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July 20, 2025 9:01 pm

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।। एक अद्भुत काव्य -“प्रेम पत्तनम्” ।।-( प्रेम नगर 48 – “जहाँ वियोग ही संयोग है” ) : Niru Ashra

।। एक अद्भुत काव्य -“प्रेम पत्तनम्” ।।-( प्रेम नगर 48 – “जहाँ वियोग ही संयोग है” ) : Niru Ashra

।। एक अद्भुत काव्य -“प्रेम पत्तनम्” ।।

( प्रेम नगर 48 – “जहाँ वियोग ही संयोग है” )

गतांक से आगे –

यत्र वियोग एव संयोग : ।।

अर्थ – जहाँ ( प्रेम नगर में ) वियोग में ही संयोग है ।

उद्धव सन्देश लेकर गये हैं बृज । सायंकाल बीत रहा है ….किन्तु रात्रि नही कह सकते ।
नन्दराय गौशाला से अभी आये नही है …एक ग्वाल उद्धव को लेकर आया और नन्द महल बताकर वो चला गया । उद्धव ने उस ग्वाल से कहा भी …तुम चलो भीतर ..मैं किसी को जानता नही हूँ …किन्तु वो ग्वाल ये कहते हुए चला गया कि मैया यशोदा की स्थिति अब देखी नही जाती ।

उद्धव भीतर गये …कोई नही है वहाँ, अन्धकार है ….हाँ एक गोपी दीपक जला रही है …उस गोपी से उद्धव ने पूछा …श्रीनन्दराय जी कहाँ हैं ? गोपी बहुत धीरे से बोल रही थी ….वो गौशाला से लौटे नही हैं । माता यशोदा ? उद्धव ने फिर पूछा । संकेत से उस गोपी ने बताया ….वहाँ हैं ….उस कक्ष में बैठीं हैं । उद्धव गये वहाँ । ये क्या ? उद्धव को लग रहा है महल का कोना कोना उनसे पूछ रहा है ….हमारा कन्हैया आगया ? उस महल का अणु परमाणु पूछ रहा है ….तुम ले आए हमारे कन्हैया को ? उद्धव चले जा रहे हैं ..उन्हें ये अपना ही भ्रम लग रहा है । दीपक दो तीन और जल गये हैं ….मैया यशोदा के पास उद्धव पहुँच गये….वो प्रणाम करके वहीं बैठ जाते हैं ….किन्तु ये कर क्या रही हैं ? उद्धव जब ध्यान से देखते हैं….तब चौंक जाते हैं …ये तो पालना झुला रही हैं ….उद्धव सुनते हैं …वो बहुत धीरे धीरे बोल रही हैं …”सोजा मेरे लाला सोजा, निंदिया रानी आ गयी, मेरे लाला को सुला गयी, मेरा लाला ब्याह करेगा , घोड़ी पर अब ये चढ़ेगा , राधा को ये ब्याहने जाएगा” …ये कहते हुये मैया हंस रही है …देख देख , राधा का नाम सुनते ही हंसने लगा । और मैया की हंसीं ….गूंज उठी है पूरे महल में । उद्धव ये सब देख रहे हैं …ओह ! ये कुछ समझ नही पा रहे कि – ये हो क्या रहा है ? बहुत देरी हो गयी है उद्धव को बैठे हुये ….तब उन्हें कहना पड़ा …मैं श्रीकृष्ण सखा उद्धव ! आपको प्रणाम करता हूँ ।

चुप ! चुप ! बोल मत , बड़ी मुश्किल से सुलाया है मैंने अपने लाला को …तू जोर से बोलेगा ना , तो मेरा लाला जग जाएगा । इसलिए बोल मत । फिर सुलाने लगीं ..पालना झुलाने लगीं ।

उद्धव आश्चर्यचकित हैं …ये क्या स्थिति है इस मैया की …वियोग में संयोग ?

जी , हे रसिकों ! ये प्रेम नगर है इसकी अटपटी रीतों में एक रीत ये भी है कि …आपका अपने प्रिय से वियोग जब तीव्र हो जाएगा तब आपको लगने लगेगा कि …मेरा प्यारा तो यहीं है …मेरा प्यारा तो मेरे पास है । जी , ये प्रेम नगर में ही सम्भव है ।


कुँज में श्याम सुन्दर आये और श्रीप्रिया जू को जैसे ही उन्होंने आलिंगन किया …प्रिया जी वहाँ से हट गयीं …श्याम सुन्दर को अपार कष्ट हुआ …क्यों मानिनी बन बैठीं थीं प्रिया जी …ये समझ में ही नही आया श्याम सुन्दर के …कारण ? अब प्रेम में कोई विशेष कारण होता भी तो नही है । श्याम सुन्दर को दुःख हुआ इस बार ये बिना मनाये ही वहाँ से चले गये ।

उसी समय फिर ललिता सखी आगयीं , स्वामिनी ! क्या हुआ , श्याम सुन्दर अश्रुओं को पोंछते हुए क्यों चले गए ? क्या श्याम सुन्दर गये ! प्रिया जी ने चौंक कर पूछा । हाँ वो तो गये ? ये सुनते ही अब प्रिया जी रोने लगीं ….मैंने तो बस रति विलास के लिए ये सब किया था …उन रसिक शेखर को ये समझना चाहिए ना ! ललिता तुम जाओ ! और उनको मना कर यहाँ लाओ । ललिता गयीं …तो वहाँ क्या देखती हैं कि ….श्याम सुन्दर सुध बुध खो बैठे हैं ….वो केवल “राधा” “राधा” बोल कर बेसुध पड़े हैं ….हे श्याम सुन्दर ! तुम चलो वहाँ, तुम्हारी प्रिया जू तुम्हारे प्रेम में आर्तनाद करती हुयी तुम्हें पुकार रही हैं । हे ललिते ! श्याम सुन्दर रोते हुए बोले ….अब मेरे देह में शक्ति नही रही कि मैं उठकर वहाँ तक भी जा सकूँ …तू मेरी प्यारी की सखी है तू मेरा काम कर दे …उनको यहीं ले आ । ललिता सखी श्याम सुन्दर की दशा देखकर कुछ नही बोलीं और वो श्रीराधा के पास चली गयीं । किन्तु ये क्या ! ललिता ने श्रीराधा रानी के पास आकर देखा तो ….वो हंस रहीं हैं ….वो मुस्कुरा रही हैं । ललिता आयीं …अरे ! ललिता आ , देख मेरे प्रीतम क्या कह रहे हैं …ये कह रहे हैं ….ललिता कहाँ गयी ….मैं तो यही हूँ ….मैं तो तुम्हें छोड़कर कहीं जा ही नही सकता । ललिता के कुछ समझ नही आरहा ….उसे दिखाई भी नही दे रहे श्याम सुन्दर ….श्रीराधा जी फिर हंसीं …अब तू जा , प्यारे शरमा रहे हैं तेरे कारण । ललिता सखी चली गयी ….वो श्याम सुन्दर के पास गयी ….किन्तु यहाँ भी ……श्याम सुन्दर हंस रहे हैं ….और ललिता को देखते हुए बोले ….प्रिया जी कह रही हैं …ललिता को कहाँ भेजा ….क्यों भेजा …मैं तो तुम्हारे पास ही थी । ललिता को कुछ समझ नही आ रहा । ये क्या है ? क्यों कि प्रिया जी भी यहाँ दिखाई नही दे रहीं । ललिता सखी उठकर चली गयीं …..किन्तु चलते चलते सोच रही हैं …..ये क्या हो रहा है ? तब ..ओह ! ये वियोग में संयोग है । वियोग अपनी सीमा पार कर जाता है ….तो संयोग की अनुभूति होती है । ललिता को बात समझ में आगयी है ।

हे रसिकों ! प्रेम नगर में जो रहने वाले हैं वो इस रहस्य को समझते हैं ।

शाश्वत ने पूछा …ये प्रेम नगर क्या है ? गौरांगी बोली ..श्रीधाम वृन्दावन ।

बात सही है ….आप देखिए श्रीवृन्दावन में सब उल्टी रीत है ।

श्रीबाँके बिहारी जी में मंगला आरती नही होती …और श्रीराधाबल्लभ जी में एकादशी को कढ़ी भात का भोग लगता है । वेद और शास्त्र की धज्जियाँ उड़ाई हैं …प्रेम नगर श्रीवृन्दावन ने ।

शेष अब कल –

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