!! एक अद्भुत काव्य – “प्रेम पत्तनम्” !!
( प्रेम नगर 59 – “जहाँ असती ही सती है” )
गतांक से आगे –
यत्रासतीत्वमेव सतित्वम् ।।
अर्थ – जहाँ ( प्रेमनगर में ) असती ही सती कहलाती है ।
*हे रसिकों ! ये प्रेमनगर है यहाँ जो व्यभिचारिणी है …जिसे संसारी लोग “असती” कहते हैं …पूर्व के लोग “छिनार” कहते हैं …वही यहाँ पतिव्रता है …वही इस प्रेमनगर में “सती” कहलाती है ।
सावधान ! ये प्रेममार्ग है , ये प्रेमनगर है, यहाँ सब कुछ उलट पुलट है । आज का सूत्र और भी विचित्र है, चलिए इस सूत्र पर एक सुन्दर सी झाँकी का दर्शन कीजिए – सूत्र स्पष्ट हो जाएगा ।
नन्दगाँव में किसी गोप कुमार का विवाह हो गया है ….पास के गाँव से हुआ था …वो नवविवाहिता बहु अत्यन्त सुन्दर थी …सुन्दर ही नही वो सुशील भी थी …स्त्री देह है इसलिए पूर्णमर्यादित थी ….इस बात का इसे अहंकार भी था । विवाह हुआ उस गोप कुमार का ….यही बहु जब घर में आयी तब उसकी सासु माँ ने अपनी बहु को समझाया । देख बहु ! इस बात को समझ ….एक लड़का रहता है इस नन्दगाँव में , अत्यन्त सुन्दर है …उसको देखना मत । बहु ने अपनी सासु माँ से कहा …माता ! मैं पूर्णपतिव्रता हूँ ….मैं अपने पति को छोड़कर किसी को क्यों देखूँ ? वाणी में तेज था बहु के ….तो सासु माँ निश्चिन्त हो गयी ।
बहु ! मैं समझ गयी , तू सती है ….सदमार्ग में चलने वाली पतिव्रता है ….किन्तु …तुझे केवल वो लड़का श्याम सुन्दर ही नही बिगाड़ेगा ….यहाँ की जो गोपियाँ हैं ना …सब बिगड़ी हुयी हैं ।
कैसे बिगड़ी हुयी सासु माँ ? नाक भौं सिकोड़ कर वो बहु पूछ रही थी । देख , अपने पति से प्रेम न करके …उस कन्हैया से प्रेम करती हैं ….सब बिगड़ी हुई हैं इसलिए उनका संग मत करना ।
नर्क मिलेगा उन्हें तो ! वो नई बहु तुरन्त बोल उठी ।
हाँ , इसलिए तू उन कुलटाओं का संग मत करना…..सासु माँ सभी गोपियों को गाली देकर और बोली । ना , मैं तो संग क्या उनका मुख भी ना देखूँ । बहु ने भी कह दिया था ।
अब “मुँह दिखाई” विधि होने लगी ….सब आयीं ….अड़ोस पड़ोस की सब आयीं …सब से मिली बहु …सबने मुँह देखा और मुँह दिखाई दी । अब बारी थी नन्दगाँव के उन गोपियों की ….जो विशेष कन्हैया से लगी हुई थीं …वो सब झुण्ड बनाकर आयीं …और हंसते हुए बोलीं …अरी बहु ! सुना है तेरा चन्दा सा मुखड़ा है …दिखा दे …बड़े प्रेम से बोलीं थीं ….लेकिन पतिव्रता का भूत जो सिर में सवार था उस बहु के …उसने मुँह नही दिखाया …दो टूक और बोल दी ….”मैं तुम जैसी कुलटाओं का मुख भी नही देखती…मैं पतिव्रता हूँ ….मेरा पति ही मेरे लिए सब कुछ है …किन्तु तुम लोग किसी श्यामसुन्दर नामके लड़के से लगी हो …ये गलत है” । बोलने के लिए तो और भी बोलने जा रही थी वो बहु …लेकिन ये गोपियाँ भी क्यों सुनतीं ….उठ गयीं और बोलीं …सुन ! हम तो ऐसे ही सहज आगयीं तेरे पास …हट्ट , तू क्या हमें नही देखेगी …हम तुझे नही देखेंगी….तू हमें कुलटा कह रही है ….तू है कुलटा , दारिकी !
गोपियाँ क्रोध में चली गयीं । बात आयी गयी हो गयी । समय बीतता गया ।
आज इस नई बहु ने श्याम सुन्दर को देख लिया ….ये गयी थी यमुना जल भरने तो वहीं श्याम सुन्दर जल क्रीड़ा कर रहे थे ….वो नीला श्रीअंग , गठीला श्रीअंग …जल से बिखरे घुंघराले केश ….ये सब देखते ही नई बहु तो अपना दिल हार बैठी …..इसको ज्वर चढ़ गया ….वहीं मूर्छित हो गयी ….कुछ बूढ़ी बड़ी स्त्रियों ने देखा तो उठाकर घर छोड़ आयीं । अब तो सास ससुर परेशान , पति परेशान …कि मेरी पत्नी को हुआ क्या ? क्या भूत लग गया या कोई शारीरिक कष्ट हो गया ….बड़े बड़े वैद्य बुलाए गये …..नाड़ी देखते हैं ….सब कुछ ठीक है …किन्तु भीतर से कुछ ठीक नही है । बहु आँखें खोलती है ….उसे श्याम सुन्दर का वो दिव्य सुन्दर श्रीअंग दिखाई देता है …ओह ! अब क्या करें ! वो देख रही है किन्तु बोलती नही है । मथुरा तक के वैद्य आचुके हैं …औषधी भी दे रहे हैं ….किन्तु कोई लाभ नही हो रहा ।
आज एक माह बीत गये …उस बहु का रोग जस का तस बना हुआ है । अब क्या करें ।
ये खबर पहुँची उन गोपियों के पास …..कि उस नयी बहु की हालत खराब है …..वो सब हंसीं ….समझ गयीं थीं कि उसे रोग क्या लगा है । एक दिन सब मिलकर गयीं …..बहु लेटी हुई है ….ज्वर जाता ही नही है ….बोलती है नही ….खाती है नही …सासु ने ये बातें उन गोपियों को बताई ….वो गोपियाँ बोलीं …हम देखती हैं इसे हुआ क्या है । गयीं बहु के कक्ष में …बहु ने भी देखा ये तो वही गोपियाँ हैं …..जिसे कुलटा कहकर भगाया था ….बहु को देखकर ये हंसीं ….फिर धीरे से व्यंग में बोलीं …प्रणाम पतिव्रता जी ! कहिए कैसी हो ? बहु क्या बोले ….तभी उसका पति एक वैद्य लेकर आया …गोपियाँ वहीं बैठ गयीं …..वैद्य ने नाड़ी देखी ….फिर वैद्य ने कहा ….कोई बात नही है …आचार्य चरक ने इसकी औषधि बताई है …मैं औषधि बनाकर दूँगा ये ठीक हो जाएगी ….वैद्य चले गये ….पति भी उनके साथ चले गये । तब गोपियाँ हंसते हुए बोलीं ….हे महासती देवि ! तुम्हें जो रोग हुआ है ना …उसका इलाज न आचार्य चरक के पास है …न पतंजलि के पास …..किसी के पास नही है । उस बहु ने नयनों के संकेत से पूछा …फिर किसके पास है ?
एक गोपी हंसते हुए बोली ….हमारे पास है । फिर बताओ ना ! संकेत से ही पूछा उस बहु ने …..तो एक गोपी कान के पास गयी और बोली …श्याम सुन्दर को देख लिया ना ? बहु ने सिर ‘हाँ’में हिलाया ….तो गोपी बोली अब तो इसका एक ही ईलाज है …..कि हमारी जैसी कुलटाओं का संग करो …..इस प्रेम की औषधि ही यह है ….कि जो प्रेम में डूबी हुयी है …जो उन्मत्त प्रेम करती है ….उन “छिनाल” का संग करो” वो तुझे उस लड़के के बारे में बतायेंगी ….उसकी मीठी मीठी बातें चटकारे लेकर सुनायेंगी ….तभी तेरा ये रोग शान्त होगा । नही तो ये रोग बढ़ता ही जाएगा । गोपियाँ हंसते हुए बोलीं ….ये प्रेम नगर है …यहाँ असती ही सती कहलाती हैं ..तेरे जैसी सती यहाँ कुलटा हैं ।
आहा ! हे रसिकों ! प्रेम में तो कोई “छिनाल” मिल जाये …और वो बातें बताये हमारे यार की ।
“छिनार” समझते हो ? जो अपने मूल ( नाल ) से छिन्न ( अलग ) हो गया । गंगा अपने मूल धारा से अलग हो गयी । स्त्री अपने मूल पति से अलग हो गयी और परपुरुष से लग गयी । वही असती है , छिनाल है ।
क्या ये गोपियाँ छिनाल हैं ? इसका उत्तर कल के सूत्र में देंगे ।
आज तो यही जानिए कि “असती” ही इस प्रेमनगर में “सती”है ।
शेष अब कल –


Author: admin
Chief Editor: Manilal B.Par Hindustan Lokshakti ka parcha RNI No.DD/Mul/2001/5253 O : G 6, Maruti Apartment Tin Batti Nani Daman 396210 Mobile 6351250966/9725143877