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July 5, 2025 4:16 pm

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!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 116 !!-त्रिपुरासुन्दरी द्वारा अर्जुन को “राधाभाव” का उपदेश भाग 3 : Niru Ashra

!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 116 !!-त्रिपुरासुन्दरी द्वारा अर्जुन को “राधाभाव” का उपदेश भाग 3 : Niru Ashra

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!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 116 !!

त्रिपुरासुन्दरी द्वारा अर्जुन को “राधाभाव” का उपदेश
भाग 3

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6 ) भाव ।

हे पार्थ ! तमोगुण का नाश रजोगुण से करे साधक ……….फिर रजोगुण का नाश सत्वगुण से करे …………अब सत्वगुण ही है हमारे अन्तःकरण में ………जब विशुद्ध सत्व होगा ……..तब ईश्वर के प्रति अटल विश्वास होगा ……….तब लगनें लगेगा कि हमारा सनातन सखा तो ईश्वर है ………..तब उसकी तड़फ़ जागेगी ………….

पर भाव, उच्च स्थिति है…….इस स्थिति में प्रेमी प्रियतम से मिलनें के लिये तड़फता है ……..दिन रात तड़फता रहता है ……..आग में जलता है ……..विरहाग्नि में……पत्ता भी वृक्ष से गिरता है तो लगता है कि कहीं प्रियतम तो नही आगया ! ये स्थिति बनी रहती है उसकी ।

इसे ही कहते हैं भाव ।

7 ) महाभाव ।

ये उच्चतम स्थिति है प्रेम की ……इससे ऊँची स्थिति नही ……ये प्रेम की समाधि है …..महाभाव ।

हे अर्जुन ! भाव घनीभूत, परिपक्व हो जाए ……..तो उसे ही महाभाव कहते हैं ………….महाभाव में स्थित प्रेमी से मिलनें के लिये तो भगवान स्वयं तड़फते हैं ………इसके बारे में कुछ कहा नही जा सकता ……….क्यों की महाभाव की स्थिति शब्द से परे है ……….और इसी महाभाव की स्वरूपा हैं ……….श्रीराधारानी ।

इसलिये तो श्रीराधारानी से मिलनें के लिये कृष्ण भी आतुर है ……

ब्रह्म बेचैन है……..उसे अपनी अल्हादिनी से एक होकर मिलना है ।

इतना कहकर ललिता देवी शान्त हो गयीं …..और उस दिव्य मान सरोवर को देखनें लगीं ।

हे ललिता सखी जू ! कृपा करो मेरे ऊपर …………उन महाभाव श्रीराधारानी के दर्शन कराओ ………युगलवर जहाँ निरन्तर विहार करते हैं उस निकुञ्ज के भी दर्शन कराइये ………अर्जुन नें प्रार्थना की ।

मुस्कुराईं ललिता सखी ………………

कितनी सहजता से बोल गए तुम अर्जुन !……….इतना सरल नही है निकुञ्ज में प्रवेश ……….और प्रेम का साकार रूप श्रीराधारानी का दर्शन ! हँसी ललिता सखी ।

कुछ तो उपाय होगा ………..मेरे लिये उपाय बताइये ललिता जी ।

चरण में पड़ गए अर्जुन ।

ध्यान करके बैठीं ललिता …………….कुछ ही देर में उनके हृदय में प्रकाश हुआ …………युगल सरकार हृदय में प्रकट हो गए थे ।

पर ये क्या ! अर्जुन आनन्दित हो उठे …………..दिव्य युगल महामन्त्र गूँज रहा था चारों दिशाओं में ……..अर्जुन नें सुना उसे …….

राधे कृष्ण राधे कृष्ण कृष्ण कृष्ण राधे राधे
राधे श्याम राधे श्याम श्याम श्याम राधे राधे ।।

हे पार्थ ! ये मन्त्र बहुत गोप्य है ……….प्रेम के उपासकों का यह मन्त्र प्राण है ………..ये कल्पतरु है ………जो माँगों ये मन्त्र वही दे देता है …..प्रेम प्रदाता है ये मन्त्र ……..मुक्ति और भुक्ति भी देता है …….पर इससे बड़ी बात ये है कि ……….प्रेम को देने वाला भी यही मन्त्र है ……..निकुञ्ज का अधिकारी भी यही मन्त्र बना देता है ।

हे अर्जुन ! इस मन्त्र का जाप करो …….हृदय में दिव्य सिंहासन रखो ….उसमें युगलवर को विराजमान कराओ ………..अष्ट सखियाँ चारों ओर सेवा में लगी हुयी हैं …….ऐसे दर्शन करते हुए इस महा प्रेममय मन्त्र का जाप करो……..आज्ञा मिली त्रिपुरा सुन्दरी से अर्जुन को …….

और अर्जुन नें आँखें बन्द कीं……और युगल मन्त्र की साधना शुरू कर दी थी ।

राधे कृष्ण राधे कृष्ण कृष्ण कृष्ण राधे राधे !
राधे श्याम राधे श्याम श्याम श्याम राधे राधे !!

शेष चरित्र कल –

🌲 राधे राधे🌲

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Author: admin

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