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July 21, 2025 5:02 pm

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श्रीजगन्नाथ मंदिर सेवा संस्थान के अध्यक्ष श्रीमती अंजली नंदा जी तथा संस्थान के अन्य भक्त जनो सहीत श्री सुरेशभाई गुंडीचा मंदिर सभी ने संयुक्त रुप मेंउपस्थित रहकर श्रीमहेशभाई आगरीया को भगवान श्रीजगन्नाथ जी की मुल छबी भेट की ।

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!! एक अद्भुत काव्य – “प्रेम पत्तनम्” !!-( प्रेम नगर 51 – “जहाँ छोटापन ही बड़प्पन है” ): Niru Ashra

!! एक अद्भुत काव्य – “प्रेम पत्तनम्” !!-( प्रेम नगर 51 – “जहाँ छोटापन ही बड़प्पन है” ): Niru Ashra

!! एक अद्भुत काव्य – “प्रेम पत्तनम्” !!

( प्रेम नगर 51 – “जहाँ छोटापन ही बड़प्पन है” )

गतांक से आगे –

यत्र लघुत्वमेव गुरुत्वम् ।।

अर्थ – जहाँ ( प्रेम नगर में ) लघुत्व अर्थात् छोटेपन को ही बड़प्पन माना जाता है ।

हे रसिकों ! इस प्रेमनगर में छोटा बनकर रहना ही बड़ा बनना है । यहाँ जो छोटा है वही बड़ा है …जो झुका है ..जहाँ के लोग झुके हैं …जहाँ के लोग झुके रहते हैं – प्रेमनगर वही तो है ।

श्रीवृन्दावन क्या है ? यहाँ से श्रीवृन्दावन की सीमा आरम्भ होती है ..ये कैसे समझा जाये ?

“जहाँ की लताएँ नीचे की ओर झुकी हैं ….वही श्रीवृन्दावन है “

मुझे स्मरण है पागलबाबा से एक ने प्रश्न किया था तो बाबा ने उसका ये उत्तर दिया था ।

इसका अर्थ है ..प्रेमनगर में वही रह सकता है ..जो अपने को छोटा समझता है ..और जो अपने को छोटा समझता है …वही प्रेमनगर में बड़ा होता है ..यानि छोटापन ही यहाँ बड़प्पन की निशानी है ।

आप बड़ा बनकर प्रेम में कुछ नही पा सकते, प्रेम में पाने के लिए तो आपको छोटा बनना ही होगा ।

****आज विलम्ब हो गया श्यामसुन्दर को श्रीराधारानी के पास आने में । सखाओं ने और अभिभावकों ने घेर लिया था …श्याम सुन्दर ने बहुत कहा …मुझे जाने दो …आवश्यक कार्य है …तो सखा नयन मटकाते हुए बोले ….हमें सब पता है तुझे कौन सा काम है ! हमारा मुँह मत खुलवा । श्याम सुन्दर कुछ बोल न सके ….क्यों की बाबा नन्द जी भी थे और अन्य भी । इसलिये विलम्ब हो गया आज । यहाँ से छूटे तो भागे अपनी श्रीराधारानी के पास ।

किन्तु श्रीराधा तो उधर रूठी बैठीं हैं ….मानवति हो गयी हैं …अच्छा ख़ासा मान कर गयीं हैं ।

श्यामसुन्दर जब उनके पास गये …तब श्रीराधा ने उस ओर देखा भी नही । श्याम सुन्दर डर रहे हैं ….श्याम सुन्दर डर से काँप रहे हैं …ओह ! अद्भुत लीला है …जिनसे काल भी काँपता है …वो श्रीराधा के भृकुटी बंक होने से काँप रहे हैं …..काँपना पड़ेगा ….क्यों की ये प्रेमनगर है….यहाँ तो आप लघुत्व यानि छोटे बने रहोगे तभी आपमें गुरुत्व है यानि आप बड़े हो , ये समझा जायेगा ।

श्याम सुन्दर अब सोच रहे हैं क्या किया जाये ! सारे कार्य मेरे लिए सरल हैं …बड़े बड़े राक्षसों को मारना या धनुष आदि तोड़ना , या सागर में सेतु बाँधना …या इस सृष्टि को बिगाड़ कर दूसरी सृष्टि पल में ही खड़ा कर देना , सब मेरे लिए सरल कार्य हैं …किन्तु …श्याम सुन्दर ने अपनी पीताम्बर से मस्तक का स्वेद पोंछा …मेरे लिए सबसे कठिन कार्य है ये – श्रीराधारानी को मनाना । तो श्याम सुन्दर अब तैयार हुए ….फेंट कसी …और सीधे साष्टांग प्रणाम करने लगे ।

इस पर भी श्रीराधारानी ने कोई ध्यान नही दिया ….तो उठकर श्याम सुन्दर बोले …हाथ जोड़कर बोले ….हे स्वामिनी ! इस विलम्ब में मेरा कोई अपराध नही है । व्यंग में श्रीराधा रानी हंसीं और बोलीं …क्षमा करो, अपराध मेरा है जो तुमसे प्रेम कर बैठी । श्रीराधारानी बोलीं ।

श्याम सुन्दर बैठ गये …और जैसे ही श्रीजी के चरण पकड़ने लगे …श्रीजी ने उन्हें हटा दिया और कहा …रे धूर्त ! दूर बैठो । दूर जाकर श्याम सुन्दर बैठ गये ….कुछ देर बोले ही नही …फिर बोले ….हे भामिनी ! आप तो जानती हो …मेरा मन आपमें ही लगा रहता है …आपको छोड़कर ये कहीं जाता ही नहीं है ….ये सब श्याम सुन्दर हाथ जोड़कर बोल रहे हैं । श्रीराधा रानी फिर भी कुछ नही बोलीं ….उन्होंने देखा भी नही ।

कितना अच्छा होता ना कि मैं अच्छे कुल में जन्म ही न लेता ! कितना अच्छा होता ना कि मैं गोपराय का पुत्र ही न होता ….ये सब अच्छे कुल अच्छे परिवार में जन्म लेने के कारण ही हो रहा है ….हे राधे ! अब तो मैं चाहता हूँ इस कुल को ही त्याग दूँ ….यही अच्छा होगा । इतना कहकर श्याम सुन्दर मौन हो गये …कुछ देर तक जब कोई आवाज नही आयी ….तब श्रीजी ने देखा ….तो श्याम सुन्दर रो रहे थे । क्या हुआ ऐसा श्याम सुन्दर ! जिसने कारण आप कह रहे हो कि मैं कुल का त्याग कर दूँगा ? श्रीराधारानी ने दयावश पूछ लिया ….और क्या ? ये उच्च कुल ही तो है जो हमें मिलने से रोकता है ….कुल के बड़े लोग कहते हैं …रुक जा , अभी मत जा , तो कुलीन घर का व्यक्ति कैसे अपने बड़ों की बात को त्याग दे । मैं त्याग नही पाया …मैंने उनकी आज्ञा , मैंने अपने बड़ों की आज्ञा का मान रखा और रुक गया ….किन्तु उससे क्या ? मेरी तो यहाँ स्वाँस पर बन आयी ना , श्रीराधारानी घबड़ा गयीं , बोलीं – ये क्या कह रहे हो श्याम सुन्दर ? तुम्हारी स्वाँस पे बन आयी ? और क्या , हे राधे ! तुम मेरी स्वाँस हो । तुम रूठ जाती हो तो मुझे स्वाँस लेने में कठिनाई होने लगती है ….मुझे लगता है मेरा जीवन मुझ से रूठ गया है ….आज से मैं कुल गोत्र सब त्यागता हूँ …..ताकि मुझे कुलीन वंश की परम्परा में बँधना न पड़े । ये कहते हुए श्याम सुन्दर रोने लगे ….तो दौड़कर प्रिया जू ने अपने हृदय से अपने हृदयेश को लगा लिया था ।

यही है झुकना , यही छोटापन चाहिए प्रेमनगर में ….इसे छोटापन तो संसार कहता है …प्रेम नगर में तो यही बड़प्पन है जी !

हे रसिकों ! ये याद रखना …..छोटा बनकर ही आप प्रेम नगर में रह सकते हो ।

शेष अब कल –

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