श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! नीलकमल के पुष्प और बृजराज की चिन्ता !!
भाग 1–
ए बालकों ! बताओ ये बृजपति नन्द जी का महल कहाँ पर है ?
दो दूत मथुरा के थे ……….वो गौचारण करके लौट रहे कन्हैया और उनके सखाओं से ये पता पूछ रहे थे ।
हम सब वहीं जा रहे हैं ………मनसुख नें सहजता में कहा ……और ये भी कहा …..कि तुम लोग हमारे पीछे आओ ।
कन्हैया उन दो दूतों को बड़े ध्यान से देख रहे थे …………वो दूत सहज थे कोई असुर नही थे, हाँ दूत अवश्य राजा कंस के थे ।
राजा कंस नें दूत क्यों भिजवाये ? चिन्ता कन्हैया को होनी स्वाभाविक थी …….क्यों कि ये सब तो बेचारे बहुत भोले हैं …….लाठी चलाना मात्र आता है इन्हें …….छल छिद्र इनमें कुछ है नहीं ……..और राजा कंस ! वो तो समूल बृज को ही नष्ट करनें में अपनी शक्ति को लगा रहा है ।
तुम कौन हो ? क्यों आये हो ?
मनसुख ही पूछ रहा है उन दूतों से ।
राजा कंस के दूत हैं …..और उनका कुछ सन्देश लाये हैं तुम बृजवासियों के लिये ।
मनसुख कन्हैया का मुख देखनें लगा …….भद्र , तोक , सुबल श्रीदामा सब कन्हैया का ही मुख तांकनें लगे थे ।
कन्हैया कुछ नही बोले …………..अभी क्या बोलते वो भी ।
चलो ! मेरे साथ …………..घर की ओर न जा जाकर कन्हैया गोष्ठ की ओर मुड़ गए उन दूतों के साथ ………क्यों की घर में क्या ले जाना ……बृजराज बाबा तो अभी गोष्ठ में ही होंगे ……और उनके साथ बृज के विशिष्ठ जन भी मिलेंगे ही ।
बाबा ! ये दूत हैं …………..मथुरा से आये हैं ….।
गोष्ठ में पहुँच कर अपनें नन्दबाबा से कन्हैया नें कंस के दूतों को मिलाया …..और स्वयं अपनें बाबा के पीछे खड़े हो गए ।
मथुरा से आये हो ? बृजराज कुछ और पूछते कि उन दूतों नें स्वयं ही सब कुछ बता दिया …………हम राजा कंस के दूत हैं …….उन्होंने आप लोगों के लिये कुछ सन्देश भिजवाया है ………..आप अगर कहें तो हम उस सन्देश को पढ़कर सुनाये ?
दूतों नें बृजराज को अपना परिचय और आनें का कारण सब बता दिया था ……………..दूत आगे कुछ बोलते ….उससे पहले ही उपनन्दादि अनेक बृज के विशिष्ठ जन भी वहाँ आगये थे उन दूतों को देखकर ।
हाँ ……..सुनाओ ! क्या सन्देश है राजा कंस का ।
बृजराज चिन्तातुर हो उठे थे…….उन्होंने अपनें पीछे देखा था …..कन्हैया खडे हैं …..और वार्ता को बड़े ध्यान से सुन रहे हैं ।
“हे बृजराज ! आप कुशल होंगें …..और आपका समाज भी कुशल होगा ऐसी मैं भगवान रंगेश्वर महादेव से प्रार्थना करता हूँ ।”
दूतों नें राजा कंस का सन्देश सुनाना शुरू कर दिया था ।
“श्रावण मास आरहा है …….आपके संज्ञान में ये बात है ही कि मैं भगवान शिव का परमभक्त हूँ ……….मेरे आराध्य भगवान रंगेश्वर महादेव मैं उनकी पूजा अर्चना इस श्रावण मास में नीलकमल के पुष्पों से करना चाहता हूँ …………और ये नीलकमल यमुना के कालीदह में पर्याप्त मात्रा में पाये जाते हैं ……..मुझे ज्यादा नही …..एक करोड़ नीलकमल के पुष्प मथुरा में आप चार दिनों के भीतर पहुँचा दें …..अन्यथा आप जानते हैं मैं क्या कर सकता हूँ ।
मेरी आज्ञा का पालन शीघ्र हो ।
आज्ञा से – महाराजा कंस “
लाल नेत्र हो उठे थे कन्हैया के …………..जब उन्होंने ये देखा कि उनके पिता बृजराज अपार चिन्ता के सागर में डूब गए हैं ।
कैसे ? कैसे आएंगे वो नीलकमल के पुष्प !
बृजपति कुछ नही बोल पा रहे…….क्या बोलते ।
दूत तो राजा कंस का सन्देश सुनाकर जा चुके थे ।
*क्रमशः ….


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