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November 21, 2024 12:29 pm

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!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 123 !!-“युगलतत्व” – एक दिव्य झाँकी भाग 2 & 3 : Niru Ashra

!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 123 !!-“युगलतत्व” – एक दिव्य झाँकी भाग 2 & 3 : Niru Ashra

Niru Ashra: 👏👏👏👏👏

!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 123 !!

“युगलतत्व” – एक दिव्य झाँकी
भाग 2

🌷🌷🌷🌷🌷

हे स्वामिनी ! हे कृष्ण प्रिये ! हे राधिके ! हे कृष्णबल्लभा !

आपसे मेरा एक प्रश्न है ……..अगर आपकी कृपा हो तो पूछूँ ?

हाँ हाँ ललिते ! पूछो ! मुस्कुराती हुयी श्रीराधिका बोलीं ।

आप युगल हैं ……..आप हैं और श्याम सुन्दर हैं……..ये युगल का रहस्य क्या है ? ललिता सखी नें शान्त भाव से पूछा था ।

हे ललिते ! तुम बोलती बहुत हो……..सूर्य का ताप कितना बढ़ गया है प्रातः ही में……थोडा शीतल जल तो पिला दो । श्याम सुन्दर नें हँसते हुए कहा ।

हाँ हाँ …..

…इतना कहकर ललिता सखी उस कुञ्ज से निकल कर बाहर गयी ।

तभी – प्यारे ! तुम्हारे हृदय में ये कौन है ?

श्रीराधारानी नें पूछा ।

कहाँ ? कहाँ राधे ! कौन है मेरे हृदय में ?

राधारानी नें मणियों की माला श्याम सुन्दर के गले में देख ली थी …….और उन मणियों में ही स्वयं का मुख दिखाई दे रहा था श्रीराधा रानी को ।

ये कौन स्त्री तुम्हारे हृदय में बैठ गयी है ?

बस ….इतना कहते हुये श्याम सुन्दर के गले में पड़ी माला को किशोरी जी नें तोड़ दी ।

इतना ही नही……वहाँ से मान कर गयीं, और अंतर्ध्यान भी हो गयीं ।

जल लेकर ललिता सखी आईँ……..पर उस कुञ्ज की दशा देखकर ललिता भी स्तब्ध ! ……उस कुञ्ज में श्रीराधा जी नही थीं ……मात्र श्याम सुन्दर थे…….और श्याम सुन्दर रो रहे थे ……..उनके अश्रु बहते जा रहे थे ……उनकी हिलकियाँ बंध गयी थीं ।

इस दृश्य को देख नही सकीं ललिता……….दौड़ कर आगे आईँ ……..श्याम सुन्दर को सम्भाला……..फिर बड़े दुलार से बोलीं …..क्या हुआ आपको ? और कहाँ हैं प्रिया जी ?

लाल जू ! ऐसे बिलखिये मत………बताइये क्या हुआ ?

बारम्बार जब पूछा , तब उत्तर दिया था श्याम सुन्दर नें ……

ललिते ! तू मेरी प्रिय सखी है ………..मेरी प्राणेश्वरी मुझ से रूठ कर चली गयीं हैं…….वो कहाँ गयी हैं मुझे नही पता…….उनके बिना ललिते ! मेरा क्षण भी युगों के समान बीत रहा है ……..मेरी सहायता कर …….मेरे इस दुःख को दूर करनें वाली तू ही है, ललिता !

इस तरह व्याकुल हो उठे थे श्याम सुन्दर ……ललिता से श्याम सुन्दर का ये विलाप देखा नही गया …….वो दौड़ी कुञ्जों में श्रीराधारानी को खोजनें के लिये…….खोजती रहीं ….खोजती रहीं ……..पर श्रीराधा नही मिलीं……दुःखी, हताश हो फिर उसी कुञ्ज में आईँ …….पर यहाँ श्याम सुन्दर की दशा और बिगड़ती जा रही थी ।

क्या हुआ ललिते ? मेरी प्यारी मिलीं क्या ?

  मुखारविन्द आँसुओं से भरा हुआ है ......और पूछ रहे हैं ।

नही ……कहीं नही मिलीं …….मैंनें चारों दिशाओं में देख लिया …..समस्त कुञ्जों में हो आई …..पर कहीं श्रीजी का पता नही चला ।

ललिता नें सारी बातें बता दी थीं ।

पर ऐसे कैसे होगा ? मैं तो उनके बिना रह ही नही सकता ……..ललिते ! मेरी प्रार्थना मान लो ……..बस इतनी सी प्रार्थना ………कि हम दोनों ही चलते हैं और खोजते हैं ।

इतनें में सारी सखियाँ भी वहीं आगयीं …………श्याम सुन्दर की ये दशा देखकर सब रोनें लगीं …………अर्जुन ये दृश्य देख रहे हैं …..और वो चकित हैं ………।

चलो चलो ! हम सब मिलकर खोजें श्रीराधा रानी को ।

सब चल पड़े थे अलग अलग दिशाओं में ……श्रीराधा रानी को खोजनें ।

क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –

🙌 राधे राधे🙌
Niru Ashra: 👏👏👏👏👏

!! “श्रीराधाचरितामृतम्” 123 !!

“युगलतत्व” – एक दिव्य झाँकी
भाग 3

🌷🌷🌷🌷🌷

इतनें में सारी सखियाँ भी वहीं आगयीं …………श्याम सुन्दर की ये दशा देखकर सब रोनें लगीं …………अर्जुन ये दृश्य देख रहे हैं …..और वो चकित हैं ………।

चलो चलो ! हम सब मिलकर खोजें श्रीराधा रानी को ।

सब चल पड़े थे अलग अलग दिशाओं में ……श्रीराधा रानी को खोजनें ।

तभी – दूर एक कुञ्ज में …….

“हा श्याम ! हा श्याम ! हा श्याम !

बहुत धीमी धीमी आवाज आरही थी ।

ललिता सखी चौंक गयीं …….ये आवाज तो श्रीराधिका जू की है ।

दौड़ीं ललिता सखी ….उस कुञ्ज की ओर ……..

कुञ्ज में बैठी हुयी थीं ………..श्रीराधारानी ।

स्वामिनी जू ! आप यहाँ ? ललिता सखी नें आश्चर्यभाव से पूछा ।

चलिये ! श्याम सुन्दर आपकी कितनी प्रतीक्षा कर रहे हैं …….वो रो रहे हैं आपके वियोग में ……..वो तड़फ़ रहे हैं ………..चलिये ! ललिता सखी नें जब चलनें का आग्रह किया ………तब श्रीराधा जी से उठा भी नही गया ……..उठना चाह रही हैं ……पर उठ नही पातीं ।

श्रीजी नें ललिता की ओर देखा…….ललिते ! तू देख ही रही है …….विरह के कारण अब मुझ से उठा भी नही जा रहा…….मेरी सखी ! तू श्याम सुन्दर को ही यहाँ बुला ला ना !

ओह ! हाँ ये ठीक है………इतना कहकर ललिता सखी उधर श्याम सुन्दर के पास दौड़ीं ………..

श्याम सुन्दर ! चलिये श्रीराधारानी मिल गयीं हैं………कुञ्ज में बैठी हैं………आपको याद करके बैचेन हो रही हैं ……..चलिये आप !

ललिता सखी नें प्रार्थना की श्याम सुन्दर से ।

नही ललिते ! मुझ से भी अब उठा नही जा रहा……….मेरे हृदय में भी उनके वियोग का ऐसा आघात लगा है कि ……..ये शरीर शिथिल हुआ जा रहा है ………नही उठा जा रहा मुझ से भी ।

ललिते ! मेरी भी एक प्रार्थना है ………..सुन लो !

क्या ? कहो श्याम सुन्दर !

ललिता सखी नें अपनें पसीनें पोंछते हुए पूछा ।

ललिते ! स्वामिनी श्रीराधारानी को यहीं बुला लाओ ना !

मुझ से भी चला नही जा रहा…….अब मैं क्या करूँ ? शीघ्र करो ललिते ! मेरी श्रीराधा को यहीं बुला लाओ……..मेरी प्रार्थना है । दीन भाव से प्रार्थना करनें लगे थे श्यामसुन्दर, ललिता सखी की ।

क्या करें ललिता …… फिर इधर आईँ, श्रीराधा रानी के पास ।

पर ये क्या ?

जिस कुञ्ज में श्रीराधा थीं उस कुञ्ज में तो अब कोई नही है ।

घबड़ाई ललिता …………..इधर उधर दौड़नें लगीं ……खोजनें लगीं ….पर नही …..कहीं नही हैं श्रीराधारानी तो ।

दौड़कर श्यामसुन्दर के पास आई………सूचना देंनें के लिए ……पर नहीं ……..इधर श्याम सुन्दर भी नही हैं ।

ललिता सखी को घबराहट होनें लगी ……उधर श्रीराधा नही इधर श्याम सुन्दर नही ……….ये दोनों गए कहाँ ?

ललिता सखी के ऊपर तो मानों वज्रपात ही हो गया था ……..आँखों के आगे तो अँधेरा सा छानें लगा था ………….शरीर में कम्पन हो रहा है ……कहाँ जाएँ क्या करें …….कुछ समझ में नही आरहा था ।

तभी ललिता सखी ध्यान की मुद्रा में बैठ गयीं ………ध्यान करके देखनें लगीं कि ………ये दोनों प्रेमीयुगल कहाँ गए ?

पर फिर भी पता न चला ………तो धीरे धीरे वापस उसी कुञ्ज की ओर चल दीं …….जहाँ से आज की ये लीला शुरू हुयी थी ।

पर ये क्या ? जब वापस उसी कुञ्ज में आईँ तो …..

जय हो ! ……सिंहासन में मुस्कुराते हुए दोनों युगल सरकार विराजमान हैं …….. ललिता को देखते ही दोनों और मुस्कुरानें लगे………फिर ललिता को बड़े प्रेम से अपनें पास में बुलाकर श्रीराधारानी नें कहा …….ललिते ! तुमनें पूछा था ना ….

कि “आप दोनों युगल हैं ……दो हैं ……इसका रहस्य क्या है ?

तो हे मेरी प्यारी सखी ललिते ! हम दोनों …”दो” नही हैं ……हम “एक” ही हैं …….जैसे – एक ही ज्योति बढ़ते बढ़ते दो रूपों में हो जाए …ऐसे ही मूल रूप से एक ही तत्व दो रूपों में परिभाषित हो रहा है ।

तुम पूछोगी ललिते ! कि – फिर ये दो रूप क्यों ?

तो हे ललिते ! “लीला करनें के लिये”…एक में लीला नही होती …लीला दो में ही सम्भव है ……लीला से “प्रेमरस” की अभिव्यक्ति करनी है ।

इस तरह मुस्कुराते हुए ललिता सखी के सामनें “युग्मतत्व” के रहस्य को श्रीराधारानी नें उद्घाटित कर दिया था ………

यही है युगलतत्व का रहस्य ….”युग्मतत्व” इसे ही कहते हैं ।

एकम् ज्योतिर्भवेद् द्वेधा , राधा माधव रूपकम् !!

जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्रीराधे !!
जय कृष्ण जय कृष्ण कृष्ण, जय कृष्ण जय श्रीकृष्ण !!

( आज जन्म बधाई है हमारी श्रीराधारानी की …..श्रीराधाष्टमी है आज …..आज के दिन हमारी तो यही प्रार्थना है “श्रीजी” से कि – उस दिव्य प्रेम लोक “निकुञ्ज” की एक झलक हमें भी तो दिखा दो )

शेष चरित्र कल –

🙌 राधे राधे🙌

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Author: admin

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