” रथ यात्रा “
रथ अर्थात जिसके उपर आरुढ हो कर निर्णायक स्थली पर पहुंचना
यह शरीर रथ है और शरीर में है आत्मा अर्थात यह आत्मा शरीर पर आरुढ होता है और शरीर रथ को हंकारते है – पुरुषार्थ करके निर्णायक स्थली पर पहुंचाये इसे रथ यात्रा समझते है।
हमारे संस्कार और संस्कृति कितनी अनोखी है किहर मन हर धन हर तन हर वन हर जीवन के परिवर्तन को आध्यात्मिक स्वरुप देते है। अदभुत
” रथ यात्रा ” कि आध्यात्मिक स्वरुपता में जो आत्मा आरुढ होता है अर्थात हम निमंत्रित करते है आत्मा को – वाह!
हम हमारे शरीर को इतना श्रेष्ठ सुसज्जित करते है किजिसे आरुढ होना है वह आत्मा यह शरीर के कोई भी स्थान पर आनंद पा सके।
अर्थात शरीर जिसमें प्राण है वह शरीर में आत्मा का प्रार्दुभाव करना – ओहह! सर्वोत्तम
मेरे प्रभु! आपने अदभुत लीला रची है यह ब्रह्मांड में – अलौकिक कृपा बरसाई है यह संसार में
ओ तुने! ओ तुने! तुने! नही करनी है देर अरे ऑ साँवरिया
” Vibrant Pushti “” जय श्री कृष्ण ”


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