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December 4, 2024 8:29 am

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दादरा नगर हवेली एवं दमन-दीव क्षेत्र भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रभारी श्री दुष्यन्त भाई पटेल एवं प्रदेश अध्यक्ष श्री दीपेश टंडेल जी के नेतृत्व में संगठन पर्व संगठन कार्यक्रम दादरा नगर हवेली के कार्य पाठशाला का आयोजन किया गया.

श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! गोपियों का प्रणय कोप – “रासपञ्चाध्यायी” !!-भाग 1 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! गोपियों का प्रणय कोप – “रासपञ्चाध्यायी” !!-भाग 1 : Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्

!! गोपियों का प्रणय कोप – “रासपञ्चाध्यायी” !!

भाग 1

प्रेम विचित्र है …….प्रेम की चाल विचित्र है ।

ये कैसे चलेगा इसका कोई सीधा गणित नही है ………तात ! “गणित” तो प्रेम में होता ही नही है ……इसमें तो “गीत” होते हैं ….गणित बुद्धि से निकलता है ….पर गीत हृदय से…….गणित में रस कहाँ ! क्यों की रस का केंद्र बुद्धि नही……हृदय है……..रस तो गीत में है ।

उद्धव विदुर जी को “रासप्रसंग” सुनाते हुये ये सब बता रहे थे ।

सब त्याग कर चली आईँ थीं ये सब बृजांगनाएं ……….जिस शिला पर मुरलीमनोहर विराजे थे उसी के चारों ओर खड़ी हो गयीं आकर ।

मुरली मनोहर नें अपनी मुरली फेंट में रखी ……..और मुस्कुराकर सबका स्वागत किया । …….तात ! कामदेव ऊपर से देख रहा है ।

हे बृजगोपियों ! आप सबका स्वागत है मेरे वृन्दावन में !

मुस्कुराते हुये आगे बढ़कर गोपियों का स्वागत किया नन्दनन्दन नें ।

पर , आप लोग यहाँ आई क्यों हो ?

ओह ! ये क्या पूछ लिया इस किशोर नें ? कामदेव अपना सिर पकड़कर बैठ गया …………..

हाँ हाँ, बताओ……

……..क्यों आई हो ? नन्दनन्दन बस अपनी बोले जा रहे थे ।

ओह ! अब समझा मैं , तुम रात्रि की शोभा देखनें आयी हो ! कि पूनों की रात में वृन्दावन की शोभा कैसी होती है ? पर अब तो देख ली होगी ! जाओ ! जाओ गोपियों ! जाओ !

कामदेव को लगा कि मेरा अगर शरीर होता तो मैं इसी शिला में अपना माथा पटक पटक कर मर जाता……..ये किशोर विचित्र है …..स्वयं ने ही बांसुरी में नाम ले लेकर इन गोपियों को बुलाया …….अब जब ये आगयीं तो कह रहा है …….क्यों आयी हो ?

हाँ, हाँ बताओ ! श्यामसुन्दर अभी भी बोले जा रहे हैं ।

देखो ! तुम लोगों के पति तुम्हारी बाट देख रहे होंगें …………जाओ ! पतियों को इस तरह छोड़कर मेरे पास आना अच्छा नही है …जाओ !

और हाँ , क्या तुम्हे पता नही …..पति ही ईश्वर होता है ……..पति की सेवा से बढ़कर इस जगत में कुछ नही है ……..हे गोपियों ! पति चाहे वृद्ध हो जड़ हो रोगी हो धन से हीन हो ……पर स्वर्ग जिसे चाहिए वो स्त्री पति की सेवा करे ………जाओ ! तुम लोग सेवा करो अपनें अपनें पति की……….नन्दनन्दन इतना कहकर चुप हो गए थे ।

गोपियों का मुख कमल पहले जैसे खिला हुआ था ……….अब ये सब सुनकर तुरन्त मुरझा गया ……..नेत्रों से अश्रु बहनें लगे ……उन अश्रुओं के साथ कज्जल भी बह रहा था , उन गोपियों के गोरे कपोलों को काला बना रहे थे वे कज्जल मिश्रित अश्रु ।

नही नही, अश्रु तो निरन्तर बहते ही जा रहे थे तात ! अजस्र अश्रुधारा ……..कपोल वक्ष सब कुछ गीला कर दिया था उन अश्रुओं नें ।

पर कुछ गोपियाँ अपनें पैर के अँगूठे से धरती कुरेदनें लगीं थीं ।

ये क्या कर रही हो ? नन्दनन्दन ने जब पूछा तो वो गोपियाँ हिलकियों से रो पडीं……….उनका रुदन बज्र हृदय को भी पिघाल देता ………

हे श्याम ! “वैदेही की तरह हम भी समाना चाहती हैं इस धरती में”

ओह ! कैसा प्रणय था इनका ………..और उस प्रणय पर जब प्रिय के प्रति कोप जाग्रत हुआ ………तब जो प्रेम की वैचित्र्यावस्था हुयी …..वो अवर्णनीय था……..बस रसिक अनुभव कर सकते हैं ।

गिर ही जातीं ये गोपियाँ ……मूर्छित ही हो जातीं ………संज्ञाशून्य तो हो रही थीं ….इनके आँखों के आगे अन्धकार छानें लगा ।

श्यामसुन्दर ! इतनें निर्दयी मत बनो !

क्रमशः …

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