श्रीकृष्णचरितामृतम्
!! कालयवन – “उत्तरश्रीकृष्णचरितामृतम् 4” !!
भाग 2
उपासक इष्ट से जो मांगे वो इष्ट को भी देना पड़ता है ……भगवान शंकर नें एवमस्तु कहा ….और अंतर्ध्यान हो गए ।
उस समय यदुवंशी वीरों में गिनें जाते थे……महादेव द्वारा वर मिला है इस ब्राह्मण को……ये बात महायवन नामक एक राजा जान गया था ……वो ब्राह्मण वर प्राप्त करके निकल ही रहा था कि ……
हे विप्र ! आप का आतिथ्य मुझे मिले ……..आपकी सेवा करना चाहती हूँ ……..एक सुन्दरी नें आकर कहा ।
वो अप्सरा थी …….बहुत सुन्दरी थी………उसे महायवन राजा नें ही भेजा था उस ब्राह्मण का पुत्र अपनें कोख ले इसलिये , और महा यवन की कोई सन्तान भी नही थी ……और यदुवंशियों का ये भी शत्रु ही था ।
बड़े बड़े ऋषि मुनि काम से बच न सके…….तो ये ब्राह्मण क्या थे !
उस सुन्दरी नें अपनें काम जाल में फंसा लिया था उस ब्राह्मण को …….और वो गर्भ वती भी हो गयी थी ……..
ब्राह्मण लौट आये थे अपनें नगर ।
उस अप्सरा को राजा महायवन नें अपने पास बुला लिया ………
उद्धव बोले – तात ! उस अप्सरा को जो बालक हुआ उसे राजा महायवन नें अपना उत्तराधिकारी बना दिया …….”कालयवन” उसी का नाम था । बड़े बड़े राजा इसके नाम से काँपते थे …..ये विचित्र योद्धा हुआ इस पृथ्वी का ।
कालयवन – ये मित्र जरासन्ध का था ……….और इसे पता भी था कि …..ये यदुवंशियों के लिये अवध्य है ……श्रीकृष्ण यदुवंशी ही तो थे …….ये भी इसका वध नही कर सकते थे ……महादेव का वर श्रीकृष्ण भी कैसे तोड़ देते …………।
कालयवन का नाम मेरी मति में पहले क्यों नही आया !
जरासन्ध बहुत प्रसन्न हुआ था………उसनें तुरन्त भेजा शिशुपाल को कालयवन के पास……..जरासन्ध अब निश्चिन्त था …..क्यों की कालयवन जरासन्ध की बात को काटेगा नही ……..उसकी भी इसनें बहुत सहायता की थी ।
विदुर जी मुस्कुराये ………….अब आगे का प्रसंग सुनाओ उद्धव !
शेष चरित्र कल –


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