श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! प्रेम की विजय हुई थी – “उद्धव प्रसंग 30” !!
भाग 1
आज चार माह बीत चुके थे…….कहकर गया था उद्धव कि घड़ी दो घड़ी सन्देश देकर मैं लौट आऊँगा मथुरा ……पर आज !
नित्य अपनें महल के ऊँचे अट्टालिका पर जाते हैं श्रीकृष्ण …….वहाँ से वृन्दावन दिखाई देता है …….आते जाते लोग दिखाई देते हैं …..और आते जाते एक एक व्यक्ति को देखते हैं ।…….उद्धव नही आया ! आज भी नही आया ……..ऐसे ही चार माह बीत गए थे ।
आज – शाम होनें वाली है …….अट्टालिका पर ही खड़े हैं नन्दनन्दन …….उनकी दृष्टि वृन्दावन की ओर ही है ।
महाराज की जय हो ! एक सैनिक नें आकर कहा ।
पर कहाँ ध्यान सैनिक की बातों पर श्रीकृष्ण को ………वो तो वृन्दावन की और दृष्टि गढ़ाये बैठे थे ।
महाराज ! श्रीमान् वसुदेव जी और अक्रूर जी पधारे हैं !
तभी सामनें से उद्धव का रथ आता हुआ दिखाई दिया ……..रथ खाली चल रहा था…….श्रीकृष्ण बेचैन हो गए – उद्धव कहाँ है !
ध्यान से देखा तो उद्धव – धूल धूसरित, घुँघराले केश बिखरे हुए हैं , पैदल चलते हुये आरहे हैं ।
तेज गति से उतरे श्रीकृष्ण महल की अट्टालिका से…….उनका पीत पट कहाँ गिरा ये भान कहाँ था इन प्रेममूर्ति को ।
ये तो पाँच पाँच सीढियों से एक साथ उतर रहे थे……….
श्रीकृष्ण ! और कैसे हो ? बहुत दिनों से तुम मिलनें भी नही आये ?
अक्रूर पूछ रहे थे …..वसुदेव जी भी कुछ कहना चाह रहे थे …..पर श्रीकृष्ण को आज न वसुदेव जी का ध्यान न अक्रूर का…….
वो तो बस आते हुए रथ को देख रहे हैं ……..रथ आया …….चलते हुए उद्धव !
उद्धव ! कई दिनों से तुम दिखाई नही दिए ?
वसुदेव जी पूछ रहे हैं उद्धव को देखकर ………..पर उद्धव का ध्यान भी केवल श्रीकृष्ण पर है ……….और श्रीकृष्ण का ध्यान उद्धव पर ।
न हाथ जोड़ा न चरण वन्दन……बस देख रहे हैं श्रीकृष्ण को उद्धव !
उद्धव ! कहाँ गए थे बता तो दो ! अक्रूर पूछ रहे हैं ।
पर उद्धव तो अपलक श्रीकृष्ण को देख रहे हैं…….क्यों किया ऐसा ? बताओ क्यों किया ? क्या अपराध था उन बेचारे बृजवासियों का ?
यही अपराध ना ! कि तुमसे उन्होंने प्रेम किया ?
इधर उधर देख रहे हैं श्रीकृष्ण……वसुदेव जी खड़े हैं अक्रूर खड़े हैं ।
पर उद्धव को किसी से कोई मतलब नही है …………
अच्छा ! तू बता कैसा है तू ? श्रीकृष्ण उद्धव का हाथ पकड़ना चाहते हैं …..पर उद्धव झटक देते है ………..
उद्धव ! भीतर महल में चल ………चल उद्धव …….उद्धव मानें नही तो जबरदस्ती हाथ पकड़ कर भीतर ले गए श्रीकृष्ण …..और द्वार भीतर से बन्द कर दिया ।
मुस्कुरा रहे हैं श्रीकृष्ण ………और उद्धव हिलकियों से रो रहे हैं ।
क्रमशः ….
शेष चरित्र कल –


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