को रस की प्राप्ति हुयी है ? रस तो रति में है ....देखने , छूने , सुनने या बोलने में , जहां अंतःकरण द्रवीभूत हो जाए ....ओह ! हृदय पसीज उठे ....लगे की देखता रहूँ , लगे की बस छूता रहूँ , लगे कि सुनता रहूँ ...लगे की मिट ही जाऊँ ...और अन्त में लगे कि बस वही रह जाये मैं उसमें समा जाऊँ । इसमें मति का काम है ? मति आएगी तो वो सब कुछ बिगाड़ जाएगी । वैसे उसके बिगाड़ ने से कुछ होगा नही ....वो लाख समझाये , वो लाख कहे की बर्बाद हो जाओगे मत जाओ उस ओर ....किन्तु बर्बाद ही तो होना है ....मति के साथ रहकर आबाद होने से क्या मिलेगा ? थोथा उपदेश ? उद्धव मति से प्रेरित आया तो था श्रीवृन्दावन....उन पगली रति में डूबी गोपियों के पास , क्या अच्छे से चेला मूड़ा है उस बुद्धि सत्तम” को गोपियों ने ।
वो रस कहाँ मति में है ? नीरस उपदेश सुनते रहो ….रस हीन बनाकर अपने को रखना चाहो तो मति का दामन पकड़ लो …नही तो ये रति जो तुम्हें रस का पान कराएगी …वो अद्भुत होगा …उसके आगे स्वर्ग का अमृत तुच्छ होगा ….वो अमृत का भी गाढ़ होगा । कुछ तर्क कर लो , पर पाओगे कुछ नही मिला । किन्तु हृदय से रति को निहारो ….डूब जाओ तो कितने युग बीत जायें , फिर भी तुम्हें लगेगा कि अभी तो अच्छे से निहारा भी नही है ।
बलिहारी रति , तेरी बलिहारी ।
अब आगे सुनो ….उस नगर का दूसरा नाम है ….”नैकशिरो मन्दिरं”….अर्थात् ….बिना सिर वालों का मन्दिर । “बेसर” वालों का मन्दिर । ये और विचित्र बात कह दी ……कोई विचित्र बात नही है …क्या प्रेम करने वालों का सिर होता है ? विचार करो । सिर अहंकार का प्रतीक है ना …..फिर प्रेम नगर में अहंकार का क्या काम ?
याद रहे …जब तक धड़ में सिर रहेगा …तब तक प्रेम नगर में प्रवेश ही नही मिलेगा । और यहाँ जितने लोग रहते हैं सब बेसर वाले ही हैं । याद है ना , खुदी और ख़ुदा एक साथ नही रह सकते । इसलिए सबसे पहले इस सिर रूपी अहंकार को हटाओ , नही हटा सकते तो प्रीतम के चरणों में चढ़ा दो । किन्तु ये पक्की बात है कि प्रेम नगर में बेसर वाले ही जाते हैं …सिर वालों का वहाँ प्रवेश नही है ।
किन्तु सिर चढ़ाना तो बड़ा मुश्किल काम है ।
देखो ! प्रेमी के लिए कुछ भी मुश्किल नही है …अगर तुम्हें मुश्किल लग रहा है तो तुम अभी प्रेमी हुए ही नही हो ।
प्रेमी ही तो सच्चा शूरवीर होता है ….दूसरे के सिर को काटना कोई शूरवीरता है ? अपने सिर को अपने हाथों काटकर प्रीतम को सौंप देना ये शूर के लक्षण हैं । अपने अहंकार को आग में डाल देना और ख़ाक होते हुए देखकर नाचना ….ये है असली शूर की पहचान । सुनो ! सुनो ! आशिक़ होना सस्ता नही है …कोई बाज़ारू आदमी आशिक़ नही हो सकता ….इसके लिए तो मोम के घोड़े में बैठकर आग का दरिया पार करना है ।
प्रेम नगर में प्रवेश सच्चा प्रेमी ही कर सकता है …झूठे प्रेमियों के लिए ये मार्ग नही है ।
इसलिए इस प्रेम नगर में सिर उतार कर ही प्रवेश मिलता है ? यहाँ बेसर वाले ही रहते हैं ।
अब आप अपनी तैयारी देख लो ।
शेष कल –


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