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“श्रीराधाचरितामृतम्” 118 !!
प्रेम साधना की दो पद्धति – “वैधी और रागानुगा”
भाग 3
रागानुगा वाले व्रत नही करते………..हमारे श्रीधाम वृन्दावन में श्रीराधाबल्लभ सम्प्रदाय वाले एकादशी का व्रत नही करते …….न हरिदासी सम्प्रदाय वाले करते हैं ……न ग्रहण मानते हैं ये लोग …..।
राग …….यानि किसी से अच्छे से चिपकना ……….अच्छे से किसी से जुड़ना ……उसे कहते हैं राग ……….जैसे – बालक के प्रति तुम्हारा होगा राग ……..परिवार के प्रति तुम्हारा होगा राग ।
अब भूख लगी है तुम्हारे बालक को …………तो क्या तुम उसे भोजन नही दोगे ? या कहोगे कि आज एकादशी है….? फल खाओ ।
नही ………मेरे बालक को भूख लगी होगी ……….मेरे कन्हाई को भूख लगी होगी ……….इसको मैं कैसे भूखा रखूँ ?
देखो ! ये पद्धति रागानुगा है ……….इसमें कोई विधि नही है …….विधि जिसमें है उसे तो “वैधी” पद्धति कहते हैं ।
मैने अपनें पागलबाबा से पूछा था जब मैं पहली बार उनसे मिला था ।
दर्शन कैसे होंगें ? निकुञ्ज के दर्शन कैसे होंगें ? निकुञ्ज लीला का दर्शन कैसे होगा.?……मैं पता नही क्यों उस समय रो गया था ।
बाबा नें उत्तर दिया – वाणी जी का पाठ करो……..एकान्त में बैठ कर महावाणी , युगल शतक, हित चौरासी , इनका पाठ करो ……..और युगलमन्त्र का जाप…….बस इतना अगर भाव से करते रहोगे तो श्रीजी की कृपा होगी ही …….ये पक्का है ।
गौरांगी कल मिली ……….बहुत दिन के बाद मिली थी ………..कह रही थी कि …….वाणी जी के पाठ से बहुत लाभ मिलता है ……….हरि जी ! ये फ़िल्मी तर्ज में लिखे भजनों को गानें से कोई विशेष लाभ मिलता हुआ मुझे नही लगता ……….पर महापुरुषों के पद ……महापुरुषों नें जो भगवतलीला गाई हैं…….वो देखकर गाई है ………देखकर लिखी है ।
जैसे सूरदास जी नें लीलाओं को देखा है अन्तश्चक्षुओं से ………..इसलिये उन पदों को गाओ ……..जो महा पुरुषों नें लिखे हैं ……अब शराब के नशे में जो आजकल भजन की तुक बन्दी बनाकर गायी जाती है………उसको गानें से कोई विशेष लाभ होगा नही ।
इससे बढ़िया तो नाम मन्त्र , महामन्त्र , या युगलमन्त्र का ही गान करो …..या जाप करो ………..इसी को गाओ …………।
हरिजी ! कहाँ हो ? गौरांगी बहुत दिन के बाद मिली थी ।
हमें भी निकुञ्ज के दर्शन कराओ ना ! हँसी ये कहते हुए ।
मैने कहा ……..सखी तो तुम हो ………ये बात तो हमें कहनी चाहिये तुमसे गौरांगी ! ………………………
गौरांगी सेवा करते हुयी भी मास्क पहनती है……..मैने हँसते हुए पूछा ……….तो गौरांगी नें इसका उत्तर ये दिया ……….मेरे श्याम सुन्दर को कोरोना हो गया तो ?
हट्ट पागल ! मैने कहा ।
क्यों सच हरि जी ! मैने सपनें में देखा था ………..मुझे कोरोना हुआ तो मेरे कन्हाई को भी …………………
इसे कहते हैं पूर्णरागानुगा भक्ति ।
( साधकों ! आज ये लिख गया मुझ से ……”अर्जुन को ललिता सखी नें निकुञ्ज का कैसे दर्शन कराया” ये चरित्र कल से )
शेष चर्चा कल –
🌹 राधे राधे🌹


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