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July 21, 2025 9:09 am

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श्रीकृष्णचरितामृतम्* *!!”पनघट पे” – एक प्रेम प्रसंग 4 !!* *भाग 7* : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्* *!!”पनघट पे” – एक प्रेम प्रसंग 4 !!* *भाग 7* : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्*
*!!”पनघट पे” – एक प्रेम प्रसंग 4 !!*
*भाग 7*
ये लीला है ,  इसमें लीलायित स्वयं ब्रह्म हो रहा है …..ब्रह्म  स्वयं लीला रचता है …..और फिर लीला ही बन जाता है …….वो रस लेता है …..रस स्वयं है …..फिर भी वह रस का  रसिक है  ।
तात ! लीला का कोई उद्देश्य नही होता….लीला का एक ही उद्देश्य है – आनन्द ,  रसानुभूति   ।  उद्धव नें विदुर जी को कहा  ।
श्याम सुन्दर की बंशी चुरा ली  श्रीराधारानी की सखियों नें…….क्यों की पूर्व में  मुद्रिका  श्याम नें  राधा की चुराई थी……किन्तु तात !    कन्हाई भी कहकर गए  कि……..मैं भी कृष्ण नही …….जो तुम्हे चोर बनाकर अपनी बाँसुरी वापस न ली तो………..
उद्धव कहते हैं –  राधा कृष्ण  दोनों एक ही हैं ……..राधा ही कृष्ण हैं और कृष्ण ही राधा हैं……फिर दोनों में चोरी कैसी  ?      और सखियाँ  भी इनसे भिन्न कहाँ हैं  ?       वृन्दावन  भी  ब्रह्मस्वरूप ही है ……यानि  धाम भी  वही है ……तात !  यहाँ  सब कुछ अद्वैत है …..किन्तु वह  अद्वैत  फिर रसानुभूति के लिये   द्वैत बन जाता है  …..यही तो अनादि लीला है ।
हूँ ………विदुर जी मुस्कुराते हैं ………..फिर कहते हैं  –  आगे सुनाओ  उद्धव !    आगे    कन्हाई नें कैसे अपनी बाँसुरी  श्रीराधा रानी से ले ली ……..क्या लीला प्रकट हुयी……….सच में !  लीला चिन्तन एक अद्भुत साधना है …………और  लीला तो अनन्त की लीला है ……इसलिये इसका तो कोई अंत ही नही है …….पर उद्धव !    कितनी लीला- कथा  सुन लो …अघाते नही हैं ……….क्यों की रस है इसमें ……और रस ही तो कन्हाई है  ।
 विदुर जी   ये कहते हुए  मौन हो गए ……अब  उन्हे  आगे की लीला सुननी है ।    अब उद्धव उत्साहित होकर आगे  सुनानें लगे थे  ।
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हा  श्याम !  हा श्याम सुन्दर !  हा नन्दनन्दन !  हा  कन्हाई  !
कुञ्ज में ये आवाज  धीमी धीमी आरही थी   ।
हा नन्दनन्दन !  हा  श्याम सुन्दर !       
कोई  पुकार रही है ……ललिते !  देख तो   पुकार में  करुणा भरी हुयी है ………..और  हिलकियों से रो भी रही है………देख !
कुञ्ज में विराजीं  श्रीराधा रानी नें  अपनी सखी ललिता से कहा ।
हाँ ………हे स्वामिनी !    मुझे भी ऐसा ही लग रहा है……..मैं बाहर जाकर देखती हूँ………ऐसा कहते हुए ललिता सखी कुञ्ज से बाहर आगयीं थीं    ।
हा श्याम !  हा श्याम सुन्दर !   हा नन्दनन्दन !  
ललिता नें देखा ……सच में वह सखी तो बिलख रही थी   ।
सुन  अरी !    तू  इतनी ब्याकुल क्यों हे रही है ……….क्या हुआ ? 
और तू जिसका नाम ले रही है ना !   वो तो  किसी काम का ही नही है ।
बस ऐसे ही मीठी मीठी बातें करता है ….और सबको फंसा लेता है ।
*क्रमशः …

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