श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! वरुण लोक में नन्दबाबा जब बन्दी बने !!
भाग 1
तात ! ये प्रसंग अद्भुत है……वरुण देवता के दूतों नें बृजराज बाबा को बन्दी बना लिया…..और इतना ही नही वरुण लोक में लेजाकर रख दिया…..उद्धव विदुर जी को ये लीला सुना रहे हैं ।
उद्धव ! ये कैसे हुआ ? और वरुण देवता के दूत किस अपराध के चलते नन्दबाबा को पकड़ कर ले गए वरुणलोक में ? विदुर जी नें ये प्रसंग सुनना चाहा ।
तात ! श्रीकृष्ण के समस्त तीर्थ बृज में प्रकट कर देनें की घटना से बृजराज बाबा चकित थे………वो बार बार यही विचार करते ……..क्या पंचायत की बातें सही थीं ? क्या मेरा श्रीकृष्ण देवता या ?
क्यों की साधारण मानवी चारों धामों का आव्हान करके बुला नही सकता ……….और समस्त तीर्थ भी तो आगये हैं बृज में ………..इतना ही नही …..तीर्थों के अधिदैव मेरे पुत्र की स्तुति भी कर रहे थे ………..
बृजराज बाबा बस यही सोचते रहते हैं आजकल ।
आज एकादशी थी ………..जागरण में थे बृजराज बाबा ……..इनका नियम था ……एकादशी की रात्रि में ये शयन नही करते थे ………
माला जपते हुए , भगवन्नाम का जाप करते हुए बाहर टहल रहे थे रात्रि में ………..कुछ देर बाद उन्हें लगनें लगा कि ……..कहीं ब्रह्ममुहूर्त का समय तो नही हो गया ? फिर विचार किया …..अगर समय नही भी हुआ होगा……तो हो जाएगा……चलो ! यमुना के किनारे ही चला जाए ……ऐसा विचार करके बाबा नन्द यमुना के तट पर चल दिए ।
तात ! उस समय मध्यरात्रि थी …………नन्दबाबा को लगा कि हो गया होगा ब्रह्ममुहूर्त ……..स्नान करनें के लिये यमुना जी में उतरे …..
पर जैसे ही उतरे ………….वैसे ही वरुण के दूत नन्दबाबा को वरुण पाश से बांध कर वरुण लोक में ले गए थे ।
नन्दबाबा घबडा रहे हैं ……..उनके समझ में नही आरही कि मुझे कहाँ ले आये हैं ये लोग ………..लोक को ध्यान से देखते हैं ………राजा कंस की मधुपुरी तो ये है नही …….न ये लोग राक्षस ही लग रहे हैं । सुन्दर , शान्त , गम्भीर हैं इस लोक के लोग ।
ये मानव रात्रि में जलाशय में स्नान कर रहा था !
दूतों नें नन्दबाबा को वरुण देवता के सामनें खड़ा किया ।
मुझे पकड़ा क्यों है ? मुझे छोडो ……..नन्दबाबा अपनें आपको छुड़ाना चाहते हैं ….पर वरुण पाश है …….कोई सामान्य पाश नही ।
इसको बन्दी बनाकर रखो ! वरुण देवता का आदेश ।
क्यों ? क्यों बन्दी बना लो ! क्या स्नान करना अपराध है ?
नन्दबाबा बेचारे वरुण देवता से ही पूछ रहे हैं ।
वरुण देवता हँसा ..अर्धरात्रि में जलाशय में स्नान करना अपराध है…..क्या तुम्हे पता नही है ….. जल के हम देवता है…. हम शयन करते हैं उस समय….और तुम हमें विघ्न डालनें आजाते हो !
हमें पता नही था ……..हम तो सीधे सादे ग्वाल हैं ……….हम से गलती हो गयी हमें क्षमा करें और हमको जानें दें …….. नन्दबाबा नें हाथ जोड़कर वरुण से कहा ।
नही, तुम अपराधी हो …..और तुम्हारे अपराध को क्षमा कर भी दें हम …पर और मानवी इन्हीं गलतियों को दुहराता रहेगा………..इसलिये तुम्हे दण्डित करना ही होगा……..ले जाओ इसे ! वरुण देवता नें एक न सुनीं नन्दबाबा प्रार्थना करते रहे ……पर ।
तात ! ये अपराध नही ……..छोटी सी त्रुटि थी…नदियों का अधिदैव होता ही है ..वो भी अर्धरात्रि को विश्राम करता है ……हाँ, ये सामान्य त्रुटि का रूप था …इसे क्षमा किया जा सकता था …..पर अहंकार वरुण पर भी सवार है ……इसलिये नन्द बाबा को उसनें छोड़ा नही ।
उद्धव नें विदुर जी को बताया ।
क्रमशः….
*शेष चरित्र कल –


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