श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! श्रीकृष्ण द्वारा बृज की चर्चा – “उद्धव प्रसंग 3” !!
भाग 1
तात ! बिना प्रेमी बनें प्रेम को आप समझ नही सकते ।
मैं क्या समझता प्रेम को ……मैं प्रेम से दूर था बहुत दूर ……हाँ मुझे सन्तुष्टि देते थे – विचार ….जो बुद्धि का विषय थे ……पर ये तो हृदय से रिसनें वाली वस्तु थी ……….मेरा कोई परिचय नही था इस से ।
उद्धव विदुर जी को “श्रीकृष्णचरितामृतम्” सुनाते हुये कह रहे थे ।
मैं तो भयभीत हो गया था उस दिन ……जब बृज को स्मरण करके यमुना के पुलिन में श्रीकृष्ण गिर ही पड़े……ओह ! उनकी वो दशा !
आप नित्य पूर्ण हैं, नित्य निरीह, मन बुद्धि वाणी से परे अचिन्त्य हैं …परम प्रकाश हैं नाथ ! आप , । उनको जब थोडा होश आया तब मैनें पद वन्दन का कुछ उपक्रम शुरू किया था ………आप भक्तवत्सल हैं ….ये स्वाभाविक है कि भक्त के दुःख से आप दुःखी हो उठे हैं ।
“भक्त वत्सल” नाम ऐसे ही तो सार्थक होगा नही ……………
नही, उद्धव ! नही, ये मेरी भक्तवत्सलता नही है ……..वो मेरे भक्त नही हैं …….वो सब मेरे “प्रेम” हैं ……अपनें से भी अपनें हैं ।
आँसुओं को पोंछना अब उन्होंने छोड़ दिया था……..
उद्धव ! वो क्या हैं ? मैं तुम्हे बता भी नही सकता ।
एक एक पल उनका मेरे बिना कैसे बीतता होगा ! ओह ! मेरे ग्वाल सखा जो एक क्षण के लिये भी मुझ से दूर नही होते थे आज मेरे वियोग में कैसे जी रहे होंगे ।
उद्धव ! ये मेरे हाथों में चिन्ह देख रहे हो रज्जु के !
वो अपना हाथ दिखानें लगे थे मुझे ……..उनकी ये दशा देखकर मैं चकित- स्तब्ध था ।
अपनें वात्सल्य से बाँधा था मुझे मेरी मैया नें …….पर वो भोरी मैया इसी का पश्चाताप करती रही ………..उद्धव ! मैं जब वृन्दावन से चल रहा था ना तब भी वो मुझ से यही कह रही थी ……मैनें तुझे बाँधा ……मथुरा में जाकर मत कहना ………मैं अपराधिनी हूँ तेरी ………और पता है उद्धव ! उसे कभी कभी लगता है मैं वृन्दावन से इसलिये मथुरा आगया हूँ क्यों कि मैया नें मुझे रज्जु से बाँधा था ……….अविरल अश्रु बह रहे हैं नेत्रों से श्रीकृष्ण के ……….फिर चूम भी रहे हैं उन चिन्ह को जो मैया यशोदा के रज्जु से बनें थे ।
“पर ये सब तो मिथ्या है”………मेरे मुँह से निकल गया ।
उन्होंने मेरे मुख की ओर देखा……मिथ्या है ? मानों पूछ रहे थे मुझ से ।
वो कुछ देर के लिये मौन हो गए ………फिर कुछ देर बाद बोले –
उद्धव ! तू मेरा सखा है …..अन्तरंग सखा …….तू परम ज्ञानी भी है …बृहस्पति का शिष्य है …….और व्यवहार में निपुण है …….मेरा एक काम कर दे मेरे भाई ! उन कमल नयन नें मेरे हाथों को पकड़ लिया और बड़े प्रेम से मुझ से बोले ……..उद्धव ! मेरा काम करेगा ना ?
नाथ ! मैं चरणों में गिर गया उनके …..ऐसा कौन सा कार्य है जिसका आदेश आप मुझे दे नही पा रहे ……मुझ से इतना संकोच क्यों ?
मैं आपका भाई भी हूँ आपका मित्र भी हूँ …..और नाथ ! इन सबसे ज्यादा मैं आपका सेवक हूँ ……..आप आज्ञा तो दीजिये प्रभो !
“तुम बृज जाओ उद्धव !” वहाँ मेरी मैया हैं……मेरे बाबा हैं ….मेरे ग्वाल सखा हैं मेरी गोपियाँ हैं और मेरी श्रीराधा हैं ………….फिर नयन भर आये थे इन सबका नाम लेनें मात्र से कमलनयन के ।
उनको बताओ कि “ये सब मिथ्या है”……….क्या बता सकोगे ?
क्रमशः …
शेष चरित्र कल –
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