!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 93 !!
प्रेमीयों की विचित्र अभिलाषाएं
भाग 1
स्वर्ग इन्हें चाहिये नहीं ……साम्राज्य, अपार सम्पत्ती ..यश वैभव ….ये सब भी इन्हें नही चाहिये…..अजी ! इन्हें तो मुक्ति तक नही चाहिये ।
प्रेमी भी कैसे पागल होते हैं ना ! उद्धव बृज की लताओं को छूते हैं …….कभी मोर को देखते हैं ……..कभी पक्षियों का गान सुनते हैं ।
तो कभी ग्वालों की मण्डली में चले जाते हैं …………..ग्वाल बाल बड़ा आदर करते हैं उद्धव का अब ……..उनकी बातें सुनते हैं उद्धव …….फिर वहाँ से यमुना जी चले जाते हैं …….वहाँ बैठे रहते हैं ………….फिर मैया यशोदा की याद आती है तो नन्दभवन की ओर चल देते हैं ………..
“मेरा कन्हाई आया” ……….जब भी उद्धव को अपनें यहाँ देखतीं हैं मैया यशोदा …..तब तब वो दौड़ पड़ती हैं ……….फिर उद्धव को जब पहचानती हैं ……तब बड़ा संकोच होता है उन्हें ………..
“तू भी तो मेरे कन्हाई जैसा है ना”
झेंप कर सिर में हाथ रखते हुए कहती हैं ।
“कुछ नही चाहिये हमें”…..नन्द बाबा के मुख से यही सुना है मैने तो ।
मोक्ष , मुक्ति ……..बाबा ! ये तो जीवन का लक्ष्य है ।…………मेरे में अभी भी ज्ञान के कुछ संस्कार शेष हैं …….इसलिये कभी कभी ज्ञान मार्ग की चर्चा छिड़ जाती है ………………..
“नही मुक्ति तो नही ही चाहिये”
बस हल्के स्वर में इतना ही बोले नन्द बाबा ।
फिर ? मैने धीमे स्वर में पूछा ।
मरनें के बाद हम जहाँ भी जाएँ….बस “कन्हाई” से ऐसा ही प्रेम बना रहे ।
ये क्या कह रहे थे नन्दराय जी……..मुक्ति नही चाहिये आपको ? नन्दराय जी से ही फिर पूछा था उद्धव नें………
नही ……….मुक्ति तो बिलकुल नही चाहिये…….उद्धव ! क्यों की मुक्त हो जायेगें तो अपनें कन्हाई से प्रेम नही कर सकेंगें ………..
ज्यादा बुलवाता नही हूँ मैं नन्दबाबा से……क्यों की वृद्ध हैं ……..
अद्भुत वात्सल्य से भरे हैं ये बाबा………….
मैं चला जाता हूँ फिर उन्हीं महाभागा गोपियों के पास …………
आज कल मुझ से वृन्दावन के लोग बहुत प्रसन्न रहते हैं ………..
मुझे कोई भी अपनें भवन में बुलाकर माखन खिला देता है ………..और मुझे बुलानें की आवश्यकता भी नही पड़ती जब मुझे क्षुधा लगती है तो ….मैं किसी भी बृजवासी में घर में चला जाता हूँ …………और मेरा बड़ा सत्कार करते हैं ये लोग ।
गोपियाँ तो मुझे देखते ही बस यही कहती हैं …………उद्धव ! मिला दो ना श्याम नें ……….मिला दो हमारे श्याम सुन्दर से ……….
मैं उन्हें देखता रहता हूँ ……”ये आशा त्याग दो” – कहता हूँ ।
वो बेचारी गोपियाँ मुझे देखतीं ………फिर पूछती – क्यों ?
मैं उत्तर देता……….”आशा दुःख का कारण है”…….
क्रमशः …
शेष चरित्र कल –
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