श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! जब शोकाकुल हुए बृजवासी – “कालीदह प्रसंग” !!
भाग 3
मैया यशोदा का हृदय “धक्क” करके रह गया ……
ओह ! ये एकाएक क्या हुआ ? बृजरानी कुछ समझ नही पा रही हैं ।
तभी कुछ श्वान ऊँची तान में रुदन करनें लगे ………..मैया नें अपनें कानों को बन्द कर लिया …….पर ये क्या ! मैया यशुमति के सिर से कौए उड़ रहे हैं……ये तो अपशकुन है …..मैया का हृदय काँप गया ।
बृजरानी ! मैं रसोई से दूध गर्म करके ले आई हूँ …………वो गोपी बोल ही रही थी कि उसके हाथ से वो सारा दूध गिर गया ………..उसका देह जल गया ……….बृजरानी दौड़ी उसके पास ……उसको तो कुछ नही हुआ …..पर दूध का फैलना अपशकुन ही है ।
बृजरानी अपनें कन्हैया के बारे में ही सोचनें लगी ……..आज वो कुछ अलग लग रहा था ………सुबह जल्दी भी उठ गया …….कह रहा था गौचारण करनें नही जाऊँगा ……….आज खेलूंगा …………सखाओं के साथ हम खेलनें जायँगे ………..कहाँ गया होगा वो ?
तभी – धूल से भरी आँधी चल पड़ी …………धूल ही धूल ……कुछ दिखाई नही दे रहा किसी को ।
भीतर रसोई में दही के बर्तन टूटकर गिरनें लगे …………यशोदा डर रही हैं ये सब देखकर ……….उनका हृदय काँप रहा है आज ………..
सूर्य का तेज भी कम हो गया ऐसा लगता है यशोदा मैया को ………
ओह ! ये क्या ! दिन में ही सियारों का झुण्ड गाँव में कैसे घुस आया ?
और सब सियार रोनें लगे थे ……….उनकी आवाज से नन्दगाँव का वातावरण बड़ा ही भयानक लग रहा था ।
रोहिणी दौड़ी हुयी आईँ बृजरानी के पास …………जीजी ! ये क्या हो रहा है आज ? मेरे तो कुछ समझ में नही आरहा …….ये सब अपशकुन है …………ये सब अच्छा नही है ।
रोहिणी ! कन्हैया कहाँ है ? देह कांपनें लगा बृजरानी का ………बता ना मेरा कन्हैया कहाँ है ?
जीजी ! आपके देह में ज्वर उठ रहा है …………आप इस तरह अज्ञात भय से भयभीत क्यों हो रही हैं ?
तभी …………..सामनें से बलराम को आते हुये देखा बृजरानी नें …….उठकर दौड़ पडीं ……….दाऊ ! तेरा भाई कहाँ है ? तू अकेला कैसे है यहाँ ? बता ! बलराम से यशुमति पूछ रही हैं ।
मैया ! वो आज मुझे लेके नही गया ……..मैने उससे कहा – मैं भी चलूँगा तेरे संग पर कहनें लगा ………..नहीं, तुम बड़े हो दादा …….हम छोटे हैं …….हमारे साथ तुम्हारा खेल बनता नही है …….आज हम ही जायेंगे तुम रहनें दो ………..बलराम नें अपनी बात बताई यशोदा मैया को ।
धड़ाम से गिर गयीं बृजरानी…………रोहिणी ! मेरा लाला आज कालीदह में ही गया है …….कल रात को मुझ से कह रहा था ……मैया ! कालीय नाग को मैं नथ कर लाऊँगा …….देख लेना !
वो अवश्य कालीय दह में ही गया है ……बृजरानी के अश्रु बह चले थे ।
दाऊ ! तू कहता था ना ……..सर्पों के बिल में अपना हाथ डालता है कन्हैया ……………..मैने उसे एक बार डाँटा भी था …….पर वो नही माना ……….ये सर्पों को गले में लटका लेना उसका खेल था ये ……पर उस नादान बालक को क्या पता कि कालीय नाग साधारण नही है ……………यशोदा मैया हिलकियों से रो रही हैं ।
*क्रमशः ….


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