!! दोउ लालन ब्याह लड़ावौ री !!
( श्रीमहावाणी में ब्याहुला उत्सव )
भूमिका – नित्य विहार
गतांक से आगे –
“जिनके सर्बस जुगल किशोर ।
तिहिं समान अस को बड़भागनि, गनि सबकें सिर मोर ।।
नित्य बिहार निरन्तर जाकौ , करत पान निस भोर ।
श्रीहरिप्रिया निहारत छिन छिन , चितै चखिन की कोर ।।”
बोलो युगल सरकार की ....जै जै जै जै जै ।
श्रीरंगदेवि आदि सखियों ने कुँज में जाकर सन्ध्या से पूर्व जुगल सरकार को जगाया …जुगल जागे ….दिव्य झाँकी थी …हरिप्रिया सखी की जो सखियाँ नई नवेली अभी अभी पहुँची हैं ….उन्होंने जब ये दर्शन किए ….और उन गौर श्याम मनोहर के श्रीअंग से जो दिव्य सुगन्ध का झौंका जब चारों ओर फैला …तब तो इन सखियों की स्थिति और विचित्र हो गयी थी । कुछ सखियाँ सुध खो बैठी थीं ….किन्तु सावधान थीं ….हरिप्रिया सखी ये सब देख रही है….श्रीरंगदेवि जू आदि ने भोग लगाया था जुगल सरकार को ।
हे सखियों! तुम लोग कैसे देह सुध भूल गयीं ? ये असावधानी यहाँ नही चलेगी ।
उत्थापन का भोग लगा है अभी ….सब बाहर हैं ….तभी हरिप्रिया सखी ने अपनी सखियों को सावधान किया …..ऐसा गिरना पड़ना श्रीनिकुँज में नही चलता । हे सखियों ! सेवा करने चली हो तुम सब और ऐसे देह सुध भूलने लगोगी तो सेवा कैसे होगी ? ये नई नवेली सखियाँ सिर झुकाकर अपनी प्रमुखा हरिप्रिया की बातें सुन रहीं थीं …”यहाँ तो रोमांच होना भी अपराध है”…..ये बात भी हरिप्रिया सखी ने कही थी । “पूर्ण रूप से अपने सुख का परित्याग” यही श्रीनिकुँज तुमसे माँगता है । हे सखियों ! हमारे सब कुछ “जुगल” हैं …हमारे तन मन प्राण “जुगल”हैं…इनके नित्य विहार की संरचना हमें करनी है …इसलिये बड़ी सावधानी अपेक्षित है ।
हरिप्रिया सखी समझा रही हैं ….और नित्य विहार के रहस्यों को खोल रही हैं …..
हे सखियों ! हमारी प्रिया जू आल्हादिनी हैं ….और हमारे लाल जू आनन्द स्वरूप हैं …आनन्द ही जब घना हो जाता है तब वही आल्हाद बनकर प्रकट होता है ….यानि ये दो नही ….एक ही हैं …और श्रीवृन्दावन नित्य विहार स्थली है …इसका मतलब ये है कि….आनन्द और आह्लाद के रस उद्दीपन का स्थल ये श्रीवृन्दावन ही है ।
ये बात कही थी हरिप्रिया सखी ने ।
और सखियों ! हरिप्रिया सखी मुसकुराईं …मैंने जो तुम्हें समझाया उसे अन्यथा मत लेना …क्यों कि इस नित्य विहार में जुगल और श्रीवृन्दावन की जितनी महती भूमिका है उतनी ही हम सखियों की भी है ….इसलिये मैंने तुम लोगों को समझाया है ।
हम सखियाँ क्या हैं ? एक सखी ने हाथ जोड़कर पूछा था ।
हम सखियाँ हैं …..”इच्छाशक्ति” । जुगल की “इच्छा शक्ति” …जुगल के मन में इच्छा जगाने वाली हम ही हैं ….हमारी ये भूमिका न हो तो नित्य विहार भी न हो । ये कहने में हरिप्रिया सखी को बड़ा आनन्द आरहा था ….ये अहंकार बोल रहा था ? जी , किन्तु ये सखी का अपना अहंकार थोड़े ही है …ये तो जुगल का ही अहंकार लेकर चलती हैं सखियाँ ।
सखी जू ! कितने छोटे हैं जुगल …कैशोर वय के हैं जुगल …ओह ! छोटे छोटे ….सखियाँ अपने हृदय में हाथ रखकर कहती हैं ……क्षमा करें …हमें इस तरह भावुक नही होना था ….किन्तु …हम क्या करें ….इन्हें देखते ही सुध बुध खो बैठी थीं ।
नही ….हरिप्रिया सखी ने सीधे मना किया ……हमें इनका ध्यान रखना है ….इन्हें लाड़ करना है …इन्हें खाने की सुध नही रहती तो इन्हें खिलाना है …हमें इन्हें सुख देना है …अपने सुख की नही सोचनी ….हम आनंदित हो गये …खो गए …देह सुध भूल गये ….ये तो स्वसुख हुआ ना ….इसमें जुगल को कहाँ सुख दिया तुम लोगों ने !
हे सखी जू ! अपराध हो गया ….अब से नही होगा ….सब सखियों ने हाथ जोड़े थे ।
हरिप्रिया सखी कुछ देर के लिए आँखें मूँद कर बैठ गयी हैं ….वो अपने हृदय में ही जुगल को भोग लगा रही हैं …और जो जो फल मेवा आदि पाये नही हैं ….उन्हें मनुहार करके पवा रही हैं ।
यही सब सखियों ने किया ………
तभी –
“श्रीरंगदेवि जू आपको बुला रही हैं ..आप भीतर पधारौ” । एक सखी ने बड़े ही प्रेम से हरिप्रिया को कहा ….उन्होंने नेत्र खोलकर प्रणाम किया …फिर मुस्कुराती हुई भीतर कुँज में गयीं ।
बाहर सब सखियाँ खड़ी हैं ….उन्हें और भी बहुत कुछ पूछना है …तभी भोग उतर गया था …पर्दा खोल दिया था ….इस दर्शन के लिए अनन्त सखियाँ आगयीं थीं …कहाँ से आयीं पता नही ….सब हाथ जोड़कर दर्शन कर रहीं थीं …कोई झूम रही थी …तो कोई मग्न थी जुगल के दर्शन में ।
“नित्य किशोर किशोरी जोरी , परम उदार साँवरी गोरी ।
सेवें सहज सदा रंग बोरी , सहचरी सकल लगी चहुँ ओरी” ।
तभी …सामने से हरिप्रिया सखी परम आनंदित होती हुई सखियों के मध्य आयीं ।
सखियों ने उत्साहित देखा हरिप्रिया को तो पूछ लिया क्या हुआ सखी जू !
आप इतने आनन्द में क्यों हो ?
सखियों ! कल से ब्याहुला उत्सव होगा …हमारे लाल जू दूल्हा बनेंगे …और प्रिया जू दुल्हन ।
हरिप्रिया सखी इतनी आनन्द में थीं कि उसका वर्णन सम्भव नही है ।
ये सूचना मुझे श्रीरंगदेवि जू ने दी है ….बड़ा ही आनन्द और उत्साह हो रहा है …हरिप्रिया कुछ कह ही नही पा रही हैं ।
वैसे ये नित्य विहार ….यहाँ नित्य ही होता रहता है …..आल्हाद और आनन्द का मिलन तो यहाँ नित्य है …किन्तु इन दोनों के विवाह का जो सुख है वो अवर्णनीय है । क्या कहूँ मैं इसके आगे …..वैसे ये दोनों अनादि दम्पति हैं ….फिर भी अनादि दम्पति को फिर से दाम्पत्य की डोर में बाँधना कितना आनन्द प्रद होता है ये हम सखियों से ही पूछो ।
कुछ तो हम भी सुनें सखी जू ! बताओ ना !
हरिप्रिया सखी आह्लाद में भरकर बोलीं ….हे सखियों ! इन जुगल को जो सुख मिलता है विवाह उत्सव में उसे देखकर ही हम रस मग्न हो जाती हैं ….अनिवर्चनीय रस , महामधुर आनन्द , परस्पर मिलन की तीव्र उत्कण्ठा , रूप सुधा की पिपासा , ये सब दर्शन करके हम तो बस अपने जीवन को धन्य मानती हैं ….ये आनन्द का क्षण है …..ये उत्सव है ….ये उत्साह से भरा पूरा काल है …..
हे अलियों ! इस आनन्द को मत जाने दो …पल पल इस रस सुधा का पान करो ….उत्साह से , उमंग से । ये नित्य विहार है …..जैसे कोई बालक बालिका ब्याह ब्याह खेलते हैं ….ये ऐसे ही है …जैसे बालक बालिका के मन में विकार नही होता ….ऐसे ही ये भी निर्विकार हैं ….किन्तु उत्साह और रस से सराबोर हैं ….इनका दर्शन करना भी कितना सुख प्रद होता है ।
इतना कहकर हरिप्रिया फिर दौड़ीं अपनी गुरु सखी श्रीरंगदेवि जू के पास ….क्यों की अब तैयारी भी तो करनी है …..कल श्रीनिकुँज में ब्याहुला उत्सव है ।
सखियों ! सब आना इस परम मंगल ब्याहुला में ….श्रीहरिप्रिया सखी सबको निमंत्रण दे रही हैं ।
क्रमशः …
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