महारास (दिव्य प्रेम का नृत्य) (004)
(स्वामी अखंडानंद सरस्वती )
यह जो रास पञ्चाध्यायी है, इसका मुख्य काम क्या है? इसका मुख्य काम है हमारे जीवन में श्रद्धा का रस, भाव का रस, भक्ति का रस, प्रेम का रस, भगवद् रस, हमारे हृदय में पैदा कर देना। भगवान का रस हमारे हृदय में आवे, तब आपको मालूम पड़ेगा कि कृष्ण किसका नाम है। वही बाँसुरी वाला है और वही साँवरा-सलोना है। दीनता नहीं है, इसमें मरने की जरूरत नहीं है। इसके साथ अपने को जोड़ देने की जरूरत है। यह प्रीति की रीति बड़ी निराली है।
यह तत्त्व की चर्चा बिल्कुल नहीं है। इसमें आध्यात्मिक भाव निकालने की आवश्यकता नहीं है। यों लोग निकालते हैं, वर्णन करते हैं, लेकिन जब – ‘अपूर्वं अनपरं, अनन्तरं अब्राह्मम्’ यह श्रुति है- ‘अशब्दं, अस्पर्श, अरूपं, अगन्धं, अरसवतं’ श्रुति है और उसमें से साफ-साफ अध्यात्म का तत्त्व का और ब्रह्म का निरूपण निकलता हैतो हर जगह उसको भरने की क्या जरूरत है? जहाँ जो है वही निकलना चाहिए। रास रास के रूप में ही मनुष्य के हृदय को भगवान के साथ जोड़ने वाला है। यहाँ यह आध्यात्मिक चर्चा करने की नहीं है कि गोपी माने चित्तवृत्ति और कृष्ण माने दो चित्तवृत्तियों की सन्धि में स्थित चैतन्य। बोले- बाबा- यह बात तो माण्डूक्य कारिका में सुना देंगे कि दो वृत्तियों की सन्धि में कैसे चैतन्य होता है-
वृत्तयोऽखिलसन्धीनाम् अभावाश्चावभासिताः ।
सारी वृत्तियों की सन्धि और उनकी वृत्तियों का अभाव किस तुरीय तत्त्व के द्वारा उद्भासित होता है वह तो वेदान्त के प्रवचन में साक्षात् बतायेंगे। उसको यहाँ रास- रस में से निकालने की जरूरत है?
अरे ! यहाँ तो आओ गोपी-कृष्ण का आनन्द लें-
अंगनामंगनामन्तरे माधवो माधवं माधवं चान्तरेणांगना ।
इत्थमाकल्पिते मण्डले मध्यग
सञ्जगौ वेणुना देवकीनन्दन ।।
एक गोपी है और एक कृष्ण हैं, फिर एक गोपी और एक कृष्ण हैं, फिर एक गोपी है कृष्ण हैं। गोपी कोई गोरी है कोई सांवरी है, कोई पीली है कोई लाल है, किसी की साड़ी पीली है, किसी की लाल है, किसी की नीली है, किसी की हरी है। तरह-तरह का लहँगा पहने तरह-तरह का ओढ़ना ओढ़े तरह-तरह की रंग रूपवाली, तरह-तरह की नाम-रूपवाली हजारों गोपियाँ हैं और गोपी के साथ एक-एक पीताम्बरधारी मुरली मनोहर मोरमुकुटवाले श्यामसुन्दर हैं, मन्द-मन्द मुस्काते हुए, ठुमुक-ठुमुक कर पाद-विन्यास करते हुए और प्रेम-भरी चितवन से देखते हुए, आँख नचाते हुए, मुँह मुस्कराते; ठुमुक-ठुमुक कर चलते हुए पीताम्बर को फहराते, प्रत्येक गोपी के साथ एक – एक नन्दनन्दन लगे हैं। अरे! आओ न, अपने मन को इसमें डाल दो। देखो दुनिया भूलती है कि नहीं भूलती है।
इस कृष्ण की वासना उत्पन्न करने के लिए- जैसे हमारा प्रेम श्रीकृष्ण के साथ जुड़े इसके लिए यह रास पञ्चाध्यायी की कथा है। अगर तुम्हारे दिल में दुनिया में प्रेम न हो तो हम एक बार कह सकते हैं- चलो छुट्टी! तुम अपनी असंगता से ही मुक्त हो जाओगे। लेकिन जब दुनिया में तुम्हें रस है, दुनिया में प्रीति है तो रसान्तर की आवश्यकता है, भगवद् रस की आवश्यकता है। वह तुम्हारे हृदय में भगवद्-रस का संचार करके भगवान की ओर ले चलेगा।
क्रमशः …….
🌹🌻श्री कृष्णं वन्दे 🌻🌹
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