!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 92 !!
“रुढ़ भावः” – यानि सिर्फ “तू”
भाग 2
वो नई बहु थी…..नई नई आई थी …… वृन्दावन में ।
उद्धव ! हम सब गोपियाँ मिल कर गयी थीं उसकी “मुँह दिखाई” में ।
पर ……..उद्धव ! उस बहु नें तो हम सबका अपमान कर दिया ……कहनें लगी ……..मैं कुलटा का मुँह नही देखती ……….और तुम लोग कुलटा हो ………जाओ ! मुझे बिगाड़नें आई हो !…….मैं सब जानती हूँ ……..अपनें पति को छोड़कर तुम किसी छोरे के पीछे लगी हो …….और सबकी सब लगी हो……..पर मैं ऐसी नही हूँ ……..मैं पतिव्रता बननें आई हूँ…….तुम्हारे वृन्दावन में आदर्श की स्थापना करूंगी ।
उद्धव ! हमें भी क्या पड़ी थी कि पिद्दी सी छोरी के मुँह से हम उपदेश सुनें ……….मैने कहा था ………सुन ! हमें भी तेरा मुँह देखनें का शौक नही है ………जा ! तू क्या हमारा मुँह नही देखेंगी ……हम तेरा मुँह नही देखेंगी ……हट्ट !
ऐसा कहते हुये हम सब सखियाँ चल दी थीं अपनें अपनें घर की ओर ।
उद्धव ! उस बहु की सास थी ना ………वही ये सब पढ़ाती थी उसे ।
वो कहती थी कि ………..इन सखियों का संग मत करना …..ये सब कुलटा हैं ……नन्द नन्दन से लगी रहती हैं ……………
वो सास बहु को यमुना जल भरनें भी नही जानें देती थी …….
पर कब तक भीतर रखती अपनी बहु को वो सास ……..एक दिन …..बहु थोड़ी पुरानी भी हो गयी थी ………तो वह यमुना जल भरनें को निकली ……….मार्ग में मिल गए श्याम सुन्दर …………
वो लटें , वो मधुर हास्य , वो सुन्दरता …..पागल हो गयी वो बहु ।
ललिता सखी उद्धव को ये प्रसंग सुना रही हैं ।
अब तो उस बहु की आँखें चढ़ी हुयी थीं……..पद डगमग हो रहे हैं ……..मटकी तो वहीं फूट ही चुकी थी …….
जैसे तैसे अपनें घर आई …………परिवार वालों नें उससे पूछा – क्या हुआ ? तेरी ये दशा कैसे हुयी ?
पर वो कुछ न बोल सके ……….कभी हँसे कभी रोये ….कभी काँपे ।
समय बीतता गया ….वैद्य बुलाये गए ………बड़े बड़े वैद्य ….मथुरा तक के वैद्य आये ……पर नही …….कुछ नही हुआ ।
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –
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