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July 21, 2025 7:51 am

अध्याय 3 : कर्मयोग – श्लोक 3 . 26 : Niru Ashra

अध्याय 3 : कर्मयोग – श्लोक 3 . 26 : Niru Ashra

अध्याय 3 : कर्मयोग श्लोक 3 . 26 न बुद्धिभेदं जनयेदज्ञानां कर्मसङ्गिनाम् |जोषयेत्सर्वकर्माणि विद्वान्युक्तः समाचरन् || २६ || न – नहीं; बुद्धिभेदम् – बुद्धि का विचलन; जन्येत् – उत्पन्न करे; अज्ञानाम् – मूर्खों का; कर्म-संगिनाम् – सकाम कर्मों में; जोषयेत् – नियोजित करे; सर्व – सारे; कर्माणि – कर्म; विद्वान् – विद्वान व्यक्ति; युक्तः – … Read more

!! एक अद्भुत काव्य – “प्रेम पत्तनम्” !!-( प्रेम नगर 47 – “जहाँ जागना ही सोना है” ) : Niru Ashra

!! एक अद्भुत काव्य – “प्रेम पत्तनम्” !!-( प्रेम नगर 47 – “जहाँ जागना ही सोना है” ) : Niru Ashra

!! एक अद्भुत काव्य – “प्रेम पत्तनम्” !! ( प्रेम नगर 47 – “जहाँ जागना ही सोना है” ) गतांक से आगे – यत्रानिद्रत्वमेव सनिद्रत्वम् ।। अर्थ – जहाँ ( प्रेमनगर में ) जागना ही सोना है । *हे रसिकों ! ये बात ध्यान देने की है …कि जैसे निद्रा में सब कुछ विस्मृत करके … Read more

!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 105 !! भाग 2: Niru Ashra

!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 105 !! भाग 2: Niru Ashra

🍃🍁🍃🍁🍃🍁🍃 !! “श्रीराधाचरितामृतम्” 105 !!भाग 2 द्वारिका जाकर रह रहे हैं समस्त यदुवंशी ? उनके नायक हैं श्रीकृष्ण ? कीर्तिरानी नें आगे आकर ये और पूछा – द्वारिका कहाँ है ? समुद्र के किनारे ये कृष्ण नें ही बसाया है…….महर्षि नें उत्तर दिया । दूर है ? कीर्तिरानी नें पूछा । हाँ देवी ! दूर … Read more