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July 7, 2025 12:45 am

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श्री जगन्नाथ मंदिर सेवा संस्थान दुनेठा दमण ने जगन्नाथ भगवान की रथ यात्रा दुनेठा मंदिर से गुंडीचा मंदिर अमर कॉम्प्लेक्स तक किया था यात्रा 27 जुन को शुरु हुई थी, 5 जुलाई तक गुंडीचा मंदिर मे पुजा अर्चना तथा भजन कीर्तन होते रहे यात्रा की शुरुआत से लेकर सभी भक्तजनों ने सहयोग दिया था संस्थान के मुख्या श्रीमति अंजलि नंदा के मार्गदर्शन से सम्पन्न हुआ

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विपत्ति भी आए तो कभी अपने किसी नाते-रिश्तेदार की शरण में मत जाना सीधे भगवान की शरण में जाना : Kusuma Giridhar

विपत्ति भी आए तो कभी अपने किसी नाते-रिश्तेदार की शरण में मत जाना सीधे भगवान की शरण में जाना : Kusuma Giridhar

जय श्री राधे राधे जीे
🙏🌹🙏🌹🙏❤️

अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा महल में झाड़ू लगा रही थी तो द्रौपदी उसके समीप गई उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोली,

“पुत्री भविष्य में कभी तुम पर दुख, पीड़ा या घोर से घोर विपत्ति भी आए तो कभी अपने किसी नाते-रिश्तेदार की शरण में मत जाना सीधे भगवान की शरण में जाना

उत्तरा हैरान होते हुए माता द्रौपदी को निहारते हुए बोली:-आप ऐसा क्यों कह रही हैं माता?” द्रौपदी बोली:-क्योंकि यह बात मेरे ऊपर भी बीत चुकी है। जब मेरे पांचों पति कौरवों के साथ जुआ खेल रहे थे, तो अपना सर्वस्व हारने के बाद मुझे भी दांव पर लगाकर हार गए। फिर कौरव पुत्रों ने भरी सभा में मेरा बहुत अपमान किया

मैंने सहायता के लिए अपने पतियों को पुकारा मगर वो सभी अपना सिर नीचे झुकाए बैठे थे
पितामह भीष्म, द्रोण, धृतराष्ट्र सभी को मदद के लिए पुकारती रही मगर किसी ने भी मेरी तरफ नहीं देखा, वह सभी आंखे झुकाए आंसू बहाते रहे

फिर मैने भगवान श्रीद्वारिकाधीश को पुकारा:-

हे प्रभु अब आपके सिवाय मेरा कोई भी नहीं है। भगवान तुरंत आए और मेरी रक्षा करी। इसलिए वेटी जीवन में जब भी संकट आये आप भी उन्हें ही पुकारना

जब द्रौपदी पर ऐसी विपत्ति आ रही थी तो द्वारिका में श्रीकृष्ण बहुत विचलित हो रहे थे। क्योंकि उनकी सबसे प्रिय भक्त पर संकट आन पड़ा था

रूकमणि उनसे दुखी होने का कारण पूछती हैं तो वह बताते हैं मेरी सबसे बड़ी भक्त को भरी सभा में नग्न किया जा रहा है

रूकमणि बोलती हैं, “आप जाएं और उसकी मदद करें। “श्रीकृष्ण बोले,” जब तक द्रोपदी मुझे पुकारेगी नहीं मैं कैसे जा सकता हूं। एक बार वो मुझे पुकार लें तो मैं तुरंत उसके पास जाकर उसकी रक्षा करूंगा

तुम्हें याद होगा जब पाण्डवों ने राजसूर्य यज्ञ करवाया तो शिशुपाल का वध करने के लिए” मैंने अपनी उंगली पर चक्र धारण किया तो उससे मेरी उंगली कट गई

उस समय “मेरी सभी 16 हजार 108 पत्नियां वहीं थी कोई वैद्य को बुलाने भागी तो कोई औषधि लेने चली गई” मगर उस समय “मेरी इस भक्त ने अपनी साड़ी का पल्लू फाड़ा और उसे मेरी उंगली पर बांध दिया । आज उसी का ऋण मुझे चुकाना है लेकिन जब तक वो मुझे पुकारेगी नहीं मैं नहीं जाऊंगा

अत: द्रौपदी ने जैसे ही भगवान कृष्ण को पुकारा प्रभु तुरंत ही दौड़े चले गये

हमारे जीवन में भी कई संकट आते रहते है

प्रभु-स्मरण,

उनके प्रति किया “सत्-कर्म” हमारी सहयाता के लिए भगवान को विवश कर देता है और तुरन्त संकट टल जाता है ।

जय श्री कृष्ण जी।
🙏🌹🙏🌹🙏🇮🇳

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