🍃🍁🍃🍁🍃🍁🍃
!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 105 !!
कोयला भई न राख
भाग 3
महर्षि !
उछल पडीं थीं श्रीराधारानी ……….क्या सच में मेरे प्रियतम नें विवाह कर लिया ! ओह ! मैं कितनी खुश हूँ ………..मैं आज बहुत प्रसन्न हूँ ……….सच ! मेरे प्राणधन नें विवाह कर लिया ।
अब ठीक है …………अब उनकी सेवा अच्छी होगी ………….जब थके हारे मेरे प्रियतम शैया में जायेंगें…….तब उनके चरण चाँपनें वाली कोई तो चाहिये थी ना ! हँसी श्रीराधा रानी ……खूब हँसी ।
अच्छा बताओ महर्षि ! कैसी है मेरे प्रियतम की दुल्हन ?
अच्छा उनका नाम क्या है ? देखनें में सुन्दर है ?
मुझ से तो सुन्दर होगी ……..है ना महर्षि ?
वो तो करुणा निधान हैं मेरे प्रियतम ………..सबको स्वीकार करते हैं …..सुन्दरता असुन्दरता वे देखते कहाँ है ?
मुझे ही देख लो ना महर्षि ! मैं सुन्दर हूँ ? अरे ! मेरे जैसी तो इस बृज में अनेकन थीं …………मेरे जैसी ? फिर हँसी श्रीराधा रानी ।
महर्षि ! क्षमा करना …….मुझे ये अहंकार देनें वाले भी वही मेरे प्रियतम ही हैं …………….मुझे बारबार – राधे ! तू कितनी सुन्दर है ……..राधे ! तुम्हारी जैसी सुन्दरी कहीं नही है ………..
मैं भी आगयी उनकी बातों में…..और माननें लगी अपनें आपको सुन्दरी ।
अच्छा छोडो मेरी बातों को …………..मुझे ये बताओ – सुन्दर है ?
मेरे “प्राण” की दुल्हन सुन्दर है ? बताओ ना महर्षि !
महर्षि रो पड़े !
….श्रीराधा का ये महाभाव देखकर महर्षि हिलकियों से रो पड़े थे ।
चलो ! अब ये राधा प्रसन्न है ………..बहुत प्रसन्न है ……….मैं सोचती थी कि उनकी सेवा कौन करता होगा ? सेवक और सेविकाओं की सेवा में और पत्नी की सेवा में, अंतर तो होता ही है ………..कितनें थक जाते होंगें …..उनके तो शत्रु भी बहुत हो गए हैं ना ?
चलो ! बहुत अच्छा, विवाह कर लिया मेरे “पिय” नें ।
श्रीराधारानी विलक्षण भाव से भर गयी थीं आज ।
राजकुमारी होगी …….है ना ? हाँ किसी राजकुमारी से विवाह किया होगा , महर्षि ! बताओ ना ?
हाँ ………..राजकुमारी हैं । महर्षि को कहना पड़ा ।
अट्टहास करनें लगीं श्रीराधारानी ………..
मैं तो ग्वालिन ……..वन में वास करनें वाली ………जँगली असभ्य ……
फिर भी मुझ से इतना प्रेम किया उन्होंने…….मैं तो उनसे कहती थी …..मुझ में ऐसा क्या है ? तुम्हे तो स्वर्ग की सुन्दर कन्याएं भी मिल जायेंगी …….तुम्हे तो नाग लोक की सुन्दरी भी सहज प्राप्त हो जायेंगी …..कितना कहती थी मैं उन्हें ……पर वो बारबार राधे ! तेरो मुख नित नवीन सो लागे ……राधे ! तेरो मुख चन्दा है …..और मैं चकोर ।
बोलती जा रही थीं श्रीराधा ।
श्रीराधा की ये दशा देखकर बृषभानुजी और कीर्तिरानी रो रहे थे ।
“रुक्मणी”………..विदर्भ की राजकुमारी हैं …..रुक्मणि !
महर्षि शाण्डिल्य नें बताया ।
ठीक किया……..अब मैं बहुत प्रसन्न हैं …….अब मुझे उनको लेकर कोई चिन्ता नही होगी । प्रसन्नता से भर गयीं थीं श्रीराधा ।
पर ये क्या ! एकाएक फिर अश्रु बहनें लगे थे आल्हादिनी के नेत्रों से ।
मैनें उन्हें बहुत कष्ट दिया…….मेरे “मान” नें उन्हें बहुत कष्ट दिया ।
वे मेरे सामनें कितना डरते थे ……कातर बने रहते मेरे “मान” से ।
मेरी सखियों के सामनें हाथ जोड़ते रहते थे ……..मेरी प्यारी को मना दो ….मेरी प्यारी प्रसन्न हो जाए – उपाय बताओ ।
मेरे मनुहार में वे क्या क्या नही करते थे ……….. ……मैने अपनें पाँव भी दववाए उनसे ……बस मेरी प्रसन्नता ही उनके लिये सबकुछ थी ।
इस गर्विता राधा में था ही क्या ! न रूप , न कोई गुण , बस था तो गर्व …….केवल गर्व में रहती थी मैं ।
पर रुक्मणि तो अच्छी होंगी ! सुन्दर होगी ! गुणवान होगी !
मेरी तरह तो नही ही होगी ………….अच्छा हुआ विवाह कर लिया मेरे प्रिय नें ………अच्छा हुआ ! बहुत अच्छा हुआ ………..
ये कहते हुए श्रीराधारानी वहाँ से चली गयीं …….कीर्ति रानी दौड़ पडीं थीं श्रीराधा के पीछे ………सखियों से सम्भाला था कीर्ति मैया को ……पर श्रीराधा अपनें कुञ्ज में जाकर बैठ गयीं ……शान्त भाव से ……….आज इस भाव समुद्र में कोई तरंगें नही थीं।
क्या कहोगे वज्रनाभ ! ये प्रेम का महासागर है …………डूबनें वाला ही इसकी थाह पाता है …….पर वो भी बता नही पाता …..क्यों की शब्दों की सीमा है ………..और प्रेम असीम ।
क्रमशः ….
शेष चर्चा कल –
🌷 राधे राधे🌷


Author: admin
Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877