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July 6, 2025 5:51 am

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“श्रीराधाचरितामृतम्” 118 !!-प्रेम साधना की दो पद्धति – “वैधी और रागानुगा” भाग 1 : Niru Ashra

“श्रीराधाचरितामृतम्” 118 !!-प्रेम साधना की दो पद्धति – “वैधी और रागानुगा” भाग 1 : Niru Ashra

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“श्रीराधाचरितामृतम्” 118 !!

प्रेम साधना की दो पद्धति – “वैधी और रागानुगा”
भाग 1

इस “प्रेमसाधना” का एक मात्र उद्देश्य यही है – कि …..

साधक के हृदय में भाव के अंकुर फूटें…….और प्रेम के विभिन्न स्तरों को पार करता हुआ साधक ……..शुद्ध विशुद्ध अपनें उज्जल स्वरूप “रसरूप” में प्रतिष्ठित हो जाए ……….बस इसी उद्देश्य से यह “रसोपासना” जीव मात्र के लिये हमारे रस सिद्ध आचार्यों नें प्रदान किया है । पुनरावृत्ति साहित्य में दोष माना गया है ……..पर हमारे ब्रह्मसूत्रकार कहते हैं कि – सदवृत्तीयों को बारबार दोहराएं …..जब तक कि वे आपके अवचेतन मन में अपनी स्थाई जगह न बना लें, तब तक । इसलिये लिखते हुये कभी पुनरावृत्ती किसी विषय की हो जाए तो मेरे साधक यहीं समझें …….कि अच्छी बात हृदय में अच्छे से बैठे, इसलिये बात को बारबार दोहराई जा रही है ।

प्रेम स्थिर नही रहता ………..प्रेम या तो बढ़ता बढ़ता जाता है ….या घटते घटते खतम ही हो जाता है ……..बिलकुल चन्द्रमा की तरह ।

ये कोमल है ……..प्रेम बहुत कोमल है ……..इसकी साधना करनें वाले साधकों को कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है ।

प्रेम साधना की पद्धति दो हैं……….एक वैधी और दूसरी रागानुगा ।

“वैधी” उसे कहते हैं ……..जहाँ शास्त्र विधि को ही ज्यादा मान्यता दी जाए …….मंत्रोंपासना से उस महाभाव तक पहुँचना ………

जैसे – श्रीराधाभाव या निकुञ्ज रस की प्राप्ति के लिये शास्त्र विधि भी हैं ….”गोपाल मन्त्र”…..ये विशेष निम्बार्क सम्प्रदाय का ही मुख्य मन्त्र है ……इसे मंत्रराज भी कहा गया है…….ये गोपाल मन्त्र है…….अठारह अक्षरों वाला ये परम सिद्ध और परम गोप्य मन्त्र है ।

( प्रसिद्ध है कि मधुसूदन सरस्वती जी नें भी इसी मंत्रराज का अनुष्ठान करके श्रीवृन्दावनबिहारी के दर्शन प्राप्त किये थे )

इसके अलावा कुछ अन्य मन्त्र भी हैं…….उनका भी विधि पूर्वक जाप किया जाए……तो दर्शन मिलते ही हैं…..ये पक्का है ।

अच्छा ! मेरा अनुभव तो यही है ….और मैने जिन जिन महापुरुषों का संग किया उनसे भी मैने यही जाना ।

बात है लगभग 22 वर्ष पहले की…….राजस्थान सलेमाबाद से जयपुर के लिए मैं आरहा था …..और मेरा सौभाग्य कि ……मेरे साथ थे श्रीजी महाराज जी ……..वो साक्षात् “श्रीजी” थे……..श्रीनिम्बार्क सम्प्रदाय के जगद्गुरु ( वर्तमान गद्दी में जो हैं वो उन दिनों बहुत छोटे थे ) मैं उनके साथ था ।

मैने उनसे पूछा था – “निकुञ्जरस” की प्राप्ति के लिये क्या करें ?

तब उनका उत्तर – “गोपाल मन्त्र का अनुष्ठान विधिपूर्वक …और निरन्तर युगलमन्त्र का जाप” ।

क्रमशः….
🌹 राधे राधे🌹

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