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!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 116 !!
त्रिपुरासुन्दरी द्वारा अर्जुन को “राधाभाव” का उपदेश
भाग 1
गतांक से आगे –
भगवती त्रिपुरा सुन्दरी को प्रसन्न करनें में अर्जुन को ज्यादा समय नही लगा था……..और वैसे भी त्रिपुरा सुन्दरी पार्थ से प्रसन्न ही थीं ।
कृष्ण सखा, नर के अवतार अर्जुन से कौन प्रसन्न नही होगा ।
अर्जुन ! मैं तुमसे प्रसन्न हूँ ……..माँगों क्या वर चाहिये ?
दिव्य वस्त्रों में सुशोभित गौर वर्णी भगवती त्रिपुरा सुन्दरी अर्जुन के सामनें प्रकट हुयी थीं ।
महर्षि शाण्डिल्य नें वज्रनाभ को बताया ।
अर्जुन नें दर्शन किये भगवती के ………..साष्टांग प्रणाम किये ।
हे भगवती ! मुझे कुछ नही चाहिये……….अगर आप मुझे अधिकारी जानें तो निकुञ्ज के दर्शन करा दीजिये ………..हे त्रिपुरा भगवती ! मैने अपनें श्रीकृष्ण चन्द्र के मुखारविन्द से “श्रीराधा भाव” की चर्चा सुनी है………..ये नाम “राधा” कहते ही मुझे रोमांच होंने लगा है ……अनायास ही नयन मेरे गीले होनें लगे हैं ………हे ललिताम्बा ! मेरे पास सब कुछ है ……….हाँ क्यों न कहूँ सब कुछ है ….? है ……..सबसे बड़ी बात मेरे साथ मेरा सखा है …….मेरा कृष्ण है …….फिर मुझे क्या चाहिये ……….पर मैने देखा है ……..मेरे सखा कृष्ण को, अकेले में रोते हुए…….अकेले “राधा राधा” कहकर आहें भरते हुए मैने बहुत बार देखा है………..हे भगवती ! मैने उन करुणानिधान वासुदेव से जब इन श्रीराधा के बारे में पूछा तो……उनका उत्तर था………..वृन्दावन की सीमा में मानसरोवर है …….वहाँ जाकर भगवती त्रिपुरा की आराधना करो……..त्रिपुरा सुन्दरी मेरी श्रीराधारानी की प्रिय सखी ललिता हैं……..हे भगवती ! आप मेरी इन इच्छाओं को पूरी करो……मुझे श्रीराधाभाव के सम्बन्ध में कुछ अनुभव कराओ ……मुझे “निकुञ्ज तत्व” के बारे में बताओ ……हे भगवती ! आप ही इन रहस्यों को उजागर कर सकती हैं ….मेरे ऊपर कृपा करें ।
इतना कहकर अर्जुन फिर साष्टांग प्रणाम करनें लगे थे ।
हे पार्थ ! ये तुमनें क्या माँग लिया ?
धन , यश, बल, कीर्ति, यौगिक सिद्धियाँ समाधि……..जो चाहिये मैं प्रसन्नता पूर्वक दे देती हूँ …….पर ये तुमनें क्या माँग लिया ?
भगवती त्रिपुरा सुन्दरी भाव में डूब रही थीं…….उनके नेत्रों से अपूर्व स्नेह का उदय हो रहा था………प्रेम रस से भींग गयी थीं ।
हे स्वामिनी ! हे राधिके ! हे किशोरी !
त्रिपुरा सुन्दरी के रोम रोम से ये पुकार निकलनें लगी थी ।
अर्जुन स्तब्ध हो गए …….उनके कुछ समझ में नही आरहा था ।
त्रिपुरा सुन्दरी की शक्ति के आगे कौन टिक सका ?
पर ये भी “श्रीराधा” कहते हुए ……….अपनें आपको धन्य अनुभव कर रही हैं…….आश्चर्य चकित अर्जुन देखते रह गए थे ।
हे अर्जुन ! श्रीराधा ब्रह्म की अल्हादिनी शक्ति हैं ………
प्रेम की उच्चतम अवस्था हैं ………..श्रीराधा ।
महाभाव का साकार रूप हैं श्रीराधा ।
अर्जुन के सामनें त्रिपुरा सुन्दरी भाव विभोर हो गयीं थीं “महाभाव” की चर्चा करते हुये ।
हे अर्जुन ! तुम कृष्ण सखा है……..नारायण के अनादि सखा हो ……श्रेष्ठतम “नर” हो तुम……..इसलिये सुनो …….ये अत्यन्त रहस्यमय और गोप्य चर्चा हैं………अनधिकारी के सामनें इस महाभाव की चर्चा न करना ही श्रेष्ठ है ……….अर्जुन ! इस “महाभाव” का अनुभव तो बड़े बड़े ऋषि योगी तपश्वी तक नही कर पाते ………ब्रह्मा का भी प्रवेश “बृज लीला” तक ही है………..हाँ भगवान शंकर को प्रवेश मिला है ……और वो भी तब, जब गोपी बनकर वह आये ।
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –
🌲 राधे राधे🌲


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