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!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 110 !!
श्रीराधा की अद्भुत विस्मृति…
भाग 3
दूर है ना द्वारिका …………….बहुत दूर !
पर मैं कैसे जाऊँ वहाँ ? दूर है तो मैं कैसे जाऊँ ?
फिर हँसी ………उन्माद चरम पर पहुँचा श्रीराधारानी का ।
हाँ ......मैं इस देह को त्याग दूंगी .......और फिर भूतनी बन जाऊँगी .............ललिता ! भूतनी के लिए तो दूर और पास कुछ नही होता ना ! वो तो कहीं भी जा सकती है......मैं जाऊँगी.......द्वारिका जाऊँगी ............नही नही छुऊँगी नही अपने प्रियतम को .........भूतनी का छूना अच्छा नही होता ना !
पर मैं उन्हें देखूंगी …………..दूर से देखूंगी ………….उनकी सेवा होती है कि नही ……मैं देखूंगी ……….उनके चरण चाँपति हैं कि नही उनकी दुल्हनें ……..मैं देखूंगी ………मैं बस उन्हें देखती रहूँगी ।
ये क्या ! ये कहते हुए लोट पोट हो रही हैं धरती पर ।
वो तपते कुन्दन की तरह जिनका अंग था …………अब कैसा काला होता जा रहा है …………..शरीर सूख रहा है ………मुख मण्डल पीला पड़ रहा है …………..अधर सूख गए हैं पपड़ी निकल रही है ।
पर एकाएक ………………….
सखी ! ललिता ! देख ! नगाढ़े बज रहे हैं ……………सब झूम रहे हैं ………..नन्द के आनन्द भयो ….जय कन्हैया लाल की ……..
दधि कांदा शुरू हो गया है …………….बधाई लेने चल ना ।
चमक वैसी ही मुखमण्डल में छा गयी फिर ……………तपते सुवर्ण की तरह वापस उनका देह हो गया …………दिव्य तेज़ छा गया उनके आस पास ……….आनन्द से उठकर बैठ गयीं ।
मेरे श्याम सुन्दर नन्दभवन में मेरी प्रतीक्षा कर रहे हैं……..चल सखी !
श्रीराधा की ये स्थिति देखकर ……….मैं जोर जोर से रोनें लगा था ।
मैं संकर्षण …………………रो रहा था ………………….
विस्मृति हो गयी थी फिर श्रीराधा को ……..विस्मृति ये हो गयी कि …..”कृष्ण द्वारिका गए हैं”……….इस बात को ही भूल गयीं ।
अपनें आँसू पोंछते हुए श्रीदामा नें पूछा – दाऊ भैया ! राधा का बीच बीच में भूल जाना ……ये अच्छा है ना !
मैं कुछ बोलनें की स्थिति में नही था ……………..मैं क्या कहूँ ? ये तो प्रीति प्रतिमा हैं राधा ।
हाँ……….ये विस्मृति ही राधा का जीवन बचाये हुए है ।
पर राधा का जीवन कौन बचाएगा ? ये स्वयं ब्रह्म आल्हादिनी हैं ……फिर ये सब क्या है ?
लीला है ! हाँ ……..ये सब मेरे कन्हैया की लीला है…….पर अकेले मेरे कन्हैया से कुछ नही होता ….इसलिये ये उनकी आल्हादिनी हैं ।
मेरी तो इच्छा हो रही थी कि ……मैं दौडूँ और इन स्वामिनी के चरणों को पकड़ लूँ ……….पर मर्यादा को तोड़नें की मुझ में हिम्मत न थी ।
मैने बस हाथ जोड़कर प्रणाम किया था श्रीराधा को ।
बलराम बरसानें से लौट कर नन्दगाँव आगये ……….पर अब बलभद्र के भी अश्रु बहनें शुरू हो गए थे …….हे वज्रनाभ ! ये प्रेम है ही ऐसा ।
शेष चरित्र कल –
💞 राधे राधे💞


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