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July 20, 2025 7:02 pm

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!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 90 !!-श्रीराधारानी द्वारा उद्धव को “प्रेम” का उपदेश भाग 3 : Niru Ashra

!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 90 !!-श्रीराधारानी द्वारा उद्धव को “प्रेम” का उपदेश भाग 3 : Niru Ashra

!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 90 !!

श्रीराधारानी द्वारा उद्धव को “प्रेम” का उपदेश
भाग 3

श्रीराधारानी विलक्षण बात कहती हैं यहाँ …………”राधा को वे भूल गए हैं… …..और मथुरा में सुखपूर्वक हैं”………ये बात अगर तुम कहते ना …तो सच कहती हूँ उद्धव ! मैं बहुत प्रसन्न होती ……..मुझे अच्छा लगता ………मुझे बहुत अच्छा लगता ……….पर ये तुमनें क्या कह दिया ? वो मुझ राधा को याद करके रोते हैं ? ओह ! उद्धव ! ये बात सही है ……तो फिर हमारा जीना व्यर्थ है ………..हमारा श्याम सुन्दर दुःखी है ? वो हमें याद करके रोता है ?

उद्धव ! हमारा हृदय फटा जा रहा है ये सुनकर ………….ये सुनते हुए हमारे प्राण क्यों नही निकल रहे ………मेरा प्राणधन, मुझ निष्ठुरा राधा का नाम लेकर रोता है ? ओह !

उद्धव नें सोचा था कि ये बात कह दूँगा तो शायद श्रीराधारानी को अच्छा लगेगा…….पर यहाँ तो उलटा हो गया ।

ये कैसा विलक्षण प्रेम है ! ओह ! उद्धव ललिता सखी की ओर देखते हैं ……..ललिता सखी श्रीराधा रानी को पँखा कर रही हैं ।

उद्धव से जल मंगवाया ललिता नें ….जल पिलाया श्रीराधारानी को…….अब कुछ होश आया था ।


क्या सोचकर कहा था तुमनें उद्धव !

क्या सोचा था कि ……….तुम्हारे मुँह से श्याम सुन्दर के दुःख का वर्णन सुनकर राधा प्रसन्न होगी ? कृष्ण दुःखी है और यहाँ राधा खुश रहे ……ये क्या सोच लिया था तुमनें उद्धव !

श्रीराधारानी उद्धव को समझानें लगीं थीं ।

प्रेम को अभी तक तुम समझ ही नही पा रहे हो उद्धव !

अगर तुमनें प्रेम को जरा भी समझा होता ना ……….तो तुम इस तरह की बातें नही करते …………….

प्रेम विलक्षण है उद्धव ! प्रेम में प्रियतम के सुख की कामना ही मुख्य है……वो सुखी है तो हम भी सुखी हैं…..यही प्रेम का सिद्धान्त है ।

उद्धव ! हम चाहें कैसे भी रहें …….पर हमारा प्रिय प्रसन्न रहे ।

हमारे आँखों में आँसू चलेंगें …….पर उनके अधरों पे मुस्कान होनी चाहिये । ये प्रेम है ।

पर उद्धव ! तुमनें जो बात अभी कही ना ………ऐसी बातें प्रेमियों के सामनें न करना…….मैं तो कठोर हृदय की स्वामिनी हूँ ……..इतना सुनकर भी मेरे प्राण नही निकलते ………पर अन्य किसी प्रेमी के आगे ये सब मत कहना………कहीं वो प्रेमीन प्राण ही न त्याग दे ।

सच्चे प्रेमियों को अपनें प्रियतम के सुख में स्वयं का सुख दिखाई देता है …..और जिसे प्रियतम के सुख में सुख दीखे……सच्चा प्रेमी वही है ।

पर उद्धव ! तुम्हारी बातें अभी भी हमारे हृदय में घूम रही हैं ……….

क्या सच में कृष्ण मेरे लिये रोते हैं ? क्या सच में कृष्ण रात रात भर नही सोते ? ……आह ! ललिते ! उद्धव ये क्या सुना रहा है ……..मेरे कारण मेरे श्याम सुन्दर दुःखी हैं !……..वो सोते भी नही हैं ।

मैं क्या करूँ अब ? ललिता ! तू तो मेरी सखी है …….बता ना ! मेरे प्राण नाथ दुःखी हैं ……मेरे कारण !

ये कहते हुए श्रीराधारानी फिर मूर्छित हो गयीं थीं ।

उद्धव की आँखें फ़टी की फ़टी रह गयीं………

ओह ! कैसा दिव्य प्रेम ! प्रेम का रहस्य बता दिया श्रीराधारानी नें ।

मैने तो ये सब इसलिये कहा था कि……श्रीराधारानी को अच्छा लगेगा ये सुनकर कि……दुःखी श्रीराधा ही नही ….कृष्ण भी हैं ।

पर यहाँ तो ? उद्धव और गहरे डूबते जा रहे हैं इस प्रेम सागर में ।

अपनें सुख की कामना का पूर्ण त्याग…….प्रियतम के सुख में ही सुखी रहनें की वान्छा……..श्रीराधारानी को अगर मैं कहता कृष्ण मथुरा में सुखी हैं……..तो इनको आनन्द होता ?

ओह ! ये प्रेम का पन्थ तो समझ के परे है ।

हे वज्रनाभ ! उद्धव को पता भी नही चल रहा…….पर वो प्रेम सिन्धु में डूबते जा रहे हैं……गहरे गहरे और गहरे ।

शेष चरित्र कल –

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Author: admin

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