अध्याय 3 : कर्मयोग -श्लोक 3 . 30 : Niru Ashra
अध्याय 3 : कर्मयोग श्लोक 3 . 30 मयि सर्वाणि कर्माणि सन्न्यस्याध्यात्मचेतसा |निराशीर्निर्ममो भूत्वा युध्यस्व विगतज्वरः || ३० || मयि – मुझमें; सर्वाणि – सब तरह के; कर्माणि – कर्मों को; संन्यस्य – पूर्णतया त्याग करके; अध्यात्म – पूर्ण आत्मज्ञान से युक्त; चेतसा – चेतना से; निराशीः – लाभ की आशा से रहित, निष्काम; निर्ममः … Read more