श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! श्रीराधा कृष्ण विवाह !!
भाग 1
उद्धव ! क्या सर्वेश्वरी श्रीराधिका का श्यामसुन्दर से विवाह हुआ ?
कलिन्द नन्दिनी के तट पर बैठे श्रीकृष्णलीला का रसास्वादन कर रहे विदुर जी के मन में ये प्रश्न उठा था ।
ये प्रश्न सुनते ही उद्धव नें लम्बी साँस ली…..आह भरी ….बोलना चाह रहे थे पर बोल नही पाये….नेत्रों से अश्रु बहनें लगे…..”श्रीराधा श्रीराधा” यही नाम सहज उनके रोम रोम से प्रकट होनें लगा ।
ये दो हैं नहीं …एक ही हैं ……फिर एक में विवाह कैसे , विवाह के लिये तो दो की आवश्यकता पड़ती है ना तात ! उद्धव कुछ देर में बोले ।
मौन छा गया कालिन्दी के तट पर…….ये प्रेम , विशुद्ध प्रेम की मूर्ति हैं श्रीराधा…….आनन्द को आनन्द प्रदान करनें वाली हैं ये श्रीराधा ………श्रीकृष्ण के हृदय में बसे प्रेम का साकार रूप है श्रीराधा ।
तात ! हुआ था विवाह ………उद्धव नें कहा ।
पर विवाह सामाजिक नही था…….न बृज में किसी को पता ही चला……..स्वयं विधाता ब्रह्मा नें आकर इस विवाह की समस्त विधियों को पूरा किया था ……………
एकाएक नेत्रों से अश्रु झरनें लगे थे उद्धव के…..हिलकियाँ बंध गयी थीं ।
ये सब एकाएक ही हो गया था ………विदुर जी को भी समझ में नही आया कि ऐसी क्या बात हो गयी ?
उद्धव घड़ी दो घड़ी के बाद ही कुछ बोल पाये थे ।
तात ! मेरे श्रीकृष्ण नें जब मथुरा से मुझे वृन्दावन भेजा …….और कहा …….मेरा सन्देश देकर आना ………मैं आया यहाँ …….मैं तो ज्ञानी बनकर आया था ……ज्ञान सिखानें आया था …….पर इस प्रेम की भूमि नें मेरा ज्ञान सब झाड़ दिया ………..मैं अपनें अंदर के ज्ञान को प्रेम नदी में बहते साफ़ साफ देख रहा था ।
मैं छ महिनें यहाँ रहा …………….
उस दिन की बात…….सर्वेश्वरी श्रीराधिका जू के चरणों में मैं बैठा था ……..भाव जगत की जो सर्वोच्च स्थिति है वो स्थिति उस समय श्रीराधारानी की थी …………वो कभी हंसतीं …….कभी दहाड़ मारकर रोनें लग जातीं………समय लगा तात ! श्रीजी को उस भाव जगत से बाहर आनें में …………..और जब आईँ ……तब उन्होंने ही ये रहस्य मेरे सामने उजागर किया था ।
ये है भाण्डीर वट !
श्रीराधारानी नें मुझे उस स्थान के दर्शन कराये थे ।
दिव्य था वह वट और वो वन ……………
उद्धव ! मुझे स्वीकार किया मेरे नन्दनन्दन नें ये क्या मेरा कम सौभाग्य है ! उद्धव ! मथुरा की ललनाएँ सब पागल होंगीं ना नन्दनन्दन के पीछे ………….हाँ , वो मथुरा है नागरी सभ्यता की वो और हम ! गंवार ……….कुछ नही जानती फिर भी , मेरे साथ ! ये राधा पूरी गंवार है …………बरसानें की मै रहनें वाली ……..हाँ उस सुकुमार साँवरे से प्रीत कर बैठी थी ।
यहाँ कुछ देर के लिये मौन हो जाती हैं श्रीराधा ……….फिर बोलनें लगती हैं ……..मुझे तात ! श्रीराधारानी नें ही अपनें मुखारविन्द से अपनें विवाह की चर्चा करके सुनाई थी ।
उद्धव ! मैं तो नित्य आती थी बरसानें से नन्दनन्दन के पास ……..वो लौटकर आते गौचारण करते हुए ………मैं उसी समय चली जाती वृन्दावन में ………..वे मुझ से मिलते ………हम दोनों बैठकर बितियाते रहते थे……उनकी वो हँसी ……मुस्कुराहट……उनकी झूठी साँची बतियाँ ।
क्रमशः …


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