श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! नन्दभवन में सत्यनारायण कथा !!
भाग 1
नाना विघ्न मेरे लाला के ऊपर आय रहे हैं …………हे गुरुदेव ! हमारी इच्छा है कि कन्हैया के मंगल के ताईं एक सत्यनारायण भगवान की कथा अपनें महलन में हम रखें ………..आप आज्ञा दो भगवन् !
ब्रह्ममुहूर्त में ही यमुना स्नान करके बृजराज ऋषि शाण्डिल्य की कुटिया जा पहुँचे थे ……..”असुर समूह मेरे कन्हैया के पीछे पड़े भये हैं ……अब तो भगवान नारायण ही हमारे लाला की रक्षा कर सकें हैं ।”
सजल नेत्रों से बृजराज नें अपनें हृदय की बात ऋषि के सामनें रखी थी ।
” सब मंगल होगा ……..सब मंगल ही मंगल हो रहा है “
पता नही……….ऋषि शाण्डिल्य को कुछ गलत लगता ही नही है …..उनका कहना है ……..”मंगल भवन” का विधान कभी अमंगलपूर्ण हो ही नही सकता ……….।
आज अमावस्या है ………..उचित ही है ……कि भगवान नारायण के मंगल पवित्र नामों का और उनकी लीलाओं का गान हो …….वैसे तो आपके यहाँ भगवान नारायण ही स्वयं लीला कर रहे हैं ………ये कहते हुए ऋषि शाण्डिल्य मुस्कुराये ।
जाओ ! आप तैयारी करो …….हे बृजराज ! मैं समय पर पहुँच जाऊँगा ……….ऋषि नें कह दिया था ……..चरणों में प्रणाम करते हुए बृजराज प्रसन्नता पूर्वक वहाँ से चले गए और अपनें नन्दभवन में जाकर उत्साह से सत्यनारायण भगवान की पूजा कथा की तैयारियों में लग गए थे ।
पीली पीताम्बरी ओढ़ रखी है बृजराज नें ………..उनकी अर्धांगिनी बृजरानी उनके दाहिनी ओर बैठीं हैं ………गोद में कन्हैया …..ऊँघते हुए बैठे हैं ……..आज जल्दी ही जगा दिया कन्हैया को मैया नें …….क्यों की सत्यनारायण भगवान का पूजन जो होना है ।
रोहिणी भी बैठी हैं ….उनके गोद में दाऊ विराजे हैं ………..बाकी मनसुख, तोक, मधुमंगल, सब आगये हैं और पीछे बैठे हैं ।
कन्हैया बार बार छेड़ रहे हैं दाऊ दादा को ………..दाऊ दादा चुप रहनें का इशारा करते हैं …….पर कन्हैया मान नही रहे ।
फूल फेंक रहे हैं मनसुख के ऊपर ………..मनसुख हँस रहा है ………….मनसुख विचित्र मुखाकृति बना रहा है अपनी….जिसे देखकर कन्हैया खिलखिला कर हँस पड़ते हैं ……….आहा ।
शालग्राम भगवान की पूजा है नन्दमहल में ………….ऋषि शाण्डिल्य अपनें साथ विप्र वर्ग को लेकर बैठे हैं ………प्रथम स्नान प्रारम्भ हुआ शालग्राम भगवान का ……..स्नान करा रहे हैं बृजराज ………..मन्त्रोच्चार कर रहे हैं ऋषि शाण्डिल्य ।
आज बहुत गम्भीरता से देख रहे हैं पूजन के क्रम को कन्हैया …….
दूध से स्नान कराया शालग्राम जी को …….फिर दही से …….फिर शहद से …….फिर गौ के घृत से …….फिर शर्करा से …….।
ये सब कन्हैया नें पहली बार इतनें ध्यान से देखा था ……………..
मनसुख की ओर देखा कन्हैया नें ….मनसुख नें अपनें ओष्ठ पर जीभ फेरी…….” बडौ ही मीठो है नारायण भगवान”………कन्हैया खिलखिलाकर हँस पड़े……..चुप ! चुप बैठ …….मैया यशोदा नें चुप कराया ।
है गयौ अभिषेक ……..ऋषि नें बृजराज ते कही ……..और फिर सुन्दर वस्त्रन ते पौंछ के शालग्राम जी कौ सिहांसन में विराजमान कर दिया …….अब तो ऋषि शाण्डिल्य के नेत्र बन्द हैं ………बृजराज के हूँ नेत्र बन्द हैं ……..बृजरानी नें हूँ अपने नेत्र बन्द कर लिये ।
*क्रमशः …


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