*श्रीकृष्णचरितामृतम्*
*!!”पनघट पे” – एक प्रेम प्रसंग 4 !!*
*भाग 8*
हा श्याम ! हा श्याम सुन्दर ! हा नन्दनन्दन ! हा कन्हाई !
कुञ्ज में ये आवाज धीमी धीमी आरही थी ।
हा नन्दनन्दन ! हा श्याम सुन्दर !
कोई पुकार रही है ……ललिते ! देख तो पुकार में करुणा भरी हुयी है ………..और हिलकियों से रो भी रही है………देख !
कुञ्ज में विराजीं श्रीराधा रानी नें अपनी सखी ललिता से कहा ।
हाँ ………हे स्वामिनी ! मुझे भी ऐसा ही लग रहा है……..मैं बाहर जाकर देखती हूँ………ऐसा कहते हुए ललिता सखी कुञ्ज से बाहर आगयीं थीं ।
हा श्याम ! हा श्याम सुन्दर ! हा नन्दनन्दन !
ललिता नें देखा ……सच में वह सखी तो बिलख रही थी ।
सुन अरी ! तू इतनी ब्याकुल क्यों हे रही है ……….क्या हुआ ?
और तू जिसका नाम ले रही है ना ! वो तो किसी काम का ही नही है ।
बस ऐसे ही मीठी मीठी बातें करता है ….और सबको फंसा लेता है ।
तू भी लगती है उस छलिया के जाल में फंस ही गयी …………सखी ! मेरी बात मान ………छोड़ दे उसे ……..वो तेरे लायक नही है ………तू कहाँ कोमलांगी , सुन्दर , कोमल देह तेरा …………क्यों इतनें सुन्दर देह में रोग लगा रही है …….मत कर प्रेम उस छलिया से ।
सखी !
हिलकियों से रो रही है वो सखी और ललिता को सम्बोधित करती हुयी कह रही है …………..सखी ! ये तो प्रेम है ………अब वे कैसे हैं ….कैसे नही हैं ……ये सब प्रेम कहाँ देखता है ………तो मैनें भी नही देखा ……..बस प्रेम हो गया ……….मेरे यहाँ आये थे खिलखिलाते हुये मुझे देखकर हँसनें लगे …….बस उसी समय मुझे उनसे प्रेम हो गया ……..और ये प्रेम की आग ऐसी जली कि आज मैं ही जल रही हूँ ।
ललिता नें उस सखी की बात सुनी …….फिर उसे पुचकाते हुए बोलीं …….अच्छा रो मत ……रो मत ……..मैं तुझे बताती हूँ ………कन्हाई मन का कपटी है…….हाँ मुख से मीठा मीठा बोलता है…….और तू ही नही है अकेली इस बृज में सबको पागल बनाया है उसनें …….मैं तो तेरे भले के लिये ही कह रही थी बाकी तेरी मर्जी !
ललिता सखी नें समझाया ……….कितनी सुन्दर है तू …साँवरी सखी ……मत लगा , ये रोग ………..बेकार हो जायेगी तू !
पर ये क्या ! ललिता की बातें सुनते ही वो सखी तो धरती में गिर गयी ……हां श्याम सुन्दर ! हा नन्दनन्दन ! …..
ललिता सखी घबडा गयी ……..उसे उठाया …….जल पिलाया ।
अच्छा तू कैसे ठीक होगी ? तुझे अभी कैसे शान्त करूँ मैं ?
हा श्याम सुन्दर ! बस एक बार दर्शन दे दो …..बस एक बार ।
वो फिर गिर गयी…….वो रोती ही जा रही है ।
ललिता के समझ में नही आरहा कि, क्या किया जाए………..
वो वापस कुञ्ज में गयी…….और श्रीराधारानी से प्रार्थना करनें लगीं ।
क्रमशः…


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