श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! जब कुब्जा के महल में श्रीकृष्ण गए….!!
भाग 1
तात ! उस दिन “कमलनयन” नें मुझे अपनें पास बुलाया …..और बड़े प्रेम से बोले …उद्धव ! मेरे साथ चलो…..और रथ लेकर चलो ।
उद्धव विदुर जी से कहते हैं ……..मैने तो सिर झुकाया और रथ लाकर उनके सामनें खड़ा कर दिया ……….वो बैठे ……….उस समय मुझे देखकर वो मुस्कुरा रहे थे । ……कहाँ जाना है ? मैने पूछा ।
वो जब बोले – “कुब्जा के महल में” …..मैं चौंक गया था मैने उनकी ओर देखा मानों पूछ रहा था मैं ………कुब्जा के महल में ?
वो बस मुस्कुराये और बोले – तुम बस चलो !
मेरे लिये उनकी आज्ञा सर्वोपरि थी, मैने रथ को कुब्जा के महल की और बढ़ा दिया था ।
रथ आते हुए कुब्जा नें देखा ………उसे तो लग रहा था श्रीकृष्ण अब आएंगे नही ……..क्यों की कुब्जा पूर्व में कंस की दासी रही है …..इसलिये यदुवंशियों में कुब्जा के प्रति अच्छी भावना नही है …..ऐसा विचार कर कुब्जा नें तो ये सोचना छोड़ ही दिया था कि अब उसके यहाँ कभी श्रीकृष्ण भी आएंगे ।
पर आज वो भुवन सुन्दर पीताम्बर धारी श्रीकृष्ण उसके यहाँ आये थे ।
कुब्जा को तो उनके आनें का अभी विश्वास नही हो रहा ………..वो स्तब्ध सी खड़ी रही……अपलक देखती रही मानों वो कोई स्वप्न देख रही है ।
ओह ! उसे जब थोडा होश आया ……तो वो भागी अपनें कक्ष में ….
उसनें स्नान नही किया था…….वो स्नान करती है….अंगराग लगाती है …इत्र फुलेल से अपनें देह को महकाती है ……सुन्दर वस्त्र धारण करके ….वो अब दौड़ पड़ती है……और आलिंगन में भर लेती है श्रीकृष्ण को ।
तात ! मैं वहीं था…….मैं सब देख रहा था……वो कामुक थी पर मेरे श्रीकृष्ण पूर्ण निष्काम ।
मुझे देखा श्रीकृष्ण नें……फिर धीरे से बोले – “.उद्धव ! अभी आया”
मैं वहीं बैठ गया था ……श्रीकृष्ण को लेकर वो कुब्जा गयी थी अपनें निज कक्ष में…..वासना से भरी हुयी वो कुब्जा और ये वासना से मुक्त श्रीकृष्ण ………..कुब्जा नें अपनी सारी साध पूरी की ………पुष्पों के सेज में श्रीकृष्ण को पधराकर उनके साथ उन्मुक्त विहार किया ।
मैने कुब्जा की आँखों में उस विहार का दर्शन किया था ……….श्रीकृष्ण तो जैसे थे वैसे ही थे ……..वो आस्तित्व हैं ……आस्तित्व सबके लिये बराबर है ………..उसकी दृष्टि में कोई छोटा या बड़ा नही होता ।
पर – उद्धव कहते हैं विदुर जी से ……..आँखों में जो लाल रंगाई की थी उसके कारण कुब्जा मदमाती हो गयी थी ।
अब कुब्जा के देह से कमल की सुगन्ध जो श्रीकृष्ण के अंग की सुगन्ध है वो आरही थी ……….पर मेरे में कुब्जा के प्रति कोई श्रद्धा तो छोडो उसको देखनें की भी कामना नही थी . ………..
पर क्यों उद्धव ? श्रीकृष्ण का अंगसंग पाना कोई साधारण बात तो है नही ……..विदुर जी नें उद्धव से कहा ।
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –


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