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June 6, 2025 5:17 am

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दमन में सड़क सुरक्षा अभियान को मिली नई दिशा, “Helmet Hero “मुहिम के अंतर्गत आयोजित हुई जागरूकता ग्राम सभा माननीय प्रशासक श्री प्रफुलभाई पटेल के कुशल नेतृत्व में दमन में सड़क सुरक्षा के प्रति जनजागरूकता अभियानोंको नई गति

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!! दोउ लालन ब्याह लड़ावौ री !!-( श्रीमहावाणी में ब्याहुला उत्सव )भूमिका – नित्य वृन्दावन: Niru Ashra

!! दोउ लालन ब्याह लड़ावौ री !!-( श्रीमहावाणी में ब्याहुला उत्सव )भूमिका – नित्य वृन्दावन: Niru Ashra

!! दोउ लालन ब्याह लड़ावौ री !!

( श्रीमहावाणी में ब्याहुला उत्सव )

भूमिका – नित्य वृन्दावन

जै वृन्दावन नित्य जय , नित्य कुँज सुख सार ।
जै श्रीराधा पिय जहाँ , बिहरत नित्य बिहार ।।

हे रसिकों ! सखी भाव से भावित होकर हमें चलना है अब नित्य वृन्दावन की ओर ।

ये नित्य वृन्दावन है , जी, इसी को कुँज , निकुँज ,नित्य निकुँज , निभृत निकुँज कहा गया है । यहाँ तक पहुँच पाना बिना कृपा के सम्भव नही है…आप साधना के द्वारा यहाँ तक नही पहुँच सकते ।यहाँ पर तो श्रीवृन्दावन की ही कोई सखी कृपा करदे तभी पहुँचना सम्भव है ।


श्रीहरिप्रिया सखी जू की ……जय जय जय ।

दोपहर की वेला है ….युगल सरकार को राजभोग कराकर प्रमुख सखियों ने सुला दिया है ….अब ये जागेंगे मध्याह्न में । एक सखियों का यूथ अभी अभी नित्य वृन्दावन में आया है , ये “मोरछली वृक्ष” के नीचे सब बैठ गयीं हैं …..इन सखियों की प्रमुख सखी हैं …श्रीहरिप्रिया सखी , जिनकी ये सब प्रतीक्षा कर रहीं थीं कि तभी सखियों के मध्य ये श्रीहरिप्रिया सखी पधारीं ….अन्य सखियों के आनन्द ठिकाना नही था , सबने इनकी जयजयकार करी ….तो श्रीहरिप्रिया ने इधर उधर देखकर सब को जयकारे के लिए मना किया …और सखियों के मध्य ये विराज गयीं ।

“जो युगल की उपासना करता है …जिनके युगल ही सर्वस्व हैं …जो हमारी स्वामिनी श्रीराधा के नामों का जाप करता है …वही इस “नित्य वृन्दावन” में आ पाता है …हरिप्रिया सखी ने कहा था।

हाँ , आपकी कृपा हुयी है तभी तो हम यहाँ आ पायीं हैं ….ये नयी नवेली सखियाँ हैं जो अभी अभी इस नित्य वृन्दावन में आयी हैं वही कह रही थीं ।

नही , मेरी कृपा से नही …”श्रीरंगदेवि जू की कृपा से”…हरिप्रिया सखी ने सिर झुकाकर कहा ।

उन्होंने ही इस रस को पृथ्वीलोक में फैलाया …जिससे जो जन्मों जन्मों से पाप पुण्य के झमेले या बन्धन मुक्ति के फेरे में पड़े थे उन्हें इस रसामृत का चस्का लगाकर “युग्मतत्व” के इस नित्य वृन्दावन की ओर आकर्षित किया । इसलिए तुम सब मेरी जय नही …श्रीरंगदेवि सखी जू की जय बोलो ।

हरिप्रिया सखी के कहने से …नई नवेली सखियों ने श्रीरंगदेवि सखी जू की जय जयकार करी ।

हमें निज रूप चाहिए , हमें नाम भी चाहिए । वो सब सखियाँ कहने लगीं थीं ।

और हमें इस नित्य वृन्दावन के विषय में भी जानना है । एक सखी ने ये भी कहा ।

मुस्कुराने लगीं हरिप्रिया ….हे सखियों ! तुम्हारा निज रूप यहीं है…..सबके रूप हैं और सबके पहले से ही नाम निर्धारित हैं । नयी नवेली सखियाँ चकित हो गयीं थीं …..हरिप्रिया सखी समझ गयीं ….और वो उन सबको लेकर एक अद्भुत महल में गयीं ….जहाँ अनगिनत मूर्तियाँ थीं ….उन मूर्तियों की कोई संख्या नही थी ….सुन्दर सुन्दर सखियों की मूर्तियाँ । उन नयी नवेली सखियों ने अपना अपना रूप पहचान लिया था और उन्हीं रूप में वो सब स्थित हो गयीं थीं …उन सबको नाम भी मिल गया था । “अब तुम को सेवा में लग जाना है”…..ये कहते हुए हरिप्रिया सखी जब उस महल से बाहर जाने लगीं ….तो नई सखियों ने हरिप्रिया जू के चरण पकड़ लिए …हरिप्रिया सखी हंसीं ….मैं तुमसे कहूँ और तुम कुछ पूछो …इतना समय नही है मेरे पास …अभी मुझे श्रीरंगदेवि जू के पास जाना है ….मध्याह्न में युगलवर को जगाने का समय हो रहा है …इसलिये मैं स्वयं ही तुम्हारे मनोभावों को जानते हुए बता रही हूँ तुम सबको …ध्यान से सुनो ….ये कहकर हरिप्रिया सखी उस महल के विषय में कुछ बताने लगीं थीं ।

भावी सखियों की मूर्तियाँ यहाँ पहले से ही बनी होती हैं …जिन्हें यहाँ आना है …जो आने वाली हैं ….जो अनादि हैं …वो भी अवतारकाल के समय पृथ्वी में जाती हैं अवतार में सेवा करती हैं ….किन्तु उस समय भी एक रूप उनका यहीं होता है …इस नित्य वृन्दावन में । हरिप्रिया सखी कह रही हैं । और जो सिद्धा सखी होती हैं …उन सबकी अपनी अपनी श्रेणी होती है …उसके अनुसार ही उनका रूप पहले से यहाँ तैयार होता है ….वो यहाँ आवें और अपना स्वरूप लें।

अपनी प्रमुखा सखी हरिप्रिया की बातें सुनकर नई नवेली सखियाँ चकित थीं ….तभी मन्दहास्य हरिप्रिया के मुख मण्डल में छा गया था । आप हंस रहीं हैं …..क्या बात है सखी जू !

अन्यों ने पूछा था ।

नही , कुछ नही है ….कल की ही एक लीला स्मरण में आगयी थी…..हरिप्रिया बोलीं ।

अब सुनाना ही पड़ेगा , सुनाइये सखी जू !

अच्छा , अच्छा सुनो …..बड़े प्रेम से हरिप्रिया ने कहा और लीला सुनाने लगीं ।


आज छुपा छुपी खेलें प्यारे ? लाड़ली जू ने पूछा था ।

आप की इच्छा सो हमारी इच्छा । प्यारी ! आपकी इच्छा के विरुद्ध मैं कभी कहीं गयौ हूँ !
श्याम सुन्दर भी बोल उठे थे ।

तो चलो …मैं छुप रही हूँ …आप मोकूँ खोजौ । प्रिया जू ने लाल जू को नयन मूँदने के लिए कहा ..और स्वयं छुपने को चली गयीं । कहाँ छुपूँ ? श्रीरंगदेवि सखी जू से ही पूछा था प्रिया जू ने …और रंगदेवि जू ने यही जगह बता दी ….”यही”….हरिप्रिया सखी ने उसी स्थान को इंगित करके कहा । फिर ? अन्य सखियाँ पूछने लगीं …तो हरिप्रिया हंसते हुए बोलीं …यहीं अनन्त मूर्तियाँ हैं इन्हीं मूर्तियों के मध्य प्रिया जी को छुपाया जाये , फिर प्रिया जी छुप गयीं ..इन्हीं मूर्तियों के मध्य । अब प्यारे भी खोज खोज कर थक गये थे …तो वो भी अब इसी महल में आये ..महल में आते ही उन्होंने यहाँ रखी अनेक मूर्तियों को देखा …अच्छा, सब प्रिया जी जैसी ही हैं …अब श्यामसुन्दर सबको बड़े ध्यान से देखते हुए चल रहे थे ..कि जैसे ही प्रिया जी आयीं और श्याम सुन्दर ने उन्हें देखा …श्याम सुंदर समझ गये …किन्तु उसी समय प्रिया जी को आनन्द का उन्माद चढ़ गया कि आहा ! अब प्यारे मुझे छुएँगे , मुझे आलिंगन करेंगे …मुझे चूमेंगे …ये विचार करते ही …प्रिया जी गिर गयीं …उन्हें कुछ होश ही न रहा …सामने श्याम सुन्दर थे उन्होंने सम्भाल लिया और देखते ही देखते दोनों का रंग बदलने लगा …गौर श्याम हो रहीं थीं और श्याम गौर हो गये थे ।

हरिप्रिया कहतीं हैं ….ये नित्य वृन्दावन है …यहाँ किसी की नही चलती …काल की यहाँ गति नही …सूर्य और चन्द्र की यहाँ द्युति नही । आदि हैं और अनादि हैं ….युगल रूप एक समान हैं यहाँ , किशोर किशोरी हैं …इनकी अवस्था छोटी है …किन्तु सुरत रन के महावीर हैं …इनका यही प्रेमोल्लास इस “नित्य वृन्दावन” का प्राण है ।

सबसे पहले क्या प्रकट हुआ सृष्टि में ? हरिप्रिया ही प्रश्न उठाती हैं …

फिर उत्तर भी यही देती हैं …सुमधुर सूक्ष्म नाद प्रकट हुआ ..जिसे “शब्द ब्रह्म” कह सकती हो तुम ।

ये “शब्द ब्रह्म” कहाँ से प्रकट हुआ ?

हरिप्रिया बोलीं …एक दिन नित्य वृन्दावन में ….हमारी प्रिया जी के चरणारविन्द के नूपुर से जो कलरव हुआ ….सूक्ष्म नाद प्रकट हुआ …वही तो शब्द ब्रह्म है …वही ।

“श्रीराधा पद कमल ते , नूपुर कलरव होय ।
निर्विकार व्यापक भयो, शब्द ब्रह्म कहें सोय ।”

देखो री ! ये नित्य वृन्दावन कैसी कंचन मयी है ….मणियों की चित्रावली बनी है ….सुन्दर और परमरम्य ये धाम है …यहाँ के वृक्ष और लता भी एक दूसरे से लिपटे हुए हैं मानौं सुरत सुख यही लूट रहे हैं ।

जै वृन्दावन नित्य बिहार , श्रीराधा पिय परम उदार ।
जै सहचरी आदि रंगदेव्य, श्यामा श्यामहि जिनके सेव्य ।
जै नव नित्य कुंज सुख सार , जै यमुना कंकन आकार ।
श्रीहरिप्रिया सकल सुख सार , सर्व वेद कौ सारोद्धार ।।

समय हो गया था युगल के जागने का …इसलिए हरिप्रिया रंगदेवि सखी जू के पास आयीं रंगदेवि जू चल दी थीं युगल सरकार को जगाने के लिए …हरिप्रिया सखी श्रीरंगदेवि जू को प्रणाम करती हुयी उनके हाथों से सेवा की सौंज लिए रंगदेवि जू के पीछे चल दी थीं ।

बोलो …श्रीरंग देवि सखी जू की …जय जय जय ।

ये जयकार हरिप्रिया सखी की नई नवेली सखियों ने इस बार लगाया था । किन्तु रंगदेवि जू ने भी गम्भीर होकर मना कर दिया …और धीरे से बोलीं …सुमधुर स्वर से युगल मन्त्र का गान करो ।

अब सखियाँ तो…..बड़े प्रेम से –

राधे कृष्ण राधे कृष्ण कृष्ण कृष्ण राधे राधे,
राधे श्याम राधे श्याम श्याम श्याम राधे राधे।।

गा रहीं थीं ।

हे रसिकों ! ये है “नित्य वृन्दावन”।

क्रमशः

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