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August 2, 2025 2:16 am

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श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! वरुण लोक में नन्दबाबा जब बन्दी बने !!-भाग 2 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! वरुण लोक में नन्दबाबा जब बन्दी बने !!-भाग 2 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्

!! वरुण लोक में नन्दबाबा जब बन्दी बने !!

भाग 2

नही, तुम अपराधी हो …..और तुम्हारे अपराध को क्षमा कर भी दें हम …पर और मानवी इन्हीं गलतियों को दुहराता रहेगा………..इसलिये तुम्हे दण्डित करना ही होगा……..ले जाओ इसे ! वरुण देवता नें एक न सुनीं नन्दबाबा प्रार्थना करते रहे ……पर ।

तात ! ये अपराध नही ……..छोटी सी त्रुटि थी…नदियों का अधिदैव होता ही है ..वो भी अर्धरात्रि को विश्राम करता है ……हाँ, ये सामान्य त्रुटि का रूप था …इसे क्षमा किया जा सकता था …..पर अहंकार वरुण पर भी सवार है ……इसलिये नन्द बाबा को उसनें छोड़ा नही ।

उद्धव नें विदुर जी को बताया ।


लाला ! तेरो बाबा कहाँ चलो गयो देख ना !

मध्यान्ह का समय हो गया है……..बृजरानी का रो रोकर बुरा हाल है ।

कन्हैया समझ तो सब गए हैं ……पर यहाँ कहें किसे ?

रात्रि में ही गयो हो तेरो बाबा….पर अभै तक नाँय आयो ! देख !

कन्हैया कुछ कहते कि उसी समय एक ग्वाला नन्दबाबा के वस्त्रों को भी ले आया…….मैया ! ये रहे वस्त्र बृजराज बाबा के…..किनारे में मिले मुझे……और हमनें बहुत खोजी पर बाबा को पतो ही नायँ चल्यो !

अब तो धड़ाम पछाड़ खाय के मैया गिरीं हैं……..और कन्हैया का हाथ पकड़ के बोलीं…..लाला ! कछु अनिष्ट तो नायँ भयो ?

गम्भीर होकर कन्हैया बोले – नायँ मैया ! बाबा ठीक हैं ……मैया ! तू धैर्य रख , मोय पतो है ……बाबा कहाँ गयो हैं …….मैं जाके देखूँ ।

इतना कहकर कन्हैया चल पड़े यमुना जी की ओर…….ग्वाल बाल आरहे थे पीछे ……..कन्हैया नें मना कर दिया …..और अकेले चल पड़े ।

यमुना में पहुँच के गोता लगाया कन्हैया नें और सीधे पहुँचे वरुणलोक ।


गोलोक बिहारी श्रीश्यामसुन्दर पधारे हैं !

दूतों नें जैसे ही आकर वरुण देवता को सूचना दी…….काँप गए वरुण ।

मेरे छोटे से लोक में गोलोक बिहारी कैसे पधारे ?

वरुण देवता दौड़े …….पूजा की थाली आरती भोग सब कुछ तैयार करके वरुण देवता शीघ्र चल रहे हैं………..

पर इधर कन्हैया को बृजराज नें देख लिया ……….बन्दी थे वे …….पर अपनें पुत्र नन्दनन्दन को देखते ही वे चिल्लाये ।

कन्हैया ! लाला !

कन्हैया नें अपनें बाबा की आवाज सुनी …………..वो मुड़े पीछे ……तो बृजराज के नेत्रों से अश्रु गिर रहे थे ……..लाला !

कन्हैया दौड़े अपनें बाबा के पास ………..वरुण पाश को तोड़ के फेंक दिया नन्दनन्दन नें……….बाबा ! यहाँ कैसे ?

बृजराज बाबा बोले ……..अहंकारी है ये देवता मुझ से इतनी ही गलती हुयी कि मैं अर्ध रात्रि को यमुना जल में उतरा था …….पर उसके लिये ?

मैं आगया हूँ बाबा ! मैं सब देख लूँगा ।

अब तो छाती तानकर खड़े हैं नन्दबाबा भी ।

वरुण नें आते ही साष्टांग ढोग लगाई कन्हैया के चरणों में ……..अपनें ही सिंहासन में विराजमान कराया ………पूजन किया ……….पुष्प अर्पित किये उन युगल चरणों में ।

नाथ ! कैसे पधारे इस सामान्य देवता के लोक में ?

वरुण नें हाथ जोड़कर पूछा ।

“ये मेरे पिता जी हैं”………नन्दबाबा को दिखाते हुए कन्हैया बोले ।

ओह ! अपराध हो गया भगवन् ! बहुत बड़ा अपराध हो गया !

मेरे सेवक अच्छे नही हैं…….मूढ़ हैं ………आपके पिता जी को ही पकड़ कर ले आये ! ……मेरे सेवकों को क्षमा करें भगवन् !

ये कहते हुए वरुण देवता नें नन्दबाबा के भी चरण छूए ।

सिहांसन में बैठाया कन्हैया नें अपनें बाबा बृजराज को……फिर बोले – ये आपका अपराध है ….अहंकार चरम पर पहुँच गया है आपका……आपनें अपराध किया है ……हे वरुण देवता ! आपको क्या दण्ड मिले ? कन्हैया गम्भीर होकर बोल रहे हैं…….वरुण देवता काँप रहा है……..उसके मुँह से शब्द नही निकल रहे ।

लाला ! ए कन्हैया ! चल छोड़ दे इसे…….अपराध हमसे भी तो हुआ है ना ! इसलिये चल अब ! तेरी मैया बहुत दुःखी होगी वहाँ…..चल !

नन्दबाबा नें अपनें सुत नन्दनन्दन का हाथ पकड़ा और चलनें लगे …….

अपनें बाबा की बात मानते हुये कन्हैया भी चल दिए ……..और वृन्दावन में पहुँच गए थे ………यशोदा मैया नें जब देखा अपनें पति और पुत्र दोनों को तब तो उनके आनन्द का कोई ठिकाना नही था ……सुख के अविरल अश्रु बहते रहे थे ।

पर – इस प्रसंग नें तो बृजराज बाबा के सामनें कन्हैया की छबि “भगवान” की बना दी थी…….तात ! वरुण लोक से आनें के बाद नन्दबाबा नें सबको कहना शुरू कर दिया था……”श्रीकृष्ण भगवान” है ।

पर ग्वाले कहते – सारे भगवान तेरे ही घर पैदा है गए , क्यों बाबा !

आनन्दित होते हैं विदुर जी इस प्रसंग को सुनकर ।

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