!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 93 !!
प्रेमीयों की विचित्र अभिलाषाएं
भाग 2
मैं उन्हें देखता रहता हूँ ……”ये आशा त्याग दो” – कहता हूँ ।
वो बेचारी गोपियाँ मुझे देखतीं ………फिर पूछती – क्यों ?
मैं उत्तर देता……….”आशा दुःख का कारण है”…….
आशा रहेगी तो दुःख भी रहेगा …….इसलिये आप लोग आशा को ही त्यागिये कि ……श्रीकृष्ण आयेंगें…….
गोपियाँ कुछ नही बोलीं ………..बस अपनें कपोल में हाथ रखकर देखती रहीं मुझे ।
“पिंगला नामकी एक वेश्या थी……..प्राचीन इतिहास में ये कथा आती है , मैं उन गोपियों को ये प्रसंग सुनानें बैठ गया था ।
वो “पिंगला” आशा ही करती रहती थी…..कि लोग आयेंगें आयेंगें …
पर कई दिनों तक उसके पास कोई नही आया ………तो वो अत्यन्त दुःखी हो गयी …..उसके अन्तश्चक्षु खुल गए …..और वह कहती है –
आशा दुःख का ही कारण है ! फिर गोपियों ! वो सब कुछ छोड़कर चली जाती है ………..मैने ये कथा सुनाई गोपियों को आज ।
पिंगला भले ही कहती रहे कि आशा दुःख का कारण है ……….पर हे उद्धव ! हमारे लिये तो आशा ही सब कुछ है ……..और एक बात सुन लो …..जिस दिन हमारी आशा टूट जायेगी ना…….उस दिन हमारी ये साँसों की लड़ी भी टूट जायेगी……”कृष्ण आएंगे” “कन्हाई आएगा” इसी आशा नें तो हमें जिन्दा रखा है …….नही तो ये वृन्दावन ही खतम हो जाता कब का ।
मैं इन्हें समझा रहा था ? ज्ञान की बातें मैं बार बार क्यों छेड़ता हूँ इनके आगे ! ये गोपियाँ, प्रेम के उच्च शिखर पर विराजमान हैं …….नही नही …….ये स्वयं प्रेम मन्दिर की उच्च शिखर हैं ……फिर इनको ज्ञान सुहाये कैसे ?
अच्छा ! आप लोगों की अभिलाषा क्या है ?
मुक्ति ? मोक्ष ? मैने येसे ही पूछ लिया । वही – ज्ञान के कुछ संस्कार अभी भी गए नही थे मेरे अन्तःकरण से ।
मुक्ति………ये तो हमें खारी लगती है …………..उद्धव ! मुक्त हो जायेंगीं तो फिर हमारा श्याम सुन्दर तो हमें मिलनें से रहा ……
हाँ …..ये बात तुमनें ठीक पूछी है कि हमारी अभिलाषाएं क्या हैं !
तो सुनो उद्धव –
हमें धूल बना देना उस गली का …..जहाँ हमारे प्रियतम पाँव रखते हों ।
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –
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