श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! प्रेम की विचित्र गति – “उद्धव प्रसंग 5” !!
भाग 2
” देखो सुबह होनें वाली है ………वृन्दावन जाओ उद्धव ! किसी को मथुरा में पता न चले कि तुम वृन्दावन गए हो ………..मैं यहाँ सब सम्भाल लूँगा …..कह दूँगा कुछ भी ………..कोई देखे नही तुम्हे !
वो मुझे भेजनें के लिए बेचैन हो उठे थे………..
पर मेरा रथ ! मैने कहना चाहा ।
उद्धव ! मेरे रथ में जाओ ना ! सुवर्ण के रथ में…….यही रथ मुझे लेकर आया था वृन्दावन से……अब इसी रथ में तुम जाओ ……..
मैने सिर झुकाया ……चरण वन्दन किये ……..वो नीलमणी मुझे अपलक देख रहे थे…….उस समय उनके नेत्र सजल थे ………पर वो रुके थे ……मानों रोक लिया हो उन्हें ।
मेरे मन में आया तात विदुर जी ! कि मेरा यहाँ ज्यादा रुकना उचित नही है ……मैं ज्यादा रुका तो फिर श्रीकृष्ण कि दशा बिगड़ सकती थी ।
मैं बाहर निकला …..अरुणोदय हो गया था पर सूर्योदय में अभी समय शेष था ।
रुको उद्धव ! वो फिर मेरे पीछे दौड़े ………..मैं रुका , तो वो बड़े प्रेम से मेरा हाथ पकड़ कर ले आये वापस महल में ।
मुझे देखते रहे अपलक ………मैं समझ नही पा रहा था ये ऐसे क्यों देख रहे हैं………फिर अपना केशर का तिलक मेरे माथे में लगा दिया ………..मेरे केशों को बिखेर दिया …………एक पीला वस्त्र मेरे मस्तक में बाँधते हुये उसमें एक मोर पंख को खोंस दिया था ………..उफ़ ! ये सब क्या था ! मैं कुछ समझ नही पाया ……….वो बेचैन थे …….वो बहुत बेचैन थे ……..उनके मन में क्या था ये तो वही जानें ।
पीली पीताम्बरी अपनी निकाल कर मुझे ओढ़ा दी थी ……….
फिर दूर चले गए और दूर खड़े होकर मुझे देखनें लगे ……..फिर आये मेरे पास, और आकर मेरे मुखमण्डल को संवारने लगे थे …..उफ़ ! जब उन्होंने ये कहा ………”इस मुख को मेरी श्रीराधा देखेंगी” ।
फिर बहनें लगे थे अश्रु श्रीकृष्ण के ………….
तुम मेरे जैसे नही लगोगे न तो वहाँ तुम्हारी कोई बातें भी नही सुनेगा ……हाँ, अब ठीक लग रहे हो……….अब मेरे जैसे लग रहे हो !
मेरी प्रिया तुम्हे देखेंगी……….तुम समझाना उन्हें …..कहना क्यों रोती हो ……..वो तुम्हे भूल चुका है ……….कभी उसे तुम्हारी याद नही आती ……मैने उनके मुखारविन्द कि ओर देखा …………..और प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा ……….याद नही आती तो रोते क्यों हो !
पर ……..वो मेरी किसी बात का कोई उत्तर नही दे रहे थे ………
बड़ी अटपटी चाल थी इस प्रेम देवता कि ……….मैं तो अब जाकर समझा था ……….उफ़ ! ये प्रेम ईश्वर को भी नचानें का सामर्थ्य रखता था ….मुझे ये बात तब समझ में नही आयी थी तात !
शेष चरित्र कल –
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