श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! सखाओ का अद्भुत प्रेम – “गौचारण प्रसंग” !!
भाग 1
“हम कन्हैया के हैं और कन्हैया हमारा”
तात ! यही सत्य है….कन्हैया को आप अपनें से अलग कर सकते हैं ?
फिर उद्धव स्वयं ही उत्तर देते हुए कहते हैं – नही ….अपनी आत्मा के सम्बन्ध में आपका जो विचार है …..वही तो कन्हैया है …….आत्मा ही है कन्हैया , और वही सत्य है …बाकी सब मिथ्या है झुठ है ………कैसे टुकुर टुकुर हमारे हृदय में बैठा वह देख रहा है …………हमारी गो यानि इन्द्रियों का पालक बन बैठा है …….”गोपाल” नाम ऐसे ही नही है ।
कन्हैया आपसे अलग हो गया …या आपको ऐसा लगे कि कन्हैया हम से अलग है……..तो आप या तो सपना देख रहे हैं ……या भ्रम कि स्थिति में हैं ……..तात ! जीव जब अपनें को कन्हैया से अलग मानता है ……तभी वह भय, शोक इत्यादि का सामना करता है ।
आज उद्धव नें विदुर जी को अपनी बात, अपनें हृदय कि बात बताई थी।
तात ! क्या अद्भुत प्रेम है बृजवासियों का…….
….उद्धव आनन्दित होकर ये प्रसंग सुनानें लगे थे ।
साँझ हो रही है…….लौट रहे हैं गौओं के साथ कन्हैया ……..ग्वाल सखाओं में लौटते समय उत्साह नही होता ……हाँ वन में, गौचारण में जाते हुए उत्साह चरम पर दिखाई देता है…….क्यों कि मिलन है अपनें सखा से , क्रीड़ा होगी वृन्दावन में……..साथ में खाएंगे ….खेलेंगे …..लड़ेंगे ……..हारेंगे जीतेंगे……….आहा ! पर लौटते समय …….अब वियोग होगा ………बिछुड़ना होगा ।
बस रात कि बात तो है ……सुबह तो फिर मिलना ही है ………..
तात ! एक रात ? कितनें पल होते हैं एक रात में ? हाँ पल पल गिनते रहते हैं ये सखा ……..करवट बदल बदल के पूरी रात इनकी गुजरती है……..उद्धव विदुर जी को आज उन सखाओं के प्रेम का वर्णन करके बताने वाले है ……….कि ये लोग कैसे रहते हैं ? इनकी कैसी स्थिति होती है बिना कन्हैया के रात्रि में ।
उदास से हैं ……..धूल उड़ रही है गौ के खुर से ……..सबका मुख धूल धूसरित हो गया है……….केश बिखरे हुए हैं ……………
कन्हैया तो कन्हैया ही है ………..गोपियाँ देख रही हैं अपनी अपनी अट्टालिकाओं में चढ़ चढ़कर ………कन्हैया के ऊपर पुष्प बरसा रही हैं ……कन्हैया किसी को हाथ हिला रहे हैं ……तो किसी को बस मुस्कुरा कर अपनें प्रेम का परिचय दे रहे हैं ………।
उदास हैं अब ये सब ग्वाल सखा………
सुन ना ! कन्हैया ! आज तो तुझे तेरे घर तक छोड़कर आएंगे ………सखाओं नें पीताम्बरी खेंची ये कहते हुए ।
नही ……….तुम लोग यहीं से चले जाओ ना ! कन्हैया वहीं से भेजना चाहते हैं …….पर – नही….हम तो तुझे तेरे घर पर ही छोड़कर आएंगे …………….सखा नही माननें वाले, कन्हैया को पता है इसलिये ये भी नही बोलते ज्यादा ।
पर नन्दमहल भी तो आगया……….
एक दो तीन ……सब बोले ……………फिर –
“यशोदा मैया खोल किबरिया लाला आयो गाय चराय”
सब एक स्वर गाते हैं ………सब गाते हैं …………हँसती हुयी बृजरानी आई हैं …………..सब बालकों को लड्डू दिया है ………..लड्डू लेकर जाना चाहिये अपनें अपनें घर ……..पर नही …….वहीं बैठ गए हैं ग्वाल सखा …..और कन्हैया से बतिया रहे हैं ।
अब जाओ तुम लोग ! मैया हाथ जोड़ती है ………छोटे छोटे बच्चों को हाथ जोड़ती है ? अजी ! अब अपनें घर पधारो ……इसलिये हाथ जोड़ती है ………….”दिन भर रहे हो कन्हैया के साथ पेट नही भरा” ……..इसलिये हाथ जोड़ती है ………..।
सुन ! कल हम कालीदह में जाएंगे ………..मधुमंगल कान में जाकर कन्हैया के कहता है ……………ना ! नही जाएंगे कालीदह में …..वहाँ तो काली नाग रहता है ……खा जायेगा ……….मनसुख स्पष्ट कहता है …….इतना ही नही ……………मैया बृजरानी को भी बता देता है …….देखो ! कालीदह में कन्हैया को चलनें कि कह रहा है मधुमंगल !
मारूँगी मैं तुम सबको………खबरदार ! जो कालीदह का नाम भी लिया तो…….वहाँ कालिय नाग है ……….खा जाएगा तुम सबको ।
मधुमंगल कि और देखकर आँखें मटकाता है मनसुख ……।
अब जाओ तुम लोग ….जाओ यहाँ से ………….कन्हैया थक गया है ……उसे अब विश्राम तो करनें दो ………..बृजरानी जब तक क्रोध नही दिखातीं , ये सब कन्हैया को छोड़ते ही कहाँ हैं ?
*क्रमशः….
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