श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! प्रेम गली में, “मैं” कहाँ ? – “रासपञ्चाध्यायी” !!
भाग 2
पहले मेरी वेणी गुँथों श्याम !
……गोपियों में अब ईर्ष्या की भावना बढ़नें लगी ।
तुमनें उस सखी की बात क्यों मानीं ! ईर्ष्या नें अब स्पर्धा का रूप ले लिया था ।
“जाओ मैं तुमसे बात नही करती”………मान करके बैठ गयी गोपी ।
श्यामसुन्दर किसी गोपी को मना रहे हैं ……किसी गोपी के वेणी में फूल लगा रहे हैं……वे हंस रहे हैं …..वे मुस्कुरा रहे हैं……व्यस्त हैं ।
तभी एक परमशीतल कोमल हस्त नें श्यामसुन्दर के कन्धे को छूआ …….मुड़े श्यामसुन्दर ……तो पीछे श्रीराधारानी खड़ी थीं ……
क्या कर हे हो ये प्यारे ! श्रीराधारानी नें श्यामसुन्दर से पूछा ।
कन्धा उचकाकर बस मुस्कुराये श्याम ।
चलो अब ! श्रीराधारानी नें कहा……..यहाँ क्यों रहोगे अब तुम ……इन सबके मन में अहंकार आगया है …….मान नें प्रवेश किया है इनके मन में……..तुम कब तक ऐसे विवश बने रहोगे प्यारे !
भोले श्यामसुन्दर मुस्कुराये……..और अपनी प्राणाधिका से बोले ……चलो ! और अंतर्ध्यान हो गए उसी समय ।
आर्त क्रन्दन कर उठीं थीं गोपियाँ ……..नृत्य करते करते जब उन्होंने देखा कि श्यामसुन्दर नही हैं ! ओह ! कहाँ गए श्याम ! उनका क्रन्दन असह्य हो गया था ……..
वो सब गोपियाँ श्याम को खोजनें के लिये भागनें लगीं इधर उधर…….वहाँ गए होंगें ! उस कुञ्ज में छुपे होंगे ! उस गोवर्धन की गुफा में होंगें ! पर गोपियों को कहीं नही मिले………..
हाय हाय ! हमारा दुर्भाग्य ……..अनन्त जन्मों का सौभाग्य प्रकट हुआ था …..पर हमनें अपनें ही हाथों उसे हटा दिया ।
हम सुन्दर हैं ? गाँव की गंवारन हम …….न बोलनें का तरीका आता है न बैठनें का ……न कुछ करनें का ………फिर भी अहंकार ?
गोपियों का क्रन्दन अब प्रकृति को भी उद्वेलित कर रहा था ………..पशु पक्षी सब देख रहे थे भावुक होकर ………गोपियों का रुदन उनको असह्य हो उठा था ।
सच है किसी भिखारी को खजाना मिल जाए ……..तो उसे खजाना कीमती ही नही लगता………..ऐसी ही स्थिति सखियों ! हमारे साथ हुयी है……….श्याम सुन्दर हमें मिले थे ………श्याम – जिसकी इक झलक के लिये देव भी लालायित रहते हैं……..ऐसे श्याम हमारी बाँहों में थे ……..पर हमें अपनी पड़ी थी……हमें अपना अहंकार ही सबकुछ लग रहा था …….हाय ! हमारा दुर्भाग्य ! गोपियाँ रो रही हैं ।
अरे ! पीपल ! तू तो कुछ बोल ! एक गोपी चिल्लाई ।
दूसरी बोली – बेकार में मत चिल्ला ……ये पीपल भी तो अहंकारी हो गया है ………लोग इसकी पूजा करते रहते हैं इसलिये अहंकार नें इसे घेर लिया है…….ये कुछ नही बोलेगा ।
अरे ! वट ! तू तो कुछ बोल ……हमारे श्याम सुन्दर कहाँ गए ?
एक गोपी फिर रोते हुए पूछ रही थी ।
“नही बताएगा ये वट वृक्ष भी” …..दूसरी गोपी तुरन्त बोल पड़ी ।
क्यों कि……कहते हैं वृद्धावस्था में व्यक्ति थोड़ा कम सुनता है ।
फिर एक गोपी जोर से चिल्लाई…..वट ! बताओ हमारे श्याम कहाँ है ?
दूसरी गोपी फिर बोली ……..”सठिया भी जाता है बुढ़ापे में” ।
पर ये बूढ़ा कहाँ है ?
"इस वट वृक्ष की दाढ़ी तो देख ....कितनी लम्बी लम्बी दाढ़ी हैं" - दूसरी गोपी व्यंग में ये भी बोली ।
एक गोपी तो कदम्ब वृक्ष को पकड़ कर रोनें लगती है……हम लोगों में अहंकार आगया इसलिये श्याम सुन्दर हमें छोड़ कर चले गए हैं…..अरे ! कदम्ब बता ! क्या हम लोग अहंकार करनें जैसी हैं ? न रूप न शील, न कोई गुण – कुछ भी तो नही है हममें……..फिर भी “मैं मैं मैं”……इसी “मैं” नें हमें श्यामसुन्दर से वंचित कर दिया है ……अब तू बता कदम्ब ! हम क्या करें ? कहाँ जाएँ ? उस गोपी की बात सुनकर सब वहीं आगयीं ….और कदम्ब वृक्ष के सामनें सबका रुदन शुरू हो गया था ।
*शेष चरित्र कल –
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