श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! ओह ! अब बृजगमन की भूमिका !!
भाग 2
सेनापति अक्रूर को बुलाओ ……………कंस नें आज्ञा दी ।
महाराज कंस की जय हो !
सेनापति अक्रूर नें आते ही सिर झुकाकर प्रणाम किया था ।
आओ , आओ अक्रूर ! तुम मेरे अपनें हो ……इसलिये मैने तुम्हे यहाँ बुलाया है ……….कंस नें अपनें निकट ही आसन दिया अक्रूर को ।
मैने तुम्हे इसलिये बुलाया है कि ………..मथुरा में धनुष यज्ञ है ……बड़े बड़े राजा महाराजा उसमें आरहे हैं ………कंस इतना कहकर रुक गया ।
जी, जी महाराज ! ये तो बड़ा अच्छा कार्य है……अक्रूर इतना ही बोले ।
“इस यज्ञ में तुम्हे वृन्दावन से बलराम कृष्ण को लेकर आना है”
मुख्य बात यही थी ….कंस नें इधर उधर बात न घुमाते हुये सीधे कही ।
पर , पर क्यों ? अक्रूर नें पूछ लिया ।
अक्रूर के कन्धे में हाथ रखते हुये कंस नें कहा ………..अक्रूर ! तुम से क्या छुपाना………..तुम सब जानते हो ……..कृष्ण मेरा काल है ……..वही वसुदेव का लाल है ………मुझे सब पता है …..ये देवों नें किया है सब ……………तुम जाओ और जाकर उन्हें ले आओ ……..धनुष यज्ञ को देखनें में लगेंगे कृष्ण और राम तभी मैं उन्हें मार दूँगा ।
कंस कितना निरीह लग रहा था आज ।
कौन किसे मारता है राजन् ! सब अपना भोग भोगते हैं ………जैसा हम कर्म करेंगे फल तो मिलना ही है …………अच्छे का फल अच्छा बुरे का बुरा ………..इसलिये अपनें कर्मों को सुधारना हम लोगों कि पहली प्राथमिकता होनी चाहिये …….अक्रूर अब बोल रहे हैं …….उन्हें लगा कि सही को सही और गलत को गलत कहनें का पौरुष को मैं क्यों छोड़ूँ ।
कौन किसे मारेगा राजन् ! ये कोई नही जानता….आप उन्हें या वो आपको ? अक्रूर के मुँह से ये सब सुनते ही….कंस चीख पड़ा ….और अपना खड्ग निकाल कर बोला ………….मार दूँगा तुझे सेनापति ! तू जानता है ना मुझे ! कंस नें तलवार खींच ली ।
तभी – महाराज कंस कि जय हो ! मन्त्री नें प्रवेश किया था ।
हाँ , क्या समाचार हैं ? कंस नें पूछा ।
असुर श्रेष्ठ केशी का वध कर दिया वृन्दावन के उस ग्वाला नें !
सिर झुकाकर समाचार दिया ।
अक्रूर आश्चर्य में पड़ गए …….केशी का वध कर दिया ?
केशी को मारना ? पृथ्वी में ऐसा कोई वीर नही है जो केशी का वध कर सके ………….तो ? ओह ! नन्दनन्दन भगवान के अवतार हैं ।
श्रद्धा से भर गए थे अक्रूर ………….मैं आऊँगा आपके पास ……आपको लेनें ….और इस राजा कंस के अत्याचार से मथुरा कि प्रजा को छुटकारा दिलानें ।
मन्त्री कि बात सुनते ही ….क्रोध और नैराश्य से भर गया था कंस …….तलवार जो उसके हाथ में थी …..उसी को अपनें हाथों से पकड़ कर दबानें लगा था रक्त उसका बह रहा था ……………..
महाराज ! मैं जाऊँगा वृन्दावन ! अकृर नें सिर झुकाकर कहा ।
कंस इस बात से बहुत प्रसन्न हुआ ……..उसनें अक्रूर को अपनें गले से भी लगाया …..और अपना स्वर्ण रथ देकर कहा ……इसे अपनें भवन में ही रखो …..प्रातः इसी में जाना वृन्दावन ! कंस नें अक्रूर को भेज दिया था ……..अब अक्रूर को प्रातः जाना है वृन्दावन के लिये ।
उठो लाल ! देखो ! सुबह हो गयी है ……….गौ चरानें नही जाना ?
उठो ! मेरे कान्हा ! उठ ! मेरी बात क्यों नही मानता तू ?
उठ ! जैसे ही बृजरानी नें कन्हैया को छूना , उठाना चाहा ……..वहाँ कोई नही है ………….कन्हैया ! जोर से चिल्लाई मैया …………..
क्या हुआ यशोदा ? क्या हुआ ? बृजराज नें उठकर पूछा ……यशोदा नें उठते ही सबसे प्रथम अपनें कन्हैया को देखा ……..वो सो रहा है ….बड़ी गहरी नींद है उसकी …………..।
बृजराज ! मैने एक भयानक स्वप्न देखा ………..यशोदा मैया अभी भी घबड़ाई हुयी हैं …………मेरा लाला हमें छोड़कर चला गया है …….कहीं दूर ……….बड़े बड़े राक्षस उसे घेरे हुये हैं ………वो कूद पड़ता है समुद्र में …….समुद्र की तरंगों में फंस जाता है ……………मैं देख रही हूँ उसे …..मैं चिल्लाती हूँ, उसे बुलाती हूँ …..पर वो मुझे से दूर होता चला जाता है …………दूर दूर , बहुत दूर !
बृजरानी ! तुम भी, कुछ भी सपना देखती रहती हो ………. हमारा लाला यहीं हमारे पास ही तो है ……देखो ! नन्दबाबा कहते हैं …समझाते हैं ………हाँ, यशोदा अभी भी घबड़ाई हुयी हैं ……..अपनें लाला को छाती से चिपका कर लेट जाती हैं ……….स्वप्न इतना भयानक था बृजरानी के लिये कि ……….अब इन्हें नींद नही आयी ………अब नींद आएगी भी नहीं ।……..ये कहते हुये उद्धव हिलकियों से रो पड़े थे ।
*शेष चरित्र कल –
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