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September 13, 2025 10:01 pm

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श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! ऊधो ! प्रीत किये पछतानी -“उद्धव प्रसंग 22” !!-भाग 1- Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्-!! ऊधो ! प्रीत किये पछतानी -“उद्धव प्रसंग 22” !!-भाग 1- Niru Ashra

श्रीकृष्णचरितामृतम्

!! ऊधो ! प्रीत किये पछतानी -“उद्धव प्रसंग 22” !!

भाग 1

प्रेम में उपदेश कहाँ ! प्रेम में साधना, अनुष्ठान, कर्तव्य, नियम कुछ भी तो नही होता …..प्रेम अपनें आपमें पूर्णतम है …इसीलिये उसे किसी की आवश्यकता ही नही है …..बस प्रियतम ! बस !

हाँ इसमें एक ही वस्तु पाईँ जाती है वो है आत्मसमर्पण……सब कुछ सौंप देना प्रिय को ………कान से बस उसको सुनें…….आँखों से बस उसको ही देखें ……जिह्वा से उसको ही गायें …….पाँव उसकी गलियों में ही घूमते रहें ……. सिर उसके पाद पद्मों में ही झुके रहें ।

अब ऐसिन प्रेमिन को कहा उपदेश !


अभी भी कपोल में हाथ रखकर उद्धव की ओर अपलक देख रही हैं गोपियाँ …….सन्देश पूरा हो गया है …….पूरा सन्देश श्रीकृष्ण का उद्धव नें सुना दिया है गोपियों को …….पर अभी भी उद्धव की ओर ही देख रही हैं शान्त भाव से ।

“हो गया , पूरा हो गया सन्देश श्रीकृष्ण का” ….उद्धव को बोलना पड़ा ।

अपनें आपको सम्भाला गोपियों नें ।…….सुना इन्दु ! हमारे प्यारे नें हमारे लिये सन्देश भेजा ……..एक गोपी दूसरी से कहती हैं ।

हाँ , मैने भी सुना …………चित्रा नें कहा …………चलो मथुरा में जानें के बाद भी हमें याद तो किया ………..ललिता का कहना था ।

क्या लिखा , क्या पढ़ा , क्या उपदेश था सन्देश में ……….क्या ज्ञान दे रहे थे यदुवीर गोपियों को ………इन सब बातों से गोपियों का कोई प्रयोजन नही था ………हो भी कैसे …….प्रेमी लोग उपदेश नही सुनना चाहते …..वो तो अपनें प्रिय की चर्चा , उनकी बातें …..वो कैसे , कहाँ ? क्या ? बस यही उन्हें सुनना है ।

तात ! मुझे कुछ पता नही था इस प्रेम के सम्बन्ध में ………….मैं तो धड़ाधड़ उपदेश दिए जा रहा था ………पर प्रेम में उपदेश क्यों ?

अद्भुत है ये प्रेम का पन्थ तो । उद्धव विदुर जी से बोले ।

उद्धव ! बताओ ना ! हमारे प्रिय कैसे हैं ?

वो सुखी तो हैं ना ? गोपियाँ अब उद्धव से पूछनें लगीं ।

हमें याद करते हैं ? रंगदेवी नें पूछा ।

मेरी वेणी उन्हें बड़ी प्रिय लगती थी ………क्या वो उन्हें याद हैं ?

चित्रा नें पूछा था ।

मेरे मुख को वो चन्द्रमा कहते थे ………क्या उन्हें याद है ?

इन्दु बोल रही थी ।

मानों झड़ी लगा दी सबनें उद्धव के सामनें प्रश्नों की ।

वो अभी भी रसिक शेखर बनें हैं या सुधर गए ?

ललिता नें सहज पूछा ।

अजी कहाँ रसिकता छोड़ेंगे वो….कुबड़ी को अपनी रानी बना बैठे हैं ।

सुदेवी नें कहा था ।

तात ! अब मुझे कुछ कहना था तो मैने कहा…..

क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –

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