!! एक अद्भुत काव्य – “प्रेम पत्तनम्” !!
( प्रेम नगर 47 – “जहाँ जागना ही सोना है” )
गतांक से आगे –
यत्रानिद्रत्वमेव सनिद्रत्वम् ।।
अर्थ – जहाँ ( प्रेमनगर में ) जागना ही सोना है ।
*हे रसिकों ! ये बात ध्यान देने की है …कि जैसे निद्रा में सब कुछ विस्मृत करके मनुष्य सोता है और वो सुख और विश्राम का अनुभव करता है …ऐसे ही प्रेम की उस उच्च अवस्था में भी मनुष्य जागता है …और अपने प्रीतम को स्मरण करके जब जगत का विस्मरण उसे होने लगता है …तब वो भी उसी सुख और विश्राम का अनुभव करता रहता है ।
ना , आप अगर ये सोच रहे हैं कि …प्रेमी रोता है इसलिये वो बेचारा है …प्रेमी आह भरता है इसलिए दुखी है …प्रेमी रात रात भर जागता है इसलिये उसे विश्राम नही है । नही जी ! ऐसा बिल्कुल नही है ….सामान्य मनुष्य को जो सुख सोने में मिलता है …वही सुख प्रेमी को प्रीतम की याद में जागने में मिल जाता है । जब प्रेम उफान पर होता है ना , तब नींद कहाँ आती है ! सोने का अभिप्राय ही ये है कि तुम सब कुछ विस्मृत करके अब नींद में जा रहे हो । किन्तु विस्मृत ? भूल जायें उस प्यारे को ? ना , अपने आपको न भूल जायें ? हाँ , हम मानते हैं कि प्रेम का विरह एक प्रवल ताप है ….ताप यानि उष्ण , यानि गर्म । हाँ , भले ही उष्ण हो प्रेम का ताप …किन्तु इसमें जितना आनन्द है और किसमें है ? सोने में आपको आनन्द आता है ? अपने प्रीतम को भूलने में आपको रस आरहा है ? तो क्षमा करना प्रेम ने अभी तक आपको छूआ ही नही है …..आपको प्रेम देवता ने अपना बनाया ही नही है ….प्रेम जिसे अपना बना लेता है …प्रेम नगर जिसे अपने यहाँ स्थान दे देता है …उसकी नींद छीन लेता है ….उसका चैन खो जाता है ।
हमारे श्रीधाम के रसिक सन्त कहाँ सोते हैं ? मुश्किल से रात में दो या तीन घण्टे । बस ।
रात के दो बजे उठ जाते हैं ….भजन करते हैं …फिर सुबह छ बजे सो जाते हैं …मैंने देखा है कितने भक्तों को …..उन्हें नींद ही नही आती ।
मैं उन दिनों किशन गंज में था …जो बिहार में पड़ता है ….मेरी भागवत जहाँ थी वो परिवार बड़ा ही सात्त्विक था …..उस परिवार के दादा जी जो थे वो बड़े भक्त थे …परम भक्त । स्वामी श्रीरामसुख दास जी अच्छे साधक थे ….मेरी नींद खुल जाती थी उनकी करुण पुकार से ….वो रात्रि के दो बजे उठ जाते थे …और हे नाथ ! मैं आपको कभी न भूलूँ । हे नाथ ! मुझे अपनी शरण में ले लो …हे नाथ ! मुझे कुछ नही चाहिये …सिर्फ़ तुम ही चाहिये । ऐसे पुकारते थे ….करुण पुकार थी उनकी ….वो ऐसे ही सुबह पाँच बजे तक बोलते रहते और रोते रहते ।
एक दिन मैंने उनसे पूछा ….आप इतनी जल्दी उठ जाते हैं ? दो बजे ही । तो वो बोले …मुझे नींद नही आती …..फिर वो कहते …मुझे कोई रोग नही है …मैं पूर्ण स्वस्थ हूँ ….किन्तु नींद नही आती ….मेरे नाथ ने मेरी नींद उड़ा दी है । ये कहते हुए उनके नेत्र सजल हो गये थे ।
प्रेमनगर में जागना ही सोना है ।
प्रेमी को लगता है अकेले बैठ जायें …पर्यंक में लेट जायें ….और सो जायें ? नही नही सोना तो प्रेमी को लगता है समय की बर्बादी । सोना ? क्यों ? जितनी देर सोयेंगे उतनी देर तो प्रीतम को याद करलो …..उसके साथ बिताये खूबसूरत पलों को स्मरण कर लो ….ओह ! क्या आनन्द आयेगा । क्या सुख मिलेगा । याद रहे – प्रेम नगर में सोया नही जाता ।
यमुना किनारे सब सखियाँ बैठी हैं ….सखियों के मध्य में श्रीराधारानी विराजमान हैं ।
श्रीकृष्ण मथुरा जा चुके हैं …उनके विरह में सभी संतप्त हैं ।
कुछ स्वप्न सुनाओ …अपना अपना स्वप्न सुनाओ …ललिता सखी ने कहा …ताकि श्रीराधारानी का मन यहाँ लगा रहे । सखियों ने ललिता की बात मानीं …और स्वप्न सुनाने लगीं ।
एक गोपी ने कहा …सपने में मैंने देखा कि ….मैं यमुना जल भरने आयी हुई हूँ …जल भर लिया है मैंने …सिर में गगरी भी धर ली है । तभी मेरे पैरों में काँटा गड़ गया …ओह ! बहुत दर्द होने लगा था ….मैं रोने लगी तो उसी समय पता नही कहाँ से श्याम सुन्दर आगये और मेरे पैर का काँटा निकाल दिया । ये सपना सुनाकर वो सखी मौन हो गयी थी ।
फिर दूसरी ने अपना सपना सुनाया ….मैंने सपने में देखा कि मैं चलते चलते गिर गयी हूँ मुझ से उठा नही जा रहा …मैं अब रोने लगी हूँ …तभी श्याम सुन्दर आये और मेरे हाथ को पकड़कर मुझे उठा लिया …मैंने उनसे सपने में ही पूछा …तुम तो चले गए थे ना मथुरा …फिर कैसे आगये ? श्याम सुन्दर ने कहा …अरी सखी ! मथुरा में सब हैं पर तू नही है ना , इसलिए मैं वापस आगया ।
इस तरह सब सखियों ने अपना अपना सपना सुनाया , अब बारी थी श्रीराधारानी की , उनसे पूछा गया कि हे स्वामिनी ! अब आप सुनाओ । क्या ? श्रीराधारानी को तो कुछ भान ही नही है ….सपना , ललिता बोलीं । सपना ? श्रीराधारानी अश्रुओं के साथ हंसीं …कैसा सपना ? हे सखियों ! जब से श्यामसुन्दर मुझे छोड़कर चले गये तब से निद्रा भी उन्हीं के साथ चली गयी है । श्रीराधा बोलीं, जब नींद आएगी तब न सपना देखूँगी , और जब सपना देखूँगी तब तुम्हें सुनाऊँगी ना !
हे सखियों ! मुझे नींद ही नही आती । श्रीराधारानी ने यही कहा ।
हे रसिकों ! ये प्रेम नगर है ….यहाँ जागना पड़ता ही है । सोने वालों को यहाँ प्रवेश नही है । जिनको चैन है …जो निश्चिंत हैं ….जिनको सुख और विश्राम है ….उनके लिए प्रेमनगर नही है …प्रेम नगर उनके लिए है जिनमें एक तड़फ है , बेचैनी है , प्रीतम हृदय से एक क्षण के लिए दूर नही जा रहा ….फिर कहाँ नींद ? कहाँ चैन ?
शेष अब कल –


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