!! एक अद्भुत काव्य – “प्रेम पत्तनम्” !!
( प्रेम नगर 45 – “जहाँ बिना हाथ वाले ही हाथ वाले हैं”)
गतांक से आगे –
यत्राबाहव एव सहस्र बाहव : ।।
अर्थ – जहाँ ( प्रेम नगर में ) बिना हाथ वाले ही हजार हाथ वाले हैं ।।
****हे रसिकों ! “प्रेम पत्तनम्” को ध्यान से अगर आप पढ़ेंगे …तो एक अद्भुत वस्तु आप पायेंगे कि “क्रिया” से ही आरम्भ होता है ये प्रेम भी । किन्तु कब धीरे धीरे “अक्रिया” पर चला जाता है कुछ पता ही नही चलता । शारीरिक क्रिया से आरम्भ हुआ ये प्रेम , हाथों से सेवा , इन नेत्रों से श्रीबिहारी जी , श्रीराधाबल्लभ दर्शन , कानों से उनकी कथा-चर्चा श्रवण , पैरों से श्रीधाम परिक्रमा , आरम्भ इसी देह से है ना ? किन्तु कब ये नियम आजाते हैं इस प्रेम नगर में कि ….यहाँ “स्त्रियाँ ही पुरुष हैं” और “पुरुष ही स्त्रियाँ हैं”……ये दो सूत्र देकर प्रेम नगर हमें देहातीत बना देता है कि …तुम पुरुष देह में हो , तो स्त्री हो, और स्त्री देह में हो , तो पुरुष हो, यानि तुम देह ही नही हो । तुम देह से परे हो । अब कल का ही सूत्र देख लो …”अन्धा होना ही हजार नेत्र वाला है”। इसका मतलब क्या हुआ ? इसका मतलब ये हुआ कि – प्रीतम के दर्शन करते हुए तुम्हारे हृदय के भाव छलकें हैं ? अगर भाव छलकें हैं तो नेत्र बन्द हो जायेंगे …ये होगा ही , उस स्थिति में तुम्हारा “रोम रोम ही नेत्र बन सके”…..ये कहना है ।
अब आज का सूत्र है ….”प्रेम नगर में बिना हाथ वाले ही हजार हाथ वाले हैं” ।
बात ऊँची जा रही है …इसलिए समझ में न आये तो दो बार चार बार पढ़ो …ये हमें प्रेम की ऊँचाई तक ले जाने वाली है …”प्रेम पत्तनम्” ।
क्रिया से कभी प्रीतम मिला है ? वो तो तब मिलता है जब क्रिया अक्रिया में बदल जाती है ।
जब हाथ रुक जायें ….सात्विक भाव का उदय हो जाये …तब कहाँ सेवा बन पाएगी ? फिर सेवा ही नही बन पायी तो क्या साधना हुई ? हमारे रसिक जन कहते हैं …सही में सेवा तब ही होगी …जब तुम्हारी बाहरी क्रिया रुक जाएगी । “रोकनी नही है” “रुक जाये” ….भाव की अतिरेकता के कारण । और एक बात कहूँ कि “भाव आगया कहकर सेवा को रोक देना पाखण्ड होगा”। “दम्भ होगा “। अपने आप रुक जाये , वो स्थिति आये ।
आप अपने प्रीतम के चरण दबा रहे हैं …आपको रोमांच हो जाये …भाव के कारण आपको कम्पन आजाए …और आप कुछ न कर पायें ….आपके दो हाथ काम न कर पायें ….वो स्थिति उच्च है । “प्रेमनगर” उस स्थिति तक पहुँचने की बात करती है । अगर आप उस स्थिति तक पहुँच गये तो , भले ही आपके दो नेत्र बन्द हो गये हैं …..तो क्या हुआ ….आपके वास्तविक नेत्र तो खुल गये …..आपके ये हाथ काम नही दे रहे ….अति सात्विक भाव के कारण ( ये स्थिति प्रेम की ऊँचाई में होती है , जब देह भी काम नही करता ) तब आपके हजारों हाथ काम करने लगेंगे । कहने का अर्थ …प्रीतम के सहस्र बाहु तुम्हारे बाहु हो जायेंगे । ये अद्भुत होगा उस समय ।
गौचारण की बेला थी …आज प्रथम दिन ही तो था जब “गोपाल” गौ चराने जा रहे थे ।
बलराम जी के मन में आज विशेष वात्सल्य उमड़ पड़ा है…..इसलिए वो आज अपने छोटे भाई के साथ ही साथ थे ….मनसुख आदि सखाओं को भी पास में आने नही दे रहे थे ।
गैया चर रही हैं …श्रीवन की हरियाली देखते ही बन रही है …गैया कोमल दूब चर कर आनंदित हैं …तो बछड़े उछल कर अपनी प्रसन्नता दर्शा रहे हैं । ग्वाल बाल भी दूर चले गये हैं ….बड़े भैया बलराम ने ही उन्हें भेजा है ….ताकि अपने छोटे भाई के साथ वो आज रह सकें ।
तभी ….श्रमबिन्दु भाल में बलराम जी को दिखाई दिये कन्हैया के । बस फिर क्या था …कन्हैया को सुला लिया अपनी गोद में , कन्हैया ने मना किया पर बलभद्र को आज अपना पूरा स्नेह छोटे भाई पर उढेलना है । एक कदली पत्र तोड़ा और कन्हैया को पंखा करने लगे ..कुछ देर तक पंखा किये …फिर अति स्नेह के कारण …कन्हैया के चरण दबाने लगे ।
दाऊ ! कन्हैया बोले …हाँ क्या बात है ? बलराम जी ने भी पूछा ।
धीरे दबाओ ना, इतनी ज़ोर से कौन दबाता है ।
बलराम जी ने थोड़ा धीरे से दबाना आरम्भ किया …किन्तु ….दाऊ ! धीरे से ,
और धीरे से ? बलराम जी ने पूछा । हाँ , और धीरे ।
बलराम जी ने देखा ….हाँ , मेरे हाथ कठोर हैं …और मेरे छोटे भाई के चरण कोमल हैं ….और धीरे से दबाने लगे ….और धीरे ….कन्हैया फिर बोले । अब दाऊ ने एक हाथ से ही दबाना प्रारम्भ किया …किन्तु ….दाऊ भैया ! और धीरे । अब बलराम जी ने अपने दोनों हाथों को ऊपर किया …और परछाईं से अपने छोटे भाई के चरणों को दबाने लगे थे …अब कन्हैया को नींद आगयी थी ……तभी बलराम जी ने सोचा ….ओह ! इतना कोमल है मेरा कन्हैया ! मेरे हाथ भी इसको भारी लग रहे हैं ! और सोते हुए अपने छोटे भाई को बलराम जी देख रहे हैं ….तभी …उनको रोमांच हुआ ….उनके देह में कम्पन होने लगा ….नेत्रों से दाऊ जी के अश्रु बहने लगे । हाथ उनके रुक गये ….अनन्त भगवान बलभद्र की ये दशा हो गयी थी ….तब कन्हैया ने देखा , एक आँख खोलकर देखा ….और मुस्कुराए ….क्यों की यही स्थिति तो ये चाहते हैं कि ……फिर ये धीरे से उठे और अपने दाऊ भैया के चरण स्वयं दबाने लगे थे ।
हे रसिकों ! आपके हाथ रुक जायें …यानि अत्यधिक प्रेम के कारण क्रिया रुक जाये तो चिन्ता मत करना …तुम्हारा प्रीतम तुम्हारे हजार हाथ बनकर सेवा करेगा । यार ! यहाँ तक पहुँचो तो ।
आज निभृत निकुँज में एक लीला युगल ने रची ।
लालन ने ललना के अंगों में पत्रावली रचने की ठानी ।
वैसे प्रिया जू ने कहा …ये आपके वश की बात नही है …ये आपसे होगा नही । किन्तु लाल जू भी आज तैयार हुये …अपने आपको सावधान किया …..इस लीला का दर्शन बाहर से सखियाँ कर रही हैं ….कुँज रंध्रों से निहार रही हैं ।
प्रिया जू ने नीली साड़ी पहनी है ….अपने श्रीअंग में मात्र नीली साड़ी …गौर अंग में नीला वस्त्र कितना शोभायमान लग रहा है ….केश उनके खुले हैं …..और इधर केसर आदि को लेकर श्याम सुन्दर अपनी प्रिया के निकट गये …..उफ़ ! उस रूप माधुरी को देखते ही पहले तो श्याम सुन्दर ने अपने आपको सम्भाला ….फिर नेत्र बन्द किए …लम्बी साँस ली । प्रिया जी मुस्कुरा रही हैं । पास में जाकर बैठे ….अब प्रिया जी के श्रीअंगों से जो सुगन्ध प्रकट हो रही थी ….वो भी श्याम सुन्दर को विचलित कर रही थी ……श्याम सुन्दर अपने को सम्भालने में ही लगे हैं …दाड़िम की पतली डंडी ली …हाथ में चाँदी की कटोरी है ..उसमें केसर गाढ़ी करके रखी है …पहले मस्तक में ।
श्याम सुन्दर अपने छाती में हाथ रखते हैं …धड़कन बहुत तेज चल रही है ….प्रिया जू ने हंसते हुए अपना हाथ श्याम सुन्दर की छाती में और रख दिया …ये क्या ? धड़कन और तेज हो गयी थी ।
अब तो श्याम सुन्दर …..किन्तु जैसे तैसे मस्तक में तिलक की रचना की ….फिर कपोल में …पत्रावली बनाई ..बड़ी सुन्दर रचना की थी श्याम सुन्दर ने …..प्रिया जू ने दर्पण माँगा तो रसिक शेखर बोले …मेरे नयनों में देख लो …और जब प्रिया जू ने श्याम सुन्दर के नयनों में अपने को देखा ….श्याम सुन्दर तो …..किन्तु उन्होंने अपने को सम्भाला ।
अब वारी थी श्रीजी के वक्षस्थल में चित्रावली बनाने की ……प्रिया जी मुसकुराईं …श्याम सुन्दर ने फिर अपने को सम्भाला …..तभी नील वसन जैसे ही हटा …श्याम सुन्दर ने देखा ….उनके नेत्र बन्द हो गये …उनकी साँसे तीव्र से तीव्रतम होने लगीं ….अब क्या होगा ? प्रिया जी ने अपने मुख से फूंक मारकर श्याम सुन्दर को जगाया । श्याम सुन्दर जागे ….चित्रावली करो …प्रिया ने कुछ संकोच के साथ कहा ….हाँ , हाँ हाँ …कहते हुए फिर जैसे ही वक्ष में चित्रावली उकेरने लगे …हाथ काँप गए श्याम सुन्दर के ….अतिप्रेम के कारण , अति भाव के कारण , अति प्रीति सम्बंध के कारण ….हाथ रुक गये ….अब नही , अब तो मूर्तिवत हो गये हैं श्याम सुन्दर । प्रिया जी ने इस दशा को जब देखा तो वो स्वयं प्रेमोन्मत्त हो उठीं और श्याम सुन्दर के हाथों से उपकरण लिया जिससे चित्रावली ये बना रहे थे …और पीताम्बर को हटाकर श्याम सुन्दर के वक्षस्थल में प्रिया जी ने चित्रावली उकेर दी थी ।
ओह ! ये है प्रेम की उच्च स्थिति …जब आपके हाथ रुक जायें प्रेम की अति के कारण तो चिंता मत करना ..प्रीतम ही सहस्र बाहु लेकर आजाएँगे और जो काम तुमसे नही होगा वो , वो कर देंगे ।
हे रसिकों ! धन्य है ये प्रेम नगर …जहाँ सहज देहातीत स्थिति हो जाती है ।
है ना ?
शेष अब कल –


Author: admin
Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877