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August 2, 2025 1:36 am

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श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! नन्दगाँव में महापंचायत !!-भाग 2 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! नन्दगाँव में महापंचायत !!-भाग 2 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्

!! नन्दगाँव में महापंचायत !!

भाग 2

पंच लोग बोलते जा रहे थे – गांवों के वृद्ध जनों का कहना है कि नाम करण में जो कुण्डली बनती है ………..उससे बालक का पता चलता है कि ये बालक किसका है ? कहीं आप कुछ छिपा तो नही रहे ?

नही, मैं कुछ नही छुपा रहा ………..सब सच सच बताता हूँ ……….

बृजराज नें जल पीया ………….पसीनें पोंछे और समस्त बृजवासी समाज को सच बतानें लगे ।

हे पंच परमेश्वरों ! और समस्त बृजवासी ! मेरी बातें ध्यान से सुनें ……

“मेरे घर कन्हैया का जब जनम हुआ ………छ दिन ही हुए थे कि पूतना आगयी ……..आप सब जानते हैं ………वो राक्षसी कितनी भयानक थी …….फिर शकटासुर आगया ….कागासुर आगया ………..ये सब राजा कंस ही भेज रहा था मेरे पुत्र को मारनें के लिये ।

उन्हीं दिनों मेरे गुरुदेव महर्षि शाण्डिल्य की कुटिया में आचार्य गर्ग मथुरा से पधारे थे …………गुरुदेव की आज्ञा से ही मैने स्वीकार किया की आचार्य गर्ग ही मेरे पुत्र का नाम करण करें ।

पर मेरे गुरुदेव और आचार्य गर्ग नें मुझे ये कहकर रोक दिया कि ……..गौशाला में ही गुप्त रीती से नामकरण संस्कार बालक का किया जाए ……ताकि राजा कंस को खबर न पहुँचे ।

राजा कंस को खबर पहुँच जाती तो ? पंचों नें पूछा ।

बृजराज बोले – वसुदेव का अष्टम पुत्र मान बैठा है कंस मेरे कन्हैया को …..और आचार्य गर्ग वसुदेव के ही पुरोहित थे …………इस बात को छुपाना ही ठीक लगा मेरे गुरुदेव महर्षि शाण्डिल्य को ……..उन्हीं की आज्ञा हमनें पालक करी ।

आप सत्य कह रहे हैं बृजपति ? पंचों नें पूछा ।

मैं असत्य नही बोलता ……ये बात बृजमण्डल जानता है ……..बृजराज नें गम्भीरता से उत्तर दिया ।

तो इसका मतलब …….नामकरण संस्कार हुआ है श्रीकृष्ण का ?

हाँ ……हुआ है …….बिल्कुल हुआ है ।

कुण्डली बनाई होगी आचार्य गर्ग नें ………..उसमें आपका पुत्र है या नही श्रीकृष्ण , ये लिखा होगा ?

हाँ …..लिखा है …………….

तो हम सब को वो कुण्डली देखनी है…….और अगर आप नही दिखा पाये तो श्रीकृष्ण को हम जाति विरादरी से आज ही निकाल देंगे !

पंचो नें अपनी बात कह दी थी ।

नही नही ……..मेरे लाला को जाति विरादरी से अलग मत करो ………..मैं अभी कुण्डली लाता हूँ ………उसमें स्पष्ट लिखा है कि कन्हैया मेरा ही सुत है …………मेरा ही आत्मज है …..बृजपति अपनें महल की ओर चल दिए ……..शीघ्रता से चल रहे थे ।


बृजरानी ! सुनो !

बृजराज नें महल में जाते ही अपनी भार्या यशोदा को पुकारा ।

हाँ , क्या बात है…….आप इतनें घबड़ाये हुए क्यों हैं ? मेरा लाला कन्हैया तो ठीक है ना ? बृजरानी नें आते ही पूछा ।

लाला ठीक है …….पर सुनो ! अपनें लाला की कुण्डली कहाँ है ?

बृजराज की बातें सुनकर अब मुस्कुराईं यशोदा ………क्यों ? क्या हमारे लाला का ब्याह होगा ? या कोई सम्बन्ध आया है ?

बृजराज बोले – बृजरानी ! तुम्हे ब्याह की पड़ी है ………हमारे लाला को जाति विरादरी से पंचायत में अलग करनें की माँग कर रहे हैं ।

क्यों जी ! ऐसे कैसे कर देंगे !

क्यों की गोवर्धन पर्वत उठाया ना हमारे लाला नें इसलिये ………बृजपति समझा रहे हैं ।

लो , ये भी कोई बात हुयी …….अरे ! सबके प्राणों को बचाया मेरे लाला नें ……और फिर ये लोग उसी को जाति से अलग कर रहे हैं !

बृजरानी बोले जा रही हैं ।

तुम नही समझोगी ………..यशोदा ! उन लोगों का कहना है कि ….सात कोस के पहाड़ को कोई सातवर्ष का बालक कैसे उठा सकता है …….तो हमारा कन्हैया कोई भूत प्रेत है ………..बृजराज नें समझाया ।

हाय ! देखो ! कैसे कैसे लोग हैं ……मेरा कान्हा भूत प्रेत है ? ……..जो कह रहे हैं ना ……वहीं होंगे भूत प्रेत !

और मेरे कान्हा नें कहाँ उठाया गोवर्धन पर्वत …….आपनें नही कहा पंचों से ……..सब ग्वालों नें तो अपनी अपनी लाठी भी लगाई थी …….और अभी भी मेरे लाला की कलाई दूखती है ………मैं नित्य उसके हाथ की मालिश करती हूँ…….बृजराज नें यशोदा से कहा ……अच्छा ! अच्छा ! तुम शीघ्र कुण्डली दोगी …….वहाँ पूरी महापंचायत प्रतीक्षा में है ।

बृजरानी नें कुण्डली निकाल कर देदी ।

बृजराज गए ……….पर जाते जाते साथ में महर्षि शाण्डिल्य को भी ले गए …………पंचायत में सबके सामनें खड़े होकर महर्षि नें आचार्य गर्ग द्वारा लिखित कुण्डली का वाचन किया ……………

“तस्माद् नन्दात्मजो”

आप जानते हैं ……..आत्मजः शब्द अपनें पुत्र के लिये ही आता है ।

गम्भीर वाणी में जब महर्षि शाण्डिल्य नें कुण्डली वाच कर सुनाई ……सब सन्तुष्ट हो गए …………पंचों नें बृजराज से क्षमा भी मांगी ।

मैं भी कुछ कहूँगा …………अब मनसुख भी वहाँ पहुँच गया था ।

“कौन कहता है कन्हैया नें गोवर्धन पर्वत उठाया ……..गोवर्धन तो हमसब नें उठाया था …….हमारी लाठियों नें पर्वत को धारण किया था ……क्या आप लोगों नें देखा नही ?

मनसुख की बातों पर सब नें करतल ध्वनि की ……….. और इन्हीं चर्चाओं के साथ ….क्षमा माँगते हुए पंचायत को यहीं विराम दे दिया गया था ।

उद्धव मुस्कुराते हैं – तात ! अद्भुत माधुर्य रस का केंद्र बृज ही है ……..यहाँ कोई भगवान नही मानता श्रीकृष्ण को ………हाँ ज्यादा चमत्कार देख लेते हैं ये लोग तो “भूत प्रेत इसमें घुस गया” ऐसा बोल सकते हैं ……पर ऐश्वर्य का यहाँ प्रवेश निषेध है ।

विदुर जी इस प्रसंग को सुनकर गदगद् हो उठे थे ।

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