श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! तेरो लाला दुःख पावे – “उद्धव प्रसंग 2” !!
भाग 1
आप संभालिये अपनें आपको नाथ ! ये क्या कर रहे हैं आप !
मेरे गुरु बृहस्पति मुझे कहते थे …….श्रीकृष्ण आत्माराम हैं , पूर्णकाम हैं वो जगत नियन्ता जगदीश हैं ……..उन्होंने आपके बारे में मुझे सब बताया था …….पृथ्वी का भार दूर करनें के लिये ब्रह्म नें साकार वपु धारण किया है…….उद्धव कहते हैं – तात ! मैं सम्भाले हुये था प्रभु को …….वो रोते जा रहे थे ……वो देह सुध भूल गए थे ।
उद्धव ! मेरे भाई ! यमुना किनारे चलें ? मुझ से बड़ी मुश्किल से बोल पाये थे वे……….मैं क्या कहता ……हाँ , चलो ! उन्हें एकान्त चाहिये था ………वो मुझे और भी बहुत कुछ बताना चाहते थे ।
मैं उन्हें लेकर यमुना किनारे आया……….एक कमल का पुष्प बहता हुआ वृन्दावन से ही आरहा था………उन्माद से भर गए थे मेरे श्रीकृष्ण, वो दौड़ पड़े यमुना में ……..उस कमल को लेकर आये ……….
उद्धव ! ये कमल मेरी राधा नें बहाया है ……हाँ , इसकी सुगन्ध मेरी राधिका के अंग की है………मेरे लिये भेजा है ।
मैं चकित था तात ! श्रीकृष्ण की ऐसी दशा मैनें आज तक नही देखी थी ……..ये क्या था ? मेरे कुछ समझ में नही आरहा था ।
उद्धव ! मेरी गोपियाँ यमुना के किनारे इस समय इकट्ठी होती हैं ……….वो मेरी ही चर्चा करती रहती हैं………मेरा वियोग उन्हें असह्य हो रहा होगा । श्रीकृष्ण मुझे हर बात बता रहे थे बृज की ।
नाथ ! आपके भक्त हैं बृज में …….वो गोपियाँ आपकी भक्ता हैं ……..कौन सी भक्ता हैं ? आर्त, अर्थार्थी, जिज्ञासु या ज्ञानी ? ……..मेरी ये बातें सुनकर वो रुक गए ……….कुछ सोचनें लगे……..फिर सिर हिलाते हुए बोले …….नही उद्धव ! नही ………वो सब मर जाएँगी पर मुझे आवाज नही देंगी ………तो आर्त कैसे हुयीं ? इतना ही विरह है तो मर क्यों नही जातीं ? मैने कह दिया था ऐसे………मेरे मुख को बड़े ध्यान से देखते रहे श्रीकृष्ण फिर बोले …….मरना तो वह चाहती हैं ……पर मेरे लिये सिर्फ मेरे लिये अपनें जीवन को धारण करके बैठी हैं ।
और पता है उद्धव ! मेरे लिये क्यों ? क्यों कि वो मर जाएँगी तो मुझे दुःख होगा इसलिये वो मर भी नही रहीं……..ये कहते हुए हिलकियों से रो रहे हैं श्रीकृष्ण .।
उद्धव ! मैं क्या बताऊँ उन बृजवासियों के बारे में …….तुम चार भक्तों में उन्हें बाँट रहे हो ? वो न आर्त हैं , न मुझे कभी आवाज देकर पुकारेंगे ….न मुझ से कभी कुछ चाहेंगे ……..अर्थार्थी भी नही हैं ……वो तो मुझे ही देंगे …….दिया ही है उन्होंने मुझे …..ये कृष्ण उन्हीं का ऋणी रहेगा सदैव ………….पता है उद्धव ! वो मेरी मैया ! मेरी यशोदा मैया ! गर्मियों में रात रात भर सोती नही थी ……..मुझे पँखा करती रहती थी ………मुझे थोड़े भी स्वेद बिन्दु आजाते तो वो उठकर बैठ जाती …..गीला वस्त्र मेरे माथे में रखकर पँखा ……….गर्मियों में वो कभी रात में सोई नही ………….मेरे लिये माखन निकालती थी …….श्रीकृष्ण रोते जा रहे हैं और बताते जा रहे हैं उद्धव को ……..मैया के यहाँ दास दासियों को कमी नही थी ………फिर भी मेरे लिए दास दासियों से नही ….स्वयं ही माखन निकालती ………निकालते हुये गदगद् हो जाती …ओह उद्धव ! मुझे जब माखन खिलाती थी ना …मैं खानें के बाद कहता – बस हो गया मेरा पेट भर गया …………तो वो मेरा पेट देखती थी …..दबाती थी मेरे पेट को ……….फिर कहती अभी तो और भी जायेगा इसमें माखन ………..उद्धव ! मैं क्या कहूँ उस बृज की बात !
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –
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