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November 21, 2024 9:35 pm

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पूर्णिमा तिथि- शरद पूर्णिमा : Hiran Vaishnav

पूर्णिमा तिथि- शरद पूर्णिमा : Hiran Vaishnav

👉पूर्णिमा तिथि 19 अक्टूबर को शाम 7 बजकर 23 मिनट से आरंभ हो जाएगी. अगले दिन 20 अक्टूबर रात 8 बजकर 26 मिनट पर पूर्णिमा तिथि समाप्त होगी. 19 अक्टूबर को पूर्णिमा तिथि आरंभ होने के कारण मध्यरात्रि में पूर्णिमा तिथि मंगलवार के दिन रहने के कारण शरद पूर्णिमा कोजागरी चंद्रमा के प्रकाश में खीर रखकर रात्रि जागरण करने का व्रत मंगलवार के दिन ही किया जाएगा. उदया तिथि के अनुसार पूर्णिमा तिथि 20 अक्टूबर, बुधवार को रहेगी.
अश्विन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा शरद पूर्णिमा कहलाती है. शरद पूर्णिमा की रात्रि में चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से पूर्ण होता है. शरद पूर्णिमा पर्व 19 अक्टूबर मंगलवार को मनाया जाएगा. जिसके फलस्वरूप स्नान दान व्रत एवं धार्मिक अनुष्ठान इसी दिन संपन्न होंगे. इस व्रत में रात्रि के प्रथम प्रहर अथवा सम्पूर्ण निशीथ व्यापनी पूर्णिमा ग्रहण करना चाहिए जो पूर्णिमा रात के समय रहे वहीं ग्रहण करना चाहिए.
👉इस दिन लक्ष्मी नारायण महालक्ष्मी एवं तुलसी का पूजन किया जाता है.
👉इसी दिन श्री कृष्ण ने गोपियों के साथ महारास रचाया था.
👉इस दिन मां लक्ष्मी रात के समय भ्रमण में निकलती है यह जानने के लिए कि कौन जाग रहा है और कौन सो रहा है. मां लक्ष्मी उनके घर पर ठहरती है. इसीलिए इस दिन सभी लोग जागते है. जिससे कि मां की कृपा उनपर बरसे और उनके घर से कभी भी लक्ष्मी न जाएं. इसलिए इसे कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा भी कहते हैं. हिन्दू पंचांग अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा ही शरद पूर्णिमा पर्व मनाया जाता है. इस दिन पूरा चंद्रमा दिखाई देने के कारण इसे महापूर्णिमा भी कहते हैं. पूरे वर्ष में केवल इसी दिन चन्द्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है. हिन्दी धर्म में इस दिन कोजागर व्रत माना गया है. इसी को देवमाला कौमुदी व्रत भी कहते हैं. इस रात्रि को चन्द्रमा की किरणों से अमृत झड़ता है. इस दिन उत्तर भारत में खीर बनाकर रात भर चाँदनी में रखने का विधान है.
👉शरद पूर्णिमा के दिन विधिपूर्वक स्नान करके उपवास रखे और ब्रह्मचर्य भाव से रहे. इस दिन ताँबे अथवा मिट्टी के कलश पर वस्त्र से ढँकी हुई स्वर्णमयी लक्ष्मी की प्रतिमा को स्थापित करके भिन्न भिन्न उपचारों से उनकी पूजा करें, तदनंतर सायंकाल में चन्द्रोदय होने पर सोने, चाँदी अथवा मिट्टी के घी से भरे हुए 100 दीपक जलाए. इसके बाद घी मिश्रित खीर तैयार करे और बहुत-से पात्रों में डालकर उसे चन्द्रमा की चाँदनी में रखें. जब एक प्रहर (3 घंटे) बीत जाएँ, तब लक्ष्मीजी को सारी खीर अर्पण करें. तत्पश्चात भक्तिपूर्वक इस प्रसाद रूपी खीर का भोजन ग्रहण करें और उनके साथ ही मांगलिक गीत गाकर तथा मंगलमय कार्य करते हुए रात्रि जागरण करें. तदनंतर अरुणोदय काल में स्नान करके लक्ष्मीजी की वह स्वर्णमयी प्रतिमा घर के मंदिर में स्थापित करें. इस रात्रि की मध्यरात्रि में देवी महालक्ष्मी अपने कर कमलों में वर और अभय लिए संसार में विचरती हैं और मन ही मन संकल्प करती हैं कि इस समय भूतल पर कौन जाग रहा है? जागकर मेरी पूजा में लगे हुए व्यक्ति को मैं धन, वैभव, आरोग्यता दूँगी.
शरद पूर्णिमा की रात का मनोवैज्ञानिक कारण इस समय मौसम में परिवर्तन की शुरूआत होती है और शीत ऋतु का आगमन होता है. शरद पूर्णिमा की रात में खीर का सेवन करना इस बात का प्रतीक है कि शीत ऋतु में हमें गर्म पदार्थों का सेवन करना चाहिए क्योंकि इसी से हमें जीवनदायिनी ऊर्जा प्राप्त होगी.
दशहरे से शरद पूनम तक चन्द्रमा की चाँदनी में विशेष हितकारी रस, हितकारी किरणें होती हैं. इन दिनों चन्द्रमा की चाँदनी का लाभ उठाना, जिससे वर्षभर आप स्वस्थ और प्रसन्न रहें. नेत्रज्योति बढ़ाने के लिए दशहरे से शरद पूर्णिमा तक प्रतिदिन रात्रि में 15 से 20 मिनट तक चन्द्रमा के ऊपर त्राटक करें.
अश्विनी कुमार देवताओं के वैद्य हैं. जो भी इन्द् रियाँ शिथिल हो गयी हों, उनको पुष्ट करने के लिए चन्द्रमा की चाँदनी में खीर रखना और भगवान को भोग लगाकर अश्विनी कुमारों से प्रार्थना करना कि हमारी इन्द्रियों का बल ओज बढ़ायें. फिर वह खीर खा लेना चाहिये.
पूर्णिमा की रात को सूई में धागा पिरोने का अभ्यास करने से नेत्रज्योति बढ़ती है. शरद पूर्णिमा दमे की बीमारी वालों के लिए वरदान का दिन है. चन्द्रमा की चाँदनी गर्भवती महिला की नाभि पर पड़े तो गर्भ पुष्ट होता है. शरद पूनम की चाँदनी का अपना महत्त्व है लेकिन बारहों महीने चन्द्रमा की चाँदनी गर्भ को और औषधियों को पुष्ट करती है.
अमावस्या और पूर्णिमा को चन्द्रमा के विशेष प्रभाव से समुद्र में ज्वार-भाटा आता है. जब चन्द्रमा इतने बड़े दिगम्बर समुद्र में उथल-पुथल कर विशेष कम्पायमान कर देता है तो हमारे शरीर में जो जलीय अंश है, सप्तधातुएँ हैं, सप्त रंग हैं, उन पर भी चन्द्रमा का प्रभाव पड़ता है. अमावस्या और पूर्णिमा को 👉विषय वासना युक्त काम विकार से विकलांग संतान अथवा संतान को गंभीर बीमारी हो सकती है. उपवास, व्रत सत्संग करने से तन तंदुरुस्त, मन प्रसन्न और बुद्धि में बुद्धिदाता का प्रकाश आता है.

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